सदैव धर्म और न्याय के साथ रहे भगवान परशुराम

भगवान परशुराम का क्षत्रीय संहार भारतीय पौराणिक इतिहास के सबसे चर्चित प्रसंगों में से एक है। क्या सचमुच भगवान परशुराम क्षत्रियों के शत्रु थे? क्या सचमुच उन्होंने समस्त क्षत्रियों का संहार कर दिया? क्या क्षत्रियों के विरुद्ध अभियान का कारण वर्ग विशेष से घृणा थी?
नहीं, भगवान परशुराम का क्षत्रियों के विरुद्ध अभियान वस्तुत: निरंकुश सत्ता के विरुद्ध चलाया गया अभियान था, उन क्षत्रियों के विरुद्ध जिन्हें वंशानुगत आधार पर सत्ता मिली और वे अपना कर्त्तव्य भूल कर प्रजा का शोषण करने लगे। ऐसे सत्ताधारी हर युग में रहे हैं। तब भी थे और भगवान परशुराम ने उन्हीं के विरुद्ध अभियान चलाया था।इसे आप ऐसे समझें कि भगवान परशुराम के कालखंड में ही अयोध्या, मिथिला, काशी, कैकेय आदि राज्य थे परन्तु क्या उन राज्यों के विरुद्ध परशुराम जी का कोई अभियान चलाया? नहीं। ये राजपरिवार प्रजा के हितैषी थे, सो भगवान परशुराम भी इनके हितैषी ही रहे।अब प्रश्न यह है कि यदि उन्होंने अनेक तात्कालिक बड़े क्षत्रीय राजपरिवारों के विरुद्ध कोई अभियान ही नहीं किया तो ‘क्षत्रीय संहार’ की बात कहां से आई? इसका कारण यह है कि किसी ब्राह्मण द्वारा शस्त्र उठा कर क्षत्रियों से युद्ध करने की यह पहली बड़ी घटना थी। भगवान परशुराम से पूर्व किसी ब्राह्मण ने स्वयं युद्ध कर अनेक राजाओं को पराजित किया हो, ऐसी कोई कथा नहीं मिलती। दुष्ट क्षत्रियों को दंडित करने का शास्त्रीय अधिकार भी तब क्षत्रियों के पास ही था, इसलिए ब्राह्मण परशुराम जी द्वारा किया गया युद्ध अधिक चर्चित हुआ और इतिहास बन गया। उसके लिए क्षत्रीय संहार और समूल नाश जैसी बातें कहीं गईं।भगवान परशुराम के अभियान का फल क्या हुआ? द्वापर को निहारिये, हस्तिनापुर के भरतवंश में भी पिता के बाद पुत्र को राजा बनाने के स्थान पर योग्य को राजा बनाने की परम्परा रही। उधर मथुरा में भी यादव सामंत मिल कर मुख्य शासक के रूप में योग्य का चुनाव करते दिखे। ये जनतांत्रिक परम्पराएं भगवान परशुराम के अभियान के बाद ही उपजी थीं।प्रश्न यह भी है कि क्या भगवान परशुराम को क्षत्रीय विरोधी माना जाये? नहीं, वे क्षत्रीय विरोधी होते तो भगवान राम स्वयं को उनका दास नहीं बताते, और फिर पहचानने के बाद वह स्वयं भगवान राम को अगला युग नायक बता कर नेपथ्य में नहीं जाते। याद रहे, राजकुमार राम को सर्वप्रथम भगवान राम परशुराम जी ने ही कहा था। और युग बदलने पर भगवान श्री कृष्ण को उनका सुदर्शन चक्र  भी उन्हीं ने दिया था। वह सदैव धर्म और न्याय के साथ रहे। भगवान परशुराम अत्याचारी सत्ता के प्रतिरोध के प्रतीक हैं। युग नायक किसी जाति या वर्ग के नहीं होते वे सबके होते हैं।

(उर्वशी)