भारतीय बास्केटबॉल  ज़रूरत है आई.पी.एल. की तरह एक लीग की

क्रिकेट की इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) नया कोरोना वायरस महामारी के बावजूद फिलहाल संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में खेला जा रहा है। भारत में फुटबॉल, हॉकी, कबड्डी, टेबल टैनिस व बैडमिंटन की भी लीगें हैं, जिनसे न सिर्फ  इन खेलों के विकास में काफी मदद मिली है बल्कि खिलाड़ियों की आर्थिक स्थिति में भी काफी सुधार आया है। अब वह इन खेलों को अपना प्रोफैशन बना सकते हैं, साथ ही स्तरीय विदेशी खिलाड़ियों के साथ खेलकर स्थानीय खिलाड़ियों को अपना खेल बेहतर करने का अवसर भी मिला है, खासकर अच्छे कोचों की निगरानी में प्रैक्टिस करने की वजह से। इसलिए यह आश्चर्य नहीं है कि अन्य खेलों के लिए भी आईपीएल की तज़र् पर लीग की मांग की जा रही है, विशेषकर बास्केटबॉल के लिए।  हाल के दिनों में भारत के अनेक प्रमुख बास्केटबॉल खिलाड़ी अमरीका, कनाडा, जापान आदि देशों में शिफ्ट हो गये हैं ताकि वहां प्रोफैशनल अवसरों का लाभ उठा सकें। इस पलायन की वजह से कुछ लोगों का कहना है कि भारतीय बास्केटबॉल पर कुप्रभाव पड़ रहा है, लेकिन यह बात सही प्रतीत नहीं होती है। आईपीएल से पहले हमारे बहुत से क्रिकेटर इंग्लैंड जाते थे, काउंटी क्रिकेट खेलने के लिए ताकि पैसा कमा सकें और अपनी प्रतिभा में निखार ला सकें। इसलिए अगर हमारे बास्केटबॉल खिलाड़ी प्रोफैशनली खेलने के लिए विदेश जा रहे हैं तो इसमें क्या बुराई है? आखिरकार वे खेल का बेहतर ज्ञान लेकर स्वदेश लौटेंगे। साथ ही यह गर्व की बात है कि दूसरे देश भी हमारे बास्केटबॉल खिलाड़ियों में दिलचस्पी दिखा रहे हैं लेकिन विदेश से अनुभव व ज्ञान लेकर लौट रहे इन खिलाड़ियों का हम फायदा तभी उठा सकते हैं, जब हमारे यहां भी आईपीएल जैसी बास्केटबॉल लीग हो जिसमें एनबीए स्टार्स हिस्सा लें। 
इससे न सिर्फ  हमें एनबीए स्टार्स को खेलते हुए देखने का मौका मिलेगा, बल्कि हमारे स्थानीय खिलाड़ियों को अपने खेल में निखार लाने का अवसर मिलेगा तथा हमारे प्रतिभाशाली खिलाड़ी भी विदेश में शिफ्ट नहीं होंगे। हालांकि भारत की बास्केटबॉल टीम ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अभी तक कोई चमत्कार नहीं किया है, लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि अपने देश में बास्केटबॉल बहुत बड़े पैमाने पर खेली जाती है। स्कूलों, कॉलेजों, स्पोर्ट्स स्टेडियमों व रिहायशी कॉलोनियों में आपको बास्केटबॉल कोर्ट्स मिल जायेंगे। इन कोर्ट्स का रखरखाव क्रिकेट पिच से बहुत आसान होता है बल्कि एक बार निवेश के बाद प्रतिदिन देखभाल करने की ज़रूरत भी नहीं पड़ती। इसके अतिरिक्त बास्केटबॉल के अनेक सकारात्मक पहलू हैं, जैसे गेम औसतन 2.30 घंटे में पूर्ण हो जाती है (वैसे वास्तविक खेल 48 मिनट ही चलता है, ब्रेक व स्टॉपेज की वजह से समय बढ़ जाता है), जिससे टीवी प्रसारण आसान व लाभकारी हो जाता है लेकिन देश में बास्केटबॉल की यह ख्याति राष्ट्रीय स्तर पर देखने को नहीं मिलती, क्योंकि इस खेल को अधिक प्रमोट नहीं किया गया है।इसके बावजूद भारत की राष्ट्रीय बास्केटबॉल टीम के कप्तान विशेष भृगुवंशी का कहना है, ‘मुझे बास्केटबॉल का भविष्य सुनहरा प्रतीत होता है, क्योंकि पिछले कुछ वर्षों के दौरान लोगों की बास्केटबॉल में दिलचस्पी बढ़ी है। सोशल मीडिया व अन्य ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर बास्केटबॉल वीडियोज़ शेयर किये जा रहे हैं। हॉलीवुड में जो बास्केटबॉल-केंद्रित फिल्में बन रही हैं, उनसे भी इस खेल में दिलचस्पी बढ़ती जा रही है। इसके अतिरिक्त एनबीए भी भारत में अपने बेस का विस्तार कर रहा है, जिससे आशा बनती है कि आहिस्ता आहिस्ता ही सही देश में बास्केटबॉल बहुत पॉपुलर होने जा रहा है।’ पिछले दो दशकों के दौरान भृगुवंशी एकमात्र पुरुष बास्केटबॉल खिलाड़ी हैं, जिन्हें अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया गया है। वह भी इस बात से सहमत हैं कि अपने देश में बास्केटबॉल के विकास के लिए आईपीएल-स्टाइल बास्केटबॉल लीग का होना ज़रूरी है। 

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