अंधेरे का उत्सव

पहले लोग त्योहारों का जश्न मनाते थे, महंगाई ने रिकार्ड तोड़े तो यह जश्न दम तोड़ गये। लोग सफलता का जश्न मनाते थे, लेकिन सफलता अब मिथ्या आंकड़ों की बांदी हो गई, और उपलब्धियों के इश्तिहार का रूप धारण करने लगीं, इसलिए आम आदमी ने ‘जैसे हो, वैसे रहो’ की नियति का वरण करके, जयघोष की मुद्रा को प्रगति मान लिया। विकास दर के आंकड़े मंचों से उछलते हैं, और टूटी सड़कों, और अधूरे पुलों की वास्तविकता में तबदील हो जाते हैं, लेकिन हमें जश्न तो मनाना ही है। उत्सवधर्मी लोगों का देश है यह। इसलिए पचहत्तर वर्षीय आज़ादी के अमृतघट का महोत्सव मना लिया। नारे लगे, उपलब्धि पताकाएं लहराईं, शोभा यात्राएं निकलीं। ऐसी शोभा यात्राएं जिनमें मुस्कान अग्रिम पंक्ति में हाथ जोड़ कर चलते हुए नेताओं का स्वीकार थीं, और इनके पीछे-पीछे चल रहा था, झुके कन्धों वाला ढीला-ढाला हुजूम, जिसने यथास्थितिवाद को अपना संतोष जान स्वीकार कर लिया था। 
हमें छक्कन इस हुजूम की आखिरी पांत में मिले। क्या इसलिए कि वह उस कतार के आखिरी आदमी थे, जिनसे देश के मसीहाओं ने कभी वायदा किया था, कि देश में अच्छे दिन आयेंगे, और उसका तोहफा तुम्हारी अंधेरी कोठरी तक एक नई रोशनी सा अवश्य पहुंचेगा।  लेकिन तोहफों की यह रोशनी आखिरी कतार में खड़े छक्कन तो क्या, पहली कतार में खड़े धक्कमपेल लोगों तक भी नहीं आ सकी। 
देखते हैं तोहफे बरसे तो हैं, लेकिन कटी पतंग की तरह ऊंची इमारतों की फुनगियों पर अटक गये। वहां से छूटे तो बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के विस्तार में विस्तृत होते चले गये। उन्हें विदेशी मंडियों में ऊंचे ब्याज ने ललचाया तो इस निवेश का भी पलायन होने लगा। अब बाकी रह गई हमारी जेब का मर्सिया बढ़ती महंगाई तेरे लिए भी और मेरे लिए भी। डालर के मुकाबले में गिरता हुआ रुपया आयातों का हुलिया और बिगाड़ने लगा, कच्चे माल की कीमतों को पंख लगाने लगा। नतीजा क्या हुआ? हां, महंगाई बढ़ी तेरे लिए भी मेरे लिए भी। तूने तो इस महंगाई को सह लिया, क्योंकि चोर बाज़ारी और काले धन की बैसाखियां तेरे पास थीं। हम कैसे इसे सहन करते? क्या तीन सौ यूनिट तक बिजली मुफ्त हो जाने की घोषणा के साथ। लेकिन वह भी तो हमारी देहरी तक नहीं आई। बुझी हुई मोमबत्तियां और टूटे हुए दीये ही क्या इसका भाग्य हैं?
जी नहीं, तनिक उन लोगों के भाग्य की सुध भी ले लें, जिन्होंने तरक्की के नाम पर उज्जवला योजना से सिलेंडरों से गैस के चूल्हों से नित्य भोजन पकाने की कभी सीख ली थी। 
छक्कन हमें बताने लगे, अरे उज्चवला में रियायतों की तलाश छोड़ो, यहां तो नये आंकड़े बताते हैं कि करोड़ों लोगों ने पिछले वर्ष एक भी गैस का सिलेंडर नहीं भरवाया, और जिन्होंने एक भरवाया है, उन्होंने तरक्की का उत्सव मनाया है। उत्सव ही मनाना है तो आओ क्यों न आगे बढ़ने के स्थान पर पीछे लौटने का उत्सव मना लें? न जाने कितनी हज़ार पिछड़ी बस्तियां हैं, जहां वही बाबा आदम का चूल्हा चौका, और लकड़ी का ईंधन लौट आया है। कोयला मिल जाता तो अंगीठियां भी लौट आतीं। लेकिन यहां कोयला थर्मल प्लांट चलाने के लिए नहीं मिलता। विद्युत् प्रसार के नाम पर हमें पावर कट सहने की आदत हो गई है, और नेता जी का यह वायदा कि आप पन्द्रह सौ रुपये का बोनस लेकर सीधी बिजाई कीजिये, आपको इस बार इस नई खेती के लिए बिजली की कमी नहीं आने दी जाएगी, लेकिन नेता जी के वायदे और किसान का उतरा हुआ चेहरा बताता है कि ‘यह न थी हमारी किस्मत कि विसाले यार होता।’ 
छक्कन सिर धुनते हैं, ‘अगर और जीते रहते यही इंतज़ार होता।’ इंतज़ार बदलते समाज का, लेकिन मिलना है यथास्थितिवाद का उत्सव और रियायत, राहत संस्कृति की पताकायें।  हमने छक्कन से पूछा, ‘भैय्या, यह यथास्थितिवाद की पताकायें क्या हैं?’
वह हमारी नासमझी पर फिर सिर धुनते हुए बोले—अरे इतना भी समझ नहीं पाये। किसी को भूख से मरने नहीं देंगे, और एक सबसे युवा देश को काम के बदले लंगर संस्कृति भेंट कर दी जायेगी। लंगर संस्कृति में दया धर्म और पुण्य कमाने का ऐसा ओज निकला कि बेकार कामगारों की ताकत में से आधों ने काम की तलाश ही बंद कर दी। अब वे नित्य नई राहतें पाने के रोड शो में जुटे हैं। आगे चलता है क्रांतिधर्मी नेताओं का अभयदान, जिन्होंने यथास्थितिवाद का अंगरखा पहन रखा है। इस अंगरखे को किसी बैनर में तबदील करने का सपना न देखना कि जहां लिखा हो, हमने बीस दिन में इस राज्य से भ्रष्टाचार का फातिहा पड़ दिया है। 
ये नये शिला पट्ट लेकर चलने वाले आपको कभी नहीं बतायेंगे कि हुज़ूर, हम तो वहीं खड़े हैं, महाभ्रष्टाचार के सूचकांक के उसी निम्नस्तर पर। सम्पर्क संस्कृति का बोलबाला उसी प्रकार आपकी फाइलों के सरकने के रास्ते में खड़ा है। अगर मेज़ के नीचे से पैसों के लेन-देन को बंद करवाओगे, तो मेज़ के ऊपर से उपहारों का आभार तो बंद नहीं करवा सकते। छक्कन ने समझाया अरे नये शिलालेखों की इस पुरानी इमारत को स्वीकार कर लो। हो सके तो सबको इनका शिलान्यास भी कर दो, क्योंकि इससे एक और जश्न मनाने का अवसर मिल जायेगा।