पंजाब एवं हरियाणा आपसी विवाद मैत्रीपूर्ण वार्तालाप से सुलझायें

बड़ी अजीब स्थिति है कि कुछ समय उपरांत दो पड़ोसी प्रदेश पंजाब एवं हरियाणा के नेता एक-दूसरे के विरुद्ध समाचार पत्रों में बड़े-बड़े बयान देने की खुशी हासिल करते हैं। हम यह नहीं देखते कि ऐसा शीत कागज़ी युद्ध दोनों राज्यों के नेताओं के मध्य लम्बी अवधि से चला आ रहा है। समय-समय पर यह तीव्र हो जाता है और फिर कुछ समय के बाद ठंडा पड़ जाता है। इसका कारण दोनों प्रदेशों के उलझे हुये या उलझाये हुए मसले हैं। स्वतंत्रता की प्राप्ति के उपरांत बड़े पंजाब के दो भाग हुये तथा अधिक क्षेत्र पाकिस्तान में रह गया था। यह पंजाब 1947 में ज्यादा विस्थापित होकर आये लोगों का निवास बन गया था। इस पंजाब की सीमा मथुरा तक तथा राजस्थान के मध्य तक पहुंच जाती थी। अकाली दल ने बड़ा लम्बा संघर्ष किया कि शेष भारत के प्रदेशों की तरह पंजाब की सीमाबंदी भाषा के आधार पर की जाये।
पंडित जवाहर लाल नेहरू लम्बी अवधि तक प्रधानमंत्री रहे तथा उन्होंने पंजाब को छोड़ कर पूरे भारत के शेष प्रदेशों की उनकी मांग के अनुसार नई सीमाबंदी कर दी थी। 1956 में पैप्सू जो सभी सिख रियासतों का अलग प्रदेश था, जिसकी पटियाला राजधानी थी, को भी पंजाब में शामिल कर दिया गया था। आज के हरियाणा का जो क्षेत्र है, उस समय कोई भी ऐसी मांग नहीं थी कि उनका एक अलग प्रदेश बनाया जाये। अकालियों की पंजाबी प्रदेश की मांग का जनसंघ पार्टी हमेशा विरोध करती थी। अंतत: अकाली नेताओं ने हरियाणा के नेताओं को मना लिया कि उनके लिए अलग हरियाणा प्रदेश बड़ा लाभदायक होगा। मई 1964 में पंडित नेहरू का निधन हो गया तथा लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बने तथा 1965 में भारत-पाकिस्तान में युद्ध हो गया। इस युद्ध की जीत का श्रेय पंजाब के लोगों को जाता था। शास्त्री ने पंजाबी प्रदेश की मांग को स्वीकृति देने हेतु एक संसदीय कमेटी बनाई, जिसका चेयरमैन स. हुकम सिंह, स्पीकर लोकसभा को बनाया गया। एकाएक शास्त्री का हृदयघात होने से निधन हो गया 1966 में इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बन गईं। उसने संसदीय कमेटी की रिपोर्ट को मान कर 1 नवम्बर, 1966 को हरियाणा अलग प्रदेश बना दिया तथा पंजाब काट-छांट कर कुछ क्षेत्र वाला सीमांत प्रदेश बना दिया। शिमला, कुल्लू पहाड़ी क्षेत्र जोड़ कर हिमाचल प्रदेश एक नया प्रदेश बनाया गया। उस समय की कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व ने यह सोचा न था कि जब अलग प्रदेश अस्तित्व में आ गये  हैं तो फिर इन्हें हर पक्ष से एक अलग प्रदेश की सभी सुविधाएं दे देनी चाहिए थीं। आज अनुमान लगायें 56 वर्ष पूर्व हरियाणा के लोगों को अलग प्रदेश मिल गया था तथा वह भी जो दिल्ली के आस-पास है तथा उसे गुड़गांव तथा फरीदाबाद का उद्योग के साथ भरपूर क्षेत्र भी मिल गया था।
उस समय हरियाणा के मध्य किसी उचित स्थान पर प्रदेश की राजधानी बना देनी चाहिए थी, जिस पर उस समय बहुत कम खर्च होना था। भारत सरकार तथा पंजाब सरकार भी हरियाणा की राजधानी बनाने में पूरा-पूरा योगदान डाल सकती थीं। आज भी राजनीति से ऊपर उठ कर संजीदगी से यह नहीं सोचा जा रहा कि हरियाणा के लोग कितने परेशान होकर चंडीगढ़ जो इस प्रदेश के किनारे पर है, वहां कामकाज़ हेतु पहुंचते हैं तथा उन्हें वहां रहने में कितनी परेशानी होती है। हम अपने राजनीतिक लक्ष्यों हेतु लोगों की सुविधा को देखने का कष्ट नहीं करते। उस समय की भारत सरकार की इतनी बड़ी लापरवाही के कारण आज हरियाणा तथा पंजाब बिना मतलब एक-दूसरे के दुश्मन बन गये हैं। हमने कभी सोचा भी नहीं कि हमारी पृष्ठ भूमि एक है, भाषा एवं संस्कृति भी साझा है। हम सभी कृषि करते हैं तथा सेना में भी सबसे अधिक शामिल होते हैं। पंजाब-हरियाणा की सीमाओं पर एक-दूसरे के रिश्तेदार बैठे हैं। मैं हरियाणा में सरकारी नौकरी के दौरान नारनौल, गुड़गांव तथा अम्बाला ज़िलों में रहा हूं तथा हमेशा आपसी प्रेम देखा है। अब देख लें जब किसान आन्दोलन चला था, कैसे दोनों एक-दूसरे से भी अधिक आपसी निकटता दिखाते थे। 
मैं यह सच्चे दिल से समझता हूं कि पंजाब-हरियाणा अब पुन: इकट्ठे होकर एक राज्य नहीं बना सकते। इस सच्चाई को देखते हुए भारत सरकार को आगे आकर इन दोनों राज्यों के बीच चल रहे अनावश्यक विवाद को खत्म करवाने के लिए अपनी ज़िम्मेदारी निभानी चाहिए। आज हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की विश्व भर में प्रशंसा होती है और उन्हें अंतर्राष्ट्रीय विवाद निपटाने के लिए एक योग्य नेता माना जाता है। मुसलमान अमीर देश भी उन्हें सम्मान दे रहे हैं। आज आवश्यकता है कि वह पहलकदमी करके पंजाब तथा हरियाणा की गैर-ज़रूरी शत्रुता को खत्म कराएं। इसमें देश का भी भला है और दोनों राज्य एक-दूसरे के सहयोगी बन कर अधिक तरक्की भी कर सकते हैं। कचहरियों में कई वर्षों से हम उलझन में फंसे हुए हैं। लाखों रुपये वाहनों पर खर्च रहे हैं। एक परिवार जब अलग होता है कैसे भाई आपस में बैठ कर बात खत्म कर लेते हैं, उसी प्रकार हमें करना चाहिए। अपनी पुरानी परम्पराओं को समझने की हम कोशिश क्यों नहीं करते?
मैंने कई बार हरियाणा में भाषण दिये हैं और बताया है कि जैसे पंजाब में सिख मिसलों ने मुगल शासन हटाया था, आज के हरियाणा के बहुत-से क्षेत्र भी सिख मिसलों की हिम्मत से मुगलों से छुड़ाये थे। आज भी हरियाणा में मिसलों के सरदारों की यादगारें हैं। हरियाणा और पंजाब के सभी काश्तकारों को बाबा बंदा सिंह बहादुर ने 1712 में ज़मीनों के मालिकी के अधिकार दिये थे। आज भी राजस्व रिकार्ड में यह लिखा हुआ मौजूद है। 
मुझे खुशी है मनोहर लाल खट्टर, मुख्यमंत्री हरियाणा ने बाबा बंदा सिंह बहादुर को मान-सम्मान दिया है और उनकी पुरानी राजधानी लोहगढ़ को वह बनवा रहे हैं। मेरी अपील है कि पंजाब तथा हरियाणा के सभी राजनीतिक नेता अपना भाईचारा कायम रखें, आपसी विवाद बातचीत से सुलझाएं तथा सदैव मित्रता के लिए प्रयास करें। केन्द्र सरकार को आगे आकर इस संबंध में मुख्य भूमिका अदा करनी चाहिए। 
-पूर्व राज्यसभा सदस्य