बासमती का उज्ज्वल भविष्य

धान की रोपाई लगभग पूरी हो चुकी है। धान की काश्त अधीन रकबा गत वर्ष से 30.66 लाख हैक्टेयर से अधिक हो गया है। बासमती किस्मों की रोपाई अभी कहीं-कहीं चल रही है। कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के डायरैक्टर डा. गुरविन्दर सिंह के अनुसार बासमती की किस्म अधीन रकबा भी गत वर्ष से 4.85 लाख हैक्टेयर से पार हो जाने की सम्भावना है। बासमती की कीमतों में वृद्धि होने के कारण इसकी काश्त अधीन रकबा 5 लाख हैक्टेयर से अधिक हो जाने का अनुमान है। धान एवं बासमती के बीजों की प्रमाणित संस्थाओं तथा निजी डीलरों के माध्यम से हुई बिक्री भी यह ज़ाहिर करती है कि बासमती एवं धान की काश्त अधीन रकबा गत वर्ष से अधिक हो गया है। धान, बासमती का अधिकतर रकबा कद्दू करके ट्रांसप्लांटिंग विधि से बीजा गया है। सीधी बिजाई लगभग 82 हज़ार हैक्टेयर रकबे पर हुई है, जबकि राज्य सरकार द्वारा 12 लाख हैक्टेयर रकबे पर सीधी बिजाई किये जाने का लक्ष्य रखा गया था। गत वर्ष कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के आंकड़ों के अनुसार 6 लाख हैक्टेयर रकबे पर सीधी बिजाई की गई थी। सीधी बिजाई में नदीनों की गम्भीर समस्या, संभावित कम उत्पादन होने के कारण पानी की बचत तथा राज्य सरकार द्वारा 1500 रुपये प्रति एकड़ प्रोत्साहन देने के तौर पर की गई घोषणा के बावजूद किसानों की बहुमत ने इसे नहीं अपनाया। 
नरमे की काश्त अधीन जो रकबा कम हुआ है, उस पर भी कई स्थानों पर बासमती तथा धान की काश्त की गई है। एक अनुमान के अनुसार गत वर्ष की अपेक्षा नरमे की काश्त अधीन लगभग 25 प्रतिशत रकबा कम हुआ है। गत वर्ष नरमे की काश्त 3.25 लाख हैक्टेयर रकबे पर हुई थी। किसान अब बासमती लगाने को प्राथमिकता दे रहे हैं। अधिकतर किसान बासमती की पौध की तलाश में हैं कि उन्हें महंगी या सस्ती किसी भी मूल्य पर मिल जाए, परन्तु पौध उपलब्ध नहीं हो रही। कुछ हरियाणा के साथ लगते ज़िलों के किसान हरियाणा जाकर बासमती की पौध खरीद कर लाये हैं।
 हरियाणा में कई बड़ी-बड़ी फर्में तथा फार्म बासमती की पौध लगा कर दूसरे किसानों को बेचने का कारोबार करते हैं। कपास पट्टी के कुछ किसान भी बासमती किस्म की पौध की तलाश में हैं। डायरैक्टर गुरविन्दर सिंह ने किसानों को अपील की है कि वे बासमती किस्मों की पौध की शुद्धता पर संतुष्टि कर लें।  पंजाब की बासमती निर्यात की जाती है और गुणवत्ता वाली मानी जाती है। यह उत्तरी अमरीका, यूरोप एवं मध्य पूर्व तथा खाड़ी देशों को भेजी जाती है। निर्यात की जा रही 40-45 लाख टन बासमती में पंजाब का योगदान 40 प्रतिशत तक है। डायरैक्टर कृषि एवं किसान कल्याण विभाग ने उत्पादकों को कहा है कि वह वर्जित कीटनाशक  भी इस्तेमान न करें और पौध शुद्ध होने का विशेष ध्यान रखें, ताकि विदेशी मंडी में पंजाब की बासमती की छवि बरकरार रहे। भारत 30 हज़ार करोड़ रुपये के लगभग बासमती प्रत्येक वर्ष निर्यात करता है। 
किसानों ने अधिकतर पूसा बासमती-1509, पूसा बासमती-6 (पूसा-1401), पूसा बासमती-1718, पूसा बासमती 1692 तथा पूसा बासमती-1121 किस्में लगाई हैं। इसके अतिरिक्त जो आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा पूसा बासमती-1847 (पी.बी.-1509 का संशोधित रूप), पूसा बासमती-1885 (पी.बी.-1121 का संशोधित रूप) तथा पूसा बासमती-1886 (पूसा-1401 का संशोधित रूप) विकसित की हैं। कुछ किसानों ने थोड़े-थोड़े रकबे पर वे भी लगाई हैं, जिनका वे बीच तैयार करेंगे। इन किस्मों का किलो-किलो बीच कुछ चुनिंदा किसानों को दिया गया था। इन किस्मों के ब्रीडरों की टीम के प्रमुख डा. अशोक कुमार सिंह डायरैक्टर एवं उपकुलपति आईसीएआर -आईएआरआई कहते हैं कि ये तीनों ही किस्में बासमती की मुख्य बीमारियों झुलस रोग (बैक्टिरियल ब्लाइट) तथा भुरड़ रोग (ब्लास्ट) का मुकाबला करने में सक्षम हैं और इन किस्मों का उत्पादन भी अधिक होता है। एक सर्वेक्षण के अनुसार पूसा बासमती-1509 तथा पी.बी.-1718 किस्मों की काश्त में इस वर्ष वृद्धि हुई है जबकि पी.बी.-1121 किस्म की काश्त गत वर्ष के मुकाबले कम है। 
पूसा बासमती-1509 उत्तर प्रदेश से आकर हरियाणा तथा नरेला की मंडियों में 3400 से 3800 रुपये प्रति क्ंिवटल तक बिक रही है। गत वर्ष यह 3000 से 3200 रुपये प्रति क्ंिवटल तक बिकी थी और उससे पहले 1800 रुपये से 2000 प्रति क्ंिवटल तक भी बिकती रही है। यह कम समय में पकने वाली किस्म है। 
आल-इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष विजय सेतिया कहते हैं कि ईरान से भारत की बासमती खरीदने के लिए काफी पक्के आर्डर मिले हैं, जिसके बाद बासमती की कीमत में तेज़ी आ गई है। सेतिया के अनुसार इस वर्ष बीजी गईं बासमती किस्मों की किसानों को लाभदायक कीमत मिलने की संभावना है। इस समय पी.बी.-1121 किस्म का 6 वर्ष पुराना चावल 8500-8600 रुपये प्रति क्ंिवटल बिक रहा है तथा पूसा-1401 (पी.बी.-6) का चावल 8600-8800 रुपये तक घरेलू मंडी में बिक रहा है। चाहे कीमत में इस वृद्धि का इस समय किसानों को लाभ नहीं हो रहा क्योंकि किसान तो अपनी गत वर्ष की फसल बेच चुके हैं। परन्तु उन्हें नये वर्ष की फसल का अच्छा दाम मिलने की संभावाना आशा बंध जानी चाहिए।
डायरैक्टर कृषि एवं किसान कल्याण विभाग डा. गुरविन्दर सिंह ने किसानों को अपील की है कि वह कुछ ऐसे मामूली से रकबे में मोहाली एवं रोपड़ ज़िलों में जो रूट ज़ोन में नया वायरस आया है, उससे भयभीत न हों। किसान ऐसे ही दवाइयों के स्प्रे न करें। इस संबंधी कृषि एवं किसान कल्याण विभाग जल्द ही पीएयू के परामर्श से निर्देश जारी करेगा और किसान उस पर अमल करें। इस थोड़े से रकबे में आये वायरस से किसानों को घबराने का आवश्यकता नहीं।