शिव की उपासना से जल्दी पूर्ण होती हैं मनोकामनाएं

भगवान भोलेनाथ को देवाधिदेव कहा गया है। उनकी शरण में जाने वालों की सभी प्रकार की कामनाएं सहज और स्वत: पूर्ण होती चली जाती हैं। एक बार भगवान शिव की कृपा प्राप्त कर लेने के बाद भक्त की सारी शंकाएं और आशंकाएं अपने आप दूर हो जाती हैं और जीवन में विलक्षण आनंद की अनुभूतियों के द्वार खुल जाते हैं।भगवान शिव की उपासना से लौकिक एवं पारलौकिक सिद्धियां सहज ही प्राप्त की जा सकती हैं। भगवान शिव की उपासना के लिए असंख्य मंत्र, स्तोत्र, पाठ इत्यादि हैं लेकिन इन सभी में रूद्रपाठ को ऋषि-मुनियों ने विशेष महत्व प्रदान किया है। शास्त्रों में रुद्रपाठ को कल्पवृक्ष कहा गया है। इसका अवलम्बन करने से अमृत तत्व की प्राप्ति होती है। जबकि दुर्गापाठ को कामदुधा कहा गया है जिसे शांतिपूर्वक अर्थानुसंधान पूर्ण श्रद्धा से पाठ किया जाए तो मनुष्य की तमाम कामनाएं अवश्य पूर्ण होती हैं। रुद्राष्टाध्यायी में आठ रुद्रों का समावेश माना गया है। रूद्राष्टाध्यायी में पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु एवं आकाश तथा मन, बुद्धि एवं अहंकार के रूप में व्याप्त रूद्र के रूप में प्रार्थना की गई है। शतपथ ब्राह्मण ग्रंथ में काण्ड 6 तथा शिव महिमास्तोत्र में आठ रुद्रों का वर्णन है—भव, शर्व, रुद्र, पशुपति, उग्र, महादेव, भीम एवं ईशान। ये तत्व तथा मन, बुद्धि एवं अहंकार के प्रतीक रूप में माने जाते हैं। रुद्राष्टाध्यायी के सभी अध्यायों में समाहित वैज्ञानिक रहस्यों को देखें तो इसके प्रथम अध्याय में मन को स्थिर करने, शिवसंकल्प मय बनाने का सूत्र छिपा है। दूसरे अध्याय में सहस्रशीर्षा से हज़ार सिर, हज़ार आंखें, हजार पांव आदि कहकर विराट रूप में बसने वाले भगवान रुद्र की सर्वव्यापकता बतलाई गई है। तीसरे अध्याय में वायु तथा ओज की प्रार्थना की गई है। रूद्राष्टाध्यायी के पंचम अध्याय में संसार के तमाम पदार्थों में रुद्र की भावना की गई है। छठे अध्याय में समस्त प्रकार की कामनाओं व आयुष्य की वृद्धि करने वाले तथा सप्तम अध्याय में सभी प्रकार की सुख प्राप्ति के लिए प्रार्थना की गई है। अष्टम  अध्याय में शान्ति  प्राप्ति एवं पृथ्वी तत्व, जलतत्व  द्वारा हमें सुख एवं सौ वर्ष बोलने की वाणी, सौ वर्ष देखने की शक्ति तथा सौ वर्ष दीनता रहित होने के साथ ही सौ वर्ष आयुष्य कामना की प्रार्थना भगवान रुद्र से की गई है। शिव महिमा स्तोत्र के श्लोक से स्पष्ट है कि अपने हृदय व मन को हम निष्काम भाव और शुचिता से इतना परिपूर्ण कर लें कि मन को शिव में स्थिर कर दे। तभी भगवान शिव अपने हृदय में विराजित हो सकते हैं। मन में शिव का वास हो जाने पर अनेक मंगलकामनाएं अपने आप पूर्ण होने लगती हैं और शिवत्व का सहज तथा स्वत: आभास होने लगता है। सामान्य व्यक्ति को शिव की उपासना के लिए यह ज़रूरी नहीं कि वैदिक ऋचाओं का गान किया जाए या स्तोत्रों का पारायण किया जाए। एक आम व्यक्ति भी यदि चाहे तो शिव उपासना के माध्यम से अपने जीवन में परिवर्तन ला सकता है। शिव उपासना से ग्रहों का शमन होता है, बीमारियों से पिण्ड छूटता है और आरोग्य, यश तथा ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। शिव को प्रसनन्न करने के लिए यह भी ज़रूरी नहीं कि भारी धनराशि व्यय कर कोई बड़ा अनुष्ठान करवाएं। साधारण व्यक्ति यदि कुछ भी करने में असमर्थ हो तो वह पंचाक्षरी मंत्र ऊँ नम: शिवाय, शिवाय नम: आदि के जप कर ले। इसके पांच लाख जप करने का विधान है। इतना हो जाने पर मंत्र में जागृति आ जाती है। यह भी नहीं हो सके तो पांच या पचास हज़ार मंत्र जप कर लिया जाना चाहिए। एक नियम बना लें कि रोजाना निर्धारित संख्या में मंत्र जप कर लिया जाए। निर्धारित मंत्र जप के अलावा दिन-रात में जब भी ध्यान आए, इस मंत्र का मानसिक जप भी यदि साथ ही चलता रहे तो इससे मिलने वाले फल में अभिवृद्धि होगी और आत्मिक शांति का भान होने लगेगा। यह अच्छी तरह ध्यान में रहना चाहिए कि मानसिक जप किसी भी अवस्था में, कहीं भी और कभी भी हो सकते हैं, उनका पूरा फल प्राप्त होगा। समय न मिले तो फुरसत के समय भगवान शिव का स्मरण करने की आदत डाल ली जानी चाहिए। भगवान भोलेनाथ की मामूली से मामूली उपासना भी बड़े से बड़ा चमत्कार दिखा सकती है। रोज़ाना शिवलिंग के दर्शन करें, इस पर पंचाक्षरी मंत्र या महामृत्युंजय मंत्र से जलाभिषेक करें। खास अवसरों पर कामना विशेष हो तो दूध, शुद्ध घी आदि उपचारों से अभिषेक करें। कुल मिलाकर शिव उपासना सबसे सरल और सहज है तथा इसे कोई भी कर सकता है। श्रेष्ठ पति या पत्नी प्राप्त करने के लिए शिवलिंग और गौरी मैया की पूजा करें। महाशिवरात्रि, श्रावण मास, प्रदोष आदि शिवोपासना के महापर्व हैं। इन दिनों में भगवान शिव की उपासना विशेष रूप से की जानी चाहिए। इससे शिवजी की प्रसन्नता प्राप्त होती है और वर्ष पर्यन्त आरोग्य तथा सुख-समृद्धि बनी रहती है।

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