पड़ाव-दर-पड़ाव रचा गया आज़ादी का इतिहास 

भारत में यूरोपीय लोग व्यापार करने आए पर बाद में यहां के शासक ही बन बैठे। सबसे पहले 1498 में पुर्तगाल से वास्को डिगामा ने कालीकट खोजा। फिर पुर्तगालियाें ने गोवा, दमन व दीव पर कब्जा कर लिया। 16वीं सदी में डच ईस्ट इंडिया कम्पनी व ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी भारत में आईं। 17वीं सदी में फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी भी भारत में आ गई। औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुगल साम्राज्य बिखरने लगा था। पेशवाओं के नेतृत्व में मराठों का उदय हुआ और दूसरी ओर यूरोपीय कम्पनियां भारत में अपने साम्राज्य का विस्तार करने लगीं। 
प्लासी का युद्ध 
अब तक फ्रांसीसी और ब्रिटिश कम्पनियों का ही वर्चस्व रह गया था। 1757 में अंग्रेज़ी कमांडर लॉर्ड क्लाइव और फ्रांसीसी कमांडर डूप्ले की सेनाओं में युद्ध हुआ। इसमें फ्रांसीसियों को हरा कर लॉर्ड क्लाइव ने भारत में अंग्रेजी साम्राज्य की नींव रखी।
पानीपत की तीसरी लड़ाई
 इस समय आलम यह था कि मुगल सम्राट मराठों की मदद से गद्दी पर बैठा था। उधर मराठे विजय के मद में चूर पंजाब व सरहिंद तक आक्र मण कर रहे थे। क्रोधित हो कर 1761 में अफगानिस्तान के सुल्तान अहमद शाह अब्दाली ने आक्र मण कर दिया। इस लड़ाई में मराठों की रीढ़ ही टूट गई। अब अंग्रेज़ों को रोकने वाला कोई न था।
बक्सर की लड़ाई 
1764 में बक्सर के मैदान में अंग्रेज़ों का मुकाबला बंगाल के नवाब मीर कासिम, अवध के नवाब शुजाउद्दौला और मुगल सम्राट शाह आलम की सेनाओं से हुआ। फ्रांसीसियों ने भी उनका साथ दिया था पर युद्ध अंग्रेज़ों ने जीता। मुगल सम्राट को बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी अंग्रेज़ाें को देनी पड़ी। 
मैसूर युद्ध
 हैदर अली और अंग्रेज़ों में मैसूर का प्रथम युद्ध हुआ जिसमें अंग्रेज़ों को हार मिली। उसके बाद उसके पुत्र टीपू सुल्तान ने भी अंग्रेज़ों की नींद उड़ाए रखी पर 1799 में मैसूर के चौथे युद्ध में उसने वीर गति पाई। अंग्रेज़ों ने अनेक युद्धों में गोरखाें, पिंडारियों और मराठों का दमन किया। उन्होंने राजपूताना के अनेक छोटे राज्यों को संरक्षण दे कर अपने अधीन कर लिया। 
1857 का स्वतंत्रता संग्राम : 
लॉर्ड डल्हौजी ने भारत की रियासतों को हड़पने के लिए ‘लैप्स का सिद्धांत’ बनाया। इसमें दत्तक पुत्र का राज्य पर अधिकार समाप्त कर दिया गया। इस कारण 1857 की क्रांति का श्रीगणेश हुआ। अंग्रेज़ों की कुटिल नीति के शिकार मुगल सम्राट बहादुरशाह ज़फर, नाना साहब पेशवा और झांसी की रानी लक्ष्मी बाई भी बनीं। दिल्ली के लाल किले में गुप्त मंत्रणाएं होने लगीं। तय हुआ कि बहादुरशाह ज़फर के नाम से क्रांति का आगाज़ किया जाए और उसकी तारीख 31 मई, 1857 रखी गई।
मेरठ का विद्रोह 
 बैरकपुर की छावनी में मंगल पांडे ने चर्बी वाले कारतूस को ले कर विद्रोह कर दिया। मंगल पांडे मेरठ से ही बैरकपुर गए थे। उनके बलिदान की खबर मेरठ आई तो वहां के सैनिकों ने विद्रोह कर दिया। उन्होंने कई अंग्रेज़ों को मौत के घाट उतार दिया। 10 मई, 1857 को उन्होंने ‘दिल्ली चलो’ का नारा लगाते हुए दिल्ली की ओर कूच किया। 
दिल्ली
11 मई प्रात: काल ही विद्रोही सैनिक दिल्ली पहुंच गए। दिल्ली के भारतीय सैनिक भी उनसे मिल गए। अंग्रेज़ों को मार कर विद्रोही लाल किले में घुसे। बहादुर शाह ज़फर को सम्राट घोषित किया गया और हाथी पर बैठा कर चांदनी चौक में जुलूस निकाला। 
दिल्ली के आसपास 
 क्रांति की आग शीघ्र ही दिल्ली व आसपास फैल गई। अलीगढ़, इटावा, मैनपुरी, मुरादाबाद और बरेली में भी अंग्रेज़ों का वध कर, बहादुरशाह ज़फर का हरा झंडा फहराया गया। अंग्रेज़ों ने मद्रास, और गोरखा रेजीमेंट को बुला कर क्रांति का दमन किया। बहादुरशाह को बंदी बना कर उनके पुत्रों के सिर काट कर उनके पास भेजे गए। फिर उन्हें म्यांमार में रंगून भेज दिया गया जहां उनका देहांत हुआ। 
बनारस 
 बनारस में अंग्रेज़ों ने क्रांति का बड़े क्रूरतापूर्ण ढंग से दमन किया। गांव के गांव जला दिए। स्त्रियाें और पुरुषों को मौत के घाट उतार दिया गया।
इलाहाबाद 
 इलाहाबाद में मौलवी लियाकत अली के नेतृत्व में किले पर अधिकार कर लिया गया। बाद में अंग्रेज़ों ने क्रांतिकारियों का दमन कर उनके शव नीम के पेड़ पर लटका दिए।
कानपुर 
नाना साहब पेशवा ने कानपुर और उसके आसपास के क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया था। नाना ने अंग्रेज़ों को पकड़ कर नदी पार भेजा, तभी कुछ क्रांतिकारियों ने उनका वध कर दिया। कानपुर, बिठूर, लखनऊ और ग्वालियर में नाना साहब पेशवा और तांत्या टोपे का कई बार अंग्रेज़ों से सामना हुआ। अंत में तांत्या टोपे काल्पी चले गए। 
लखनऊ 
क्रांति का सबसे भीषण रूप अवध में था। वहां सेना और जनता में अपार उत्साह था। क्रांतिकारियों ने लखनऊ रेजीडेंसी पर अधिकार कर लिया था। उधर नाना साहब ने अहमद शाह को मिला कर शाहजहांपुर और बरेली पर अधिकार कर लिया। अहमदशाह लखनऊ आया तो एक देशद्रोही ने उसका वध कर दिया। अंत में क्रांति के नेता नेपाल की तराई में चले गए। 
झांसी 
1858 में झांसी का दमन करने के लिए सर ह्यूरोज को भेजा गया। तांत्या टोपे रानी लक्ष्मीबाई की सहायता के लिए आए। रानी ने किले से निकल कर अंग्रेज़ों से बड़ी वीरता से लोहा लिया और वीर गति पाई। अब तांत्या टोपे ही शेष बचे थे। उनके पास अब न सेना थी और न धन। वह नागपुर गए, फिर उदयपुर होते हुए अलवर पहुंचे, जहां किसी ने उन्हें पकड़वा दिया। अंत में उन्हें फांसी दे दी गई। तथापि क्रांति का क्षेत्र दिल्ली से बंगाल तक ही सीमित रहा। अंग्रेज ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति पर चलते हुए आगे से आगे बढ़ते चले गये। इसके बाद अंग्रेज़ी राज कम्पनी से ब्रिटेन की महारानी के हाथ आ गया। अंग्रेज़ों ने अपनी नीतियों में परिवर्तन किए। अंत में गांधी जी के शांतिपूर्ण आंदोलन से हमें आज़ादी मिली।  (युवराज)