बिहार की राजनीति—दशा और दिशा
पिछले सात-आठ वर्षों में बिहार की राजनीति में पहली बार कुछ अच्छा हुआ है। यह आश्चर्यजनक ही है कि ताज़ा घटनाक्रम के बाद राजद, जदयू और भाजपा तीनों के वोटर और समर्थक खुश हैं। हम तेजस्वी के वोटर नहीं रहे पर ताज़ा खेल के बाद लड़के को बधाई देनी बनती है। क्या शानदार खेला है। राजद का समर्थन लेकर नितीश जी के पास नहीं गया। नितीश जी का अहंकार तोड़ते हुए तेजस्वी ने कहा, ‘घर आओ, माँ से मिल कर समर्थन की चिट्ठी ले जाओ..।’ यूँ भी, पलटने की जो परम्परा नितीश जी ने बनाई है, उसके बाद कोई उन पर सहजता से भरोसा नहीं कर सकेगा। नितीश चल कर लालू के घर पहुँचे, लालू यादव परिवार का समर्थन लिया और कुर्सी बचाई।
नितीश जी कभी जनाधार वाले नेता नहीं रहे। हर बार दूसरों के वोट के बल पर लड़े हैं। कभी लालू के वोट से जीते, कभी भाजपा के वोट से। अकेले लड़ने का साहस कभी नहीं रहा। यहां तक कि पिछले बीस वर्षों में स्वयं कभी चुनाव तक नहीं लड़े। इस पलटी के साथ उन्होंने अपना बचा खुचा जनाधार भी समाप्त कर लिया। यह भी तय है कि नितीश भाजपा के साथ रह कर जिस तरह की तानाशाही दिखाते थे, वह राजद के साथ नहीं दिखा सकेंगे। भाजपा के कार्यकर्ता तो किसी भी तरह उन्हें स्वीकार कर लेते थे पर राजद के कार्यकर्ता उन्हें अपना नेता कभी स्वीकार नहीं करेंगे। भाजपा के वोटर इस बात से खुश हैं कि चलो मुक्ति मिली। हम वोट करते थे भाजपा के लिए पर बिहार भाजपा हमारा मत ले जा कर जदयू के चरणों में रख देती और नितीश निर्दयतापूर्वक हमारे मुद्दों को कुचल देते। जिस नितीश के पास अपने दम पर केवल तीन सांसद थे, उन्हें अपने वोट के बल पर भाजपा ने पन्द्रह सांसद दे दिए। बिहार भाजपा ने नितीश के मोह में अपने मतदाताओं का जितना अपमान किया है, वह किसी ने न किया होगा। अब उम्मीद है कि बिहार भाजपा बदलेगी। यदि बिहार भाजपा के लोग अपनी रीढ़ सीधी रखें और मेहनत करें तो अगले चुनाव में मजबूती से खड़े हो सकते हैं। यह भाजपा के हित में तो सही होगा ही, राज्य के हित में भी सही होगा। तेजस्वी के लिए यह सुन्दर समय है। राज्य उनके हाथ में है। वह यदि नितीश जी की जिद्द को काबू में कर के जनता के मुद्दों पर काम कर सकें तो उनका भविष्य सुखद होगा।
यदि बात जदयू की करें तो उसका लगभग विलय हो चुका। अगले चुनावों में वह कहीं नहीं होगी। राजद अगले चुनाव में नितीश को मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं बनाएगा और भाजपा को तिबारा उन्हें स्वीकार नहीं ही करना चाहिये। अगर ऐसा होता है तो नितीश जी के पास संन्यास के अतिरिक्त अन्य कोई रास्ता नहीं बचेगा। कुल मिला कर अगले चुनाव में बिहार में भाजपा और राजद ही बचेगी और यह बिहार के हित में होगा। (युवराज)