किसानों के लिए महत्वपूर्ण होते हैं किसान मेले 

कृषि पक्ष से सितम्बर महीना और इस दौरान आयोजित  किये जा रहे किसान मेले किसानों के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। धान की फसल पूरे यौवन पर होती है। फलदार पौधे लगाने के लिए उचित समय होता है। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय द्वारा अमृतसर, बल्लोवाल सौंखड़ी तथा गुरदासपुर में किसान मेले क्रमवार 2 सितम्बर, 6 सितम्बर तथा 9 सितम्बर को लगाए जा चुके हैं। 13 सितम्बर को फरीदकोट में  एकदिवसीय किसान मेला लगाया गया। रौणी (पटियाला) में क्षेत्रीय किसान मेला 16 सितम्बर को आयोजित किया जाएगा। पीएयू का मुख्य दो दिवसीय किसान मेला लुधियाना में विश्वविद्यालय परिसर में 23-24 सितम्बर को आयोजित किया जाएगा। इसी कड़ी का अंतिम किसान मेला 29 सितम्बर को बठिंडा में आयोजित होगा। 
ये किसान मेले किसानों तक कृषि ज्ञान-विज्ञान, फसलों संबंधी जानकारी तथा शुद्ध बीज उपलब्ध करने के लिए आयोजित किये जाते हैं। मशीनरी, कृषि सामग्री तथा कृषि से जुड़े अन्य कार्यों संबंधी मेलों में प्रदर्शनियां लगा कर जानकारी दी जाती है। किसानों की राय तथा पिछली अनुसंधान विधियां जो किसानों को दी गईं, उनका मूल्यांकन भी होता है तथा वैज्ञानिकों को उनकी सफलता तथा किसानों की ज़रूरतों संबंधी जानकारी मिलती है ताकि वे भविष्य में अनुसंधान को उसके अनुकूल बना सकें। नई कृषि तकनीकों तथा अनुसंधान विधियों का प्रदर्शन भी इन मेलों में ही किया जाता है। ये किसान मेले कृषि विशेषज्ञों, वैज्ञानिकों तथा किसानों का सुमेल हैं। किसान एक-दूसरे के साथ विचार-विमर्श करते हैं। मेलों में किसान अपनी समस्याओं का समाधान ढूंढते हैं तथा वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए प्रतिक्रिया लेते हैं। प्रश्न-उत्तर गोष्ठियां भी इन मेलों में होती हैं जहां वैज्ञानिकों द्वारा किसानों के प्रश्नों के उत्तर दिये जाते हैं। आम किसान इन मेलों में नई किस्म के बीज तथा वर्तमान फसलों के स्तरीय बीजों की खरीद करते हैं। गेहूं रबी की मुख्य फसल है। किसान इस फसल के विभिन्न किस्मों के बीज विशेष तौर पर खरीद कर ले जाते हैं। उपकुलपति डा. सतबीर सिंह गोसल की दूरदर्शिता है कि वह नई किस्म के बीज भी किसानों को इन मेलों में उपलब्ध करवा रहे हैं। किसान फलों के पौधे आदि भी मेलों में खरीद कर अपने घरों तथा खेतों में लगाते हैं। गत 2-3 वर्षों से कोविड के कारण ये मेले ज़मीनी तौर पर नहीं लगाए गए। चाहे किसानों को फसलों एवं अनुसंधान की जानकारी देने के लिए वर्चुअल मेले आयोजित होते रहे। किसानों का कहना है कि जो मज़ा असल मेलों में शामिल होने का आता है, वह वर्चुअल किसान मेलों में नहीं आया। इसीलिए सितम्बर महीने के इन मेलों में किसान पूरे जोश से भाग लेने के लिए पहुंच रहे हैं। 
मेलों में किसानों के लिए सबसे बड़ी मांग गेहूं की फसल के संशोधित एवं शुद्ध बीजों की है। बीज किसानों की प्राथमिक एवं मुख्य आवश्यकता हैं क्योंकि इसकी गुणवत्ता एवं शुद्धता का फसल के उत्पादन पर सीधा प्रभाव पड़ता है। संशोधित बीजों की उगने की शक्ति अधिक होती है और ये रोग रहित होते हैं। इनका इस्तेमाल कृषि उत्पादन में 20 प्रतिशत तक वृद्धि कर सकता है। इन बीजों की कम से कम उगने की शक्ति निर्धारित होती है और फैलने वाली बीमारियों एवं नदीनों से ये बीज मुक्त होते हैं। 
विशाल रकबे पर 35 लाख हैक्टेयर तक बीजी जाने वाली गेहूं की फसल के लिए नये बीज लेने के लिए किसान विशेष तौर पर उत्सुक हैं। गेहूं की नई किस्म पीबीडब्ल्यू-826 जिसका औसत  उत्पादन 24 क्ंिवटल प्रति एकड़ है, प्राप्त करने के लिए किसान पूछताछ कर रहे हैं। प्रत्येक छोटा-बड़ा किसान गेहूं की बिजाई करता है क्योंकि यह एक सुनिश्चित फसल मानी जाती है। किसानों की सुविधा के लिए उपकुलपति डा. सतबीर सिंह गोसल ने गेहूं की पीबीडब्ल्यू-824, सुनहरी (पीबीडब्ल्यू 766), उन्नत पीबीडब्ल्यू-343, पीबीडब्ल्यू-725, पीबीडब्ल्यू-677, एचडी-3086, डब्ल्यूएच-1105, पीबीडब्ल्यू-803, पीबीडब्ल्यू-869, पीबीडब्ल्यू-1 चपाती, पीबीडब्ल्यू-1 ज़्ंिक, उन्नत पीबीडब्ल्यू-550, पीबीडब्ल्यू-752, पीबीडब्ल्यू-771, पीबीडब्ल्यू-757 तथा पीबीडब्ल्यू-660 आति किस्मों के बीज मेलों के अतिरिक्त पीएयू के फार्म सलाहकार सेवा केन्द्रों, कृषि अनुसंधान केन्द्रों, कृषि विज्ञान केन्द्रों तथा बीज उत्पादन फार्मों पर भी किसानों को देने के लिए उपलब्ध करवा दिये हैं। 
इसके अतिरिक्त पंजाब यंग फार्मज़र् एसोसिएशन, आईसीएआर-आईएआर आईकोलैबोरेटिव आऊट स्टेशन रिसर्च सैंटर रखड़ा में 20 सितम्बर को सीड डिस्ट्रीब्यूशन-कम-ट्रेनिंग कैम्प आयोजित कर रही है जिसमें किसानों को रबी की मुख्य फसल गेहूं के विभिन्न किस्मों के बीज उपलब्ध किये जाएंगे। जिन किस्मों के बीज दिये जाएंगे उनमें सबसे अधिक उत्पादन देने वाली डीबीडब्ल्यू-303, डीबीडब्ल्यू-222 तथा डीबीडब्ल्यू-187 किस्में शामिल हैं। इनके अतिरिक्त एचडी-3086, एचडी-2967, एचआई-1620 तथा पिछेती बिजाई के लिए एचडी-3298 किस्मों के बीज भी किसान थोड़ी-थोड़ी मात्रा में खरीद सकेंगे। कैम्प में किसानों को धान, बासमती की नई किस्मों पूसा बासमती-1847, पूसा बासमती-1885 तथा पूसा बासमती-1886 की जानकारी देकर उनकी फसलों के प्लाट दिखाए जाएंगे। पूसा बासमती-1847 कम समय में पकने वाली, अधिक उत्पादन देने वाली किस्म है जो कम पानी से भी पक जाती है। किसानों ने इस किस्म को अगेती लगा कर 3500 से 4000 रुपये प्रति क्ंिवटल तक फसल बेच कर इस वर्ष काफी लाभ लिया है। इस किस्म का उत्पादन पीबी-1509 तथा पीबी-1692 दोनों किस्मों से अधिक है। दूसरी विकसित किस्म पूसा बासमती-1885 है जो पूसा बासमती-1121 किस्म का विकल्प तथा संशोधित रूप है। तीसरी बढ़िया चावल वाली किस्म पूसा बासमती-1886 है, जो पूसा बासमती-6 (पूसा-1401) किस्म का संशोधित रूप है। इसका चावल घरेलू मंडी में 8600 से 8700 रुपये प्रति क्ंिवटल तक थोक में बिका है। ये तीनों किस्में झुलस तथा भुरड़ रोगों (बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट तथा ब्लास्ट) का मुकाबला करने की भी समर्था रखती हैं। इन किस्मों के बीज की प्राप्ति किसानों के लिए आगामी खरीफ के मेले तक आकर्षण का केन्द्र बनी रहेगी।  किसान वैज्ञानिकों के साथ सम्पर्क चाहते हैं, राजनीतिक लैक्चर नहीं। किसानों को आवश्यकता के अनुसार संशोधित बीज इन किसान मेलों में या प्रमाणित संस्थाओं, विक्रेताओं से ही खरीदने चाहिए। गेहूं की किस्म का चयन क्षेत्र, सिंचाई एवं बिजाई के समय को मुख्य रख कर करना चाहिए। वैज्ञानिकों द्वारा इन मेलों में की जा रही सिफारिशों को मान कर उत्पादन बढ़ाना चाहिए।