‘भारत जोड़ो यात्रा’ की भावना

विगत लम्बी अवधि से सोनिया गांधी एवं राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस का आधार क्षरित होता जा रहा है। विगत कुछ वर्षों में इससे सम्बद्ध रहे बड़े-बड़े नेता इससे किनारा कर गये हैं। इस पर परिवारवादी पार्टी होने का आरोप भी लगता रहा है। इस कारण ही यह मांग उठती रही है कि अब गांधी परिवार से बाहर के किसी नेता का नये अध्यक्ष के रूप में चुनाव होना चाहिए जो पार्टी के भीतर पुन: उत्साह एवं नई भावना का संचार कर सके। जिस प्रकार धीरे-धीरे इसके हाथ से राज्य खिसकते गये हैं, जिस प्रकार पार्टी के भीतर बिखराव बढ़ता गया, जिस प्रकार इसमें अनुशासन की कमी बुरी तरह से खटकने लगी, उसे देखते हुये इसके भविष्य के बारे में भी प्रश्न-चिन्ह उठने लगे हैं। 
इसका स्थान कुछ अन्य पार्टियों ने भी लेने का यत्न किया है परन्तु इसके साथ ही भिन्न-भिन्न पार्टियों से सम्बद्ध कुछ बड़े नेताओं ने भाजपा की निरन्तर बढ़ती हुई शक्ति को देखते हुये इसके साथ मिल कर एक मंच पर एकत्रित होने का भी यत्न किया है। काफी समय पहले ममता बैनर्जी ने भी इस संबंध में सक्रियता दिखाई थी। शरद पवार ने भी अन्य पार्टियों के नेताओं के साथ सम्पर्क साधा था। अब भाजपा से अलग होकर तथा लालू प्रसाद यादव के राष्ट्रीय जनता दल के साथ मिल कर अपनी सरकार को कायम रखने में सफल रहे नितीश कुमार ने भी अन्य पार्टियों को जोड़ने के लिए यत्न शुरू कर दिये हैं परन्तु इस समय तक भी यह निश्चय के साथ नहीं कहा जा सकता कि ये यत्न किस सीमा तक सफल होंगे तथा यह भी कि कांग्रेस आगामी समय में किस सीमा तक स्वयं मजबूत बन सकेगी तथा विरोधी धारणाओं को किस सीमा तक साथ लेने में भी सफल हो सकेगी। गुलाम नबी आज़ाद जैसे बड़े नेताओं ने इससे अलग होकर अपनी भिन्न पार्टी बनाने की घोषणा कर दी है। इसके अतिरिक्त नित्यप्रति कई नेता सोनिया गांधी एवं राहुल गांधी की आलोचना करते हुये भी नज़र आ रहे हैं। पार्टी अध्यक्ष के चुनाव को पहले तो लटकाया जाता रहा परन्तु अब होने जा रहा यह चुनाव बड़े विवादों का विषय भी बनते हुये दिखाई दे रहा है। इसीलिए ही अब भी अंगुलियां राहुल गांधी, सोनिया गांधी एवं प्रियंका गांधी की ओर उठ रही हैं। चाहे अब  भी पार्टी का एक बड़ा वर्ग उनके साथ खड़ा दिखाई दे रहा है परन्तु फिर भी देर अथवा सवेर इस पार्टी के टूटने की अटकलें लगाई जा रही हैं। 
इसी काल में राहुल गांधी की ओर से ‘भारत जोड़ो यात्रा’ शुरू करना भी एक बड़ी चर्चा का विषय बन चुका है। इस यात्रा को प्रारम्भ हुये एक सप्ताह से अधिक का समय हो चुका है। पूर्व घोषणा के अनुसार राहुल गांधी के नेतृत्व में यह यात्रा कन्याकुमारी से शुरू हो चुकी है। प्रतिदिन न्यूनतम लगभग 20 किलोमीटर पैदल मार्ग तय किया जाना है। यह देश के 12 राज्यों एवं दो केन्द्र शासित प्रदेशों में से गुज़रेगी तथा 3500 किलोमीटर से अधिक का पथ तय करेगी। भाजपा के नेताओं ने इस संबंध में अनेक टिप्पणियां की हैं। इसे राहुल गांधी की मात्र ड्रामेबाज़ी तक कहते हुये इसे प्रभावहीन कहा जा रहा है। इसके साथ ही अन्य राजनीतिक दलों ने भी इसे कोई अधिक समर्थन नहीं दिया तथा इसे मात्र कमज़ोर छवि वाली पार्टी कांग्रेस की सक्रियता ही करार दिया है तथा यह भी कि सम्भवत: ऐसी सक्रियता पार्टी को कुछ ढाढस बंधाने वाली सिद्ध हो सकती है। 
परन्तु हम इस यात्रा की भावना को इसलिए अर्थपूर्ण समझते हैं क्योंकि विगत 8 वर्ष से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में तथा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के दिशा-निर्देशों पर चल रही केन्द्र सरकार ने चाहे अनेक क्षेत्रों में बड़ी उपलब्धियां हासिल की हैं। उसने देश को सुदृढ़ता की ओर गतिशील करने का यत्न भी किया है। अन्तर्राष्ट्रीय धरातल पर भी देश एवं इसके प्रधानमंत्री की भारी चर्चा होती रही है परन्तु इस काल में भिन्न-भिन्न समुदायों के बीच मतभेद बढ़ाने वाली जिस प्रकार की नीतियां अपनाई जा रही हैं, वे देश की एकता, अखंडता एवं भ्रातृत्वपूर्ण साझ पर आघात पहुंचाने वाली कही जा सकती हैं। देश भर में जिस प्रकार कुछ धार्मिक मामलों को लेकर वातावरण बनाया जा रहा है, वह ऐसी घृणा को जन्म दे सकता है जो देश के बहु-पक्षीय विकास के लिए हानिकर सिद्ध हो सकती है। ऐसे समय में राहुल गांधी की ओर से की जा रही यह यात्रा चाहे भारी प्रभाव डालने वाली सिद्ध न भी हो परन्तु इस पिछले संदेश को दृष्टिविगत नहीं किया जा सकता तथा इसके लिए प्रत्येक स्तर पर एकजुटता दिखाने भी आवश्यकता होगी। यह यात्रा भारत को भावनात्मक रूप में किस सीमा तक जोड़ने में सफल हो सकेगी, यह देखने वाली बात होगी। 

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द