किसानों में गेहूं की नई किस्मों के बीज के लिए भारी उत्साह

चाहे आज धान तथा बासमती किस्मों तथा नरमे की फसल की कटाई शुरू होने में कुछ समय शेष है। किसान अभी से गेहूं की काश्त संबंधी योजनाबंदी कर रहे हैं। वे सोच रहे हैं कि गेहूं की कौन-सी किस्म की बिजाई की जाए जिससे वे अधिक उत्पादन एवं आय प्राप्त कर सकें। प्रगतिशील किसानों का झुकाव अधिक उत्पादन देने वाली नई किस्मों की काश्त करने की ओर है। कुछ किसानों ने नई किस्में लगा कर बीजों के व्यापार का धंधा भी अपनाया है। वे किसान मेलों तथा कैंपों में नई किस्म के बीजों की तलाश में घूम रहे हैं क्योंकि नई किस्म के बीज मेलों तथा कैंपों में ही उपलब्ध होते हैं। मेले तथा कैंप इसी माह लगाए जाते हैं ताकि किसान खरीफ की फसल के खेतों तथा धान आदि किस्म का भी मुआतला कर सकें। पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी (पीएयू) का मेला लुधियाना में 24-25 सितम्बर को लगाया जा रहा है। 
अधिकतर किसान पीएयू द्वारा हाल ही में सिफारिश की गई गेहूं की पीबीडब्ल्यू-826 किस्म तथा आईसीएआर-भारतीय गेहूं तथा जौ की खोज करने वाले करनाल स्थित अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित की गई डीबीडब्ल्यू-303 तथा डीबीडब्ल्यू-222 किस्म के बीज की तलाश में है। प्रगतिशील किसानों द्वारा मिली रिपोर्ट के अनुसार गत वर्षों के दौरान डीबीडब्ल्यू-303 किस्म सभी दूसरी किस्मों से अधिक उत्पादन देती रही है। आईआईडब्ल्यूबीआर करनाल (करनाल स्थित आईसीएआर अनुसंधान संस्थान) के डायरैक्टर डा. ज्ञानइन्द्र प्रताप सिंह के अनुसार डीबीडब्ल्यू-222 तथा डीबीडब्ल्यू-187 किस्म का औसत उत्पादन 25 क्ंिवटल प्रति एकड़ के आस-पास है तथा डीबीडब्ल्यू-303 किस्म का उत्पादन देने की शक्ति 30-32 क्ंिवटल प्रति एकड़ तक की है। इन तीनों किस्म का थोड़ा-थोड़ा बीज किसान आईआईडब्ल्यूबीआर करनाल से अक्तूबर में प्राप्त कर सकेंगे। पीबीडब्ल्यू-826 किस्म का बीज पीएयू द्वारा लगाए जा रहे किसान मेलों में इसके द्वारा बनाई नीति (2 किलो प्रति किसान) अनुसार बांटा जा रहा है। 
बीज बना कर बेचने वाले किसान तथा व्यापारी तो हाल ही में गेहूं के वैज्ञानिकों की ग्वालियर में हुई वर्कशाप में पीएयू द्वारा विकसित पीबीडब्ल्यू-872 तथा पीबीडब्ल्यू-833 किस्मों की जो पहचान की गई है, उनका बीज लेने का भी प्रयास कर रहे हैं। इसी प्रकार आईसीएआर आईआईडब्ल्यूबीआर करनाल द्वारा विकसित डीबीडब्ल्यू -370, डीबीडब्ल्यू-371 तथा डीबीडब्ल्यू-372 किस्मों की भी पहचान इसी गेहूं वैज्ञानिकों की वर्कशाप में की गई जो उत्पादन पक्ष से उत्तम हैं। इन किस्मों का बीज लेने के लिए भी बीज बेचने का कारोबार करने वाले व्यापारी तथा प्रगतिशील किसान कोशिश कर रहे हैं। किसानों को सलाह दी जाती है कि ग्वालियर गेहूं वैज्ञानिकों की वर्कशाप में पहचान की गई नई किस्मों को वे फसलों की किस्मों व स्तर की प्रमाणिकता देने वाली केन्द्र की सब कमेटी द्वारा रिलीज़ तथा नोटिफाई करने के बाद ही काश्त करें। गांवों में आम किसान तो अभी तक भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित एचडी-3086, एचडी-3226 एवं एचडी-2967 तथा आईआईडब्ल्यूबीआर करनाल द्वारा विकसित डीबीडब्ल्यू-187 एवं डीबीडब्ल्यू-222 किस्में तथा पीएयू द्वारा सिफारिश की गईं पीबीडब्ल्यू 1 चपाती, सुनहरी (पीबीडब्ल्यू-766), पीबीडब्ल्यू-824, उन्नत पीबीडब्ल्यू-343, उन्नत पीबीडब्ल्यू-550 तथा डब्ल्यूएच 1105आदि किस्मों की ही बिजाई करते हैं। उन तक नई किस्मों के बीज बहुत देर तक पहुंचते हैं।  
नई किस्म के बीज किसान मेलों या कैम्पों में ही उपलब्ध होते हैं जो सितम्बर में आयोजित किये जाते हैं। छोटे तथा दूर-दराज गांवों में रह रहे किसानों की ऐसी तो समर्था नहीं है कि वे इन मेलों में पहुंच सकें। सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि सितम्बर में उनकी खरीफ की फसल बिक कर पैसे उनके पास नहीं आए होते और इस महीने उनके पास खरीद शक्ति भी नहीं होती। सहकारी सोसायटियों तथा बैंक भी उन्हें इस महीने बीज लेने के लिए ऋण नहीं देते। पहले यह किसान आढ़तियों से ऋण लेकर अपनी ज़रूरत को पूरा कर लेते थे परन्तु अब उन्होंने भी किसानों को ऋण तथा पेशगी देना बंद कर दिया है। फिर मेलों में लाइन लगा कर बीजों की जो 22 किलो की थैलियां दी जाती हैं, वह चालाक तथा बीज का काम करने वाले व्यक्ति किराये पर लिये लोगों को कतारों में खड़े करके बीज ले जाते हैं। बीज वितरण के इस सिस्टम में सुधार लाने की आवश्यकता है ताकि बीज सही किसानों के पास पहुंचे। ये छोटे एवं सीमांत किसान तो नये ज्ञान विज्ञान तथा नये बीजों से वंचित रह जाते हैं जिसके बाद उनका उत्पादन भी कम होता है और कमाई में भी कमी आती है। 
गेहूं की काश्त लगभग 35 लाख हैक्टेयर रकबे पर की जानी है। खरीफ में तो पानी की गिरावट तथा प्रदूषण के दृष्टिगत फसली विभिन्नता की आवश्यकता है परन्तु रबी में गेहूं का न कोई विकल्प है और न ही फसली विभिन्नता लाने की कोई खास ज़रूरत है। प्रत्येक छोटा-बड़ा किसान गेहूं को गेहूं की बिजाई करता है क्योंकि यह एक सुनिश्चित फसल है। वर्ष 2020-21 में इसकी काश्त 35.30 लाख हैक्टेयर रकबे में की गई थी और उत्पादन 171.85 लाख टन हुआ था। उत्पादन 48.80 क्ंिवटल प्रति एकड़ रहा। वर्ष 2021-22 में मार्च महीने में गर्मी पड़ने के कारण तथा मौसम अनुकूल न रहने के कारण उत्पादन में बहुत कमी आई। यहां तक कि उत्पादन 43 क्ंिवटल प्रति हैक्टेयर रह गया। सरकारी खरीद में भी कमी आई। उत्पादन कम होने के कारण प्रधानमंत्री तथा अन्य सुरक्षा योजनाओं के तहत जो एक बड़ी जमसंख्या को मुफ्त या रियायती कीमत पर गेहूं दी जा रही है, उसे सितम्बर के बाद कायम रखना भी सरकार के लिए मुश्किल कार्य बना हुआ है। रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण दूसरे देशों में गेहूं की काफी कमी हो गई है। ये दोनों देश भारी मात्रा में विश्व के अन्य देशों को गेहूं उपलब्ध करते हैं। भारत ने गेहूं के निर्यात पर पाबंदी लगाई हुई है। भारत का गेहूं उत्पादन का अनुमान गिर कर 106.41 मिलीयन टन रह गया जबकि शुरू में अनुमान 111.32 मिलीयन टन तथा बाद में 110 मिलीयन टन था।