‘भारतीयता’ के पावन पथ पर अग्रसर ‘भारत जोड़ो यात्रा ’

कांग्रेस नेता राहुल गांधी के नेतृत्व में कन्याकुमारी से जम्मू-कश्मीर तक की जाने वाली लगभग 3500 कि.मी. की पदयात्रा अपने पहले चरण में पूरी सफलता,जनसमर्थन, हर्षोल्लास व भरपूर उत्साह के साथ तमिलनाडु से होकर केरल से गुज़रती हुई आगे बढ़ गई है। गत 7 सितम्बर को शुरू हुई यह यात्रा 12 राज्यों व दो केंद्र शासित प्रदेशों से गुज़रते हुये अनुमानत: 150 दिन में कश्मीर पहुंचेगी। इस पदयात्रा का नेतृत्व व संचालन कांग्रेस पार्टी द्वारा किये जाने के बावजूद इसे अनेक गैर-कांग्रेसी राजनीतिक दलों व अनेक गैर-सरकारी संगठनों व उनके प्रमुख नेताओं का भी समर्थन हासिल है। स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेज़ों के विरुद्ध अग्रणी भूमिका निभाने वाली कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व में यह यात्रा ऐसे समय में भी हो रही है जबकि कांग्रेस की सर्वधर्म समभाव की गांधीवादी नीतियों से हमेशा नफरत करने वाली शक्तियों द्वारा बड़े ही सुनियोजित व षड्यंत्रकारी तरीके से कांग्रेस को कमज़ोर करने की कोशिश की जा रही है। 
देश में आज साम्प्रदायिक उन्माद को बढ़ावा देने के साथ साथ ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ का नारा दिया जा रहा है। परन्तु भारत को धर्म, संप्रदाय, जाति, भाषा व रंगभेद आदि के मतभेदों से मुक्त कराने तथा देश के लोगों में भारतीयता का भाव जगाने व देश को एक करने की मुहिम के अंतर्गत की जाने वाली इस यात्रा की भरपूर सफलता व रास्ते में मिल रहे समर्थन ने साम्प्रदायिकतावादी शक्तियों के होश उड़ा कर रख दिये हैं। यात्रा की अपार सफलता का अंदाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि इस यात्रा में निर्धारित योजनानुसार राहुल गांधी सहित एक सौ भारत यात्री हैं जो कन्याकुमारी से कश्मीर तक पैदल चलेंगे। एक सौ राज्य यात्री अपने-अपने राज्यों में पूरी यात्रा में साथ होंगे व इनके अतिरिक्त एक सौ स्थानीय अतिथि यात्री शामिल होने की योजना है। एक समय में तीन सौ यात्रियों के समूह को शामिल किये जाने की योजना है।
यात्रा के दौरान राहुल गांधी भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की विचारधारा पर लगातार हमलावर हैं। यात्रा में जगह-जगह राहुल बता रहे हैं कि भाजपा व संघ किस तरह देश में हिंसा, नफरत और नाराज़गी फैला रहे हैं। वह बता रहे हैं कि किस तरह महात्मा गांधी ने एक महाशक्ति को हराने के लिए अहिंसा का इस्तेमाल किया था और आज हमारी ‘भारतीयता’ रूपी वही अहिंसावादी शक्तियां भाजपा और संघ की विचारधारा के कारण कमज़ोर हो रही हैं। ज़ाहिर है सत्ता व संघ पर किये जा रहे इस आक्रमण से घबराये हुये लोग जनता को राहुल के इन आरोपों का जवाब देने के बजाये ‘खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे’ की कहावत को चरितार्थ करते हुये कभी यह दुष्प्रचारित करते हैं कि यह ‘फाइव स्टार प्रबंधन’ वाली यात्रा है। कभी एक केंद्रीय मंत्री अपनी अल्प जानकारी के चलते या जानबूझकर यह बोलती हैं कि राहुल ने यात्रा तो कन्याकुमारी से शुरू की परन्तु वह विवेकानंद रॉक स्थित स्वामी विवेकानंद की प्रतिमा पर माल्यार्पण करने नहीं गये जबकि राहुल वहां गये भी थे। 
हद तो यह है कि देश के गृह मंत्री एक सभा में गांधी द्वारा यात्रा के दौरान पहनी गयी टी-शर्ट की कीमत तक बताने लगते हैं। कोई कहता है कि यह राहुल को स्थापित करने की यात्रा है, तो कोई इसे कांग्रेस को पुनर्जीवित करने की कोशिश बता रहा है। कभी इस यात्रा को सम्प्रदायिककता का रंग देने के लिये यात्रा के दौरान राहुल के एक पादरी से मिलने पर सवाल उठाया जाता है। कोई कहता है कि राहुल को यह यात्रा पाकिस्तान में करनी चाहिये  परन्तु यात्रा से घबराये व भयभीत लोगों में से कोई भी राहुल गांधी द्वारा यात्रा के दौरान उठाये जाने वाले साम्प्रदायिकता, जातिवाद, अराजकता, पूंजीवादी लूट, बेरोज़गारी, महंगाई, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी नोटबंदी से चौपट हुई देश की अर्थ-व्यवस्था आदि के जन-सरोकारों से जुड़े सवालों का जवाब देने की स्थिति में नहीं है।
कांग्रेस का मानना है कि देश को जोड़ने वाले ऐसे कार्यक्रमों की बहुत सख्त ज़रूरत है क्योंकि आजकल विघटनकारी शक्तियां प्रबल हैं और केंद्र की भाजपा सरकार द्वारा इन शक्तियों को संरक्षण मिला हुआ है। पार्टी के अनुसार भारत इस समय एक ऐसे खतरनाक दौर से गुजर रहा है जबकि विघटनकारी व साम्प्रदायिक ताकतें सत्ता संरक्षण में इसे धर्म के आधार पर तोड़ने का व्यापक अभियान चला रही हैं। कांग्रेस के मुताबिक चूंकि पार्टी ने अंग्रेज़ों के विरुद्ध संघर्ष कर देश को आज़ाद कराया था इसलिये देश पर आये वर्तमान संकट के दौर में कांग्रेस पार्टी मूक दर्शक बन कर नहीं रह सकती। महात्मा गांधी ने भी अहमदाबाद से दांडी तक 241 किलोमीटर की पद यात्रा की थी और अंग्रेज़ों द्वारा बनाया गया नमक कानून तोड़ने में सफल हुए थे । चंद्रशेखर ने भी 6 जनवरी, 1983 से एक पदयात्रा की थी। सभी यात्राओं के अलग-अलग लक्ष्य थे। भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने भी 1990 में राम रथ यात्रा के नाम से यात्रा निकाली थी। यह यात्रा 25 सितम्बर, 1990 को गुजरात के सोमनाथ से शुरू हुई थी और जब वह अपने आखिरी पड़ाव पर बिहार पहुंची तो बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने समस्तीपुर ज़िले में यात्रा को रोककर आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया था। 
आज इसी वातावरण में कांग्रेस के संरक्षक व संस्थापकों में रहे नेहरू-फिरोज़ गांधी परिवार के सदस्य राहुल गांधी ने देश में साम्प्रदायिकता के विपरीत भारतीयता की भावना जागृत करने और सत्ता का ध्यान धर्म जाति से हटाकर जनता और देश की मूल समस्याओं की ओर आकर्षित करने के लिये भारत जोड़ो यात्रा जैसा दूरगामी कदम उठाया है। भारत के इतिहास में राहुल गांधी के नेतृत्व में चल रही इस यात्रा को स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जायेगा।