शकुंतला रेलवे   जिस पर आज भी है ब्रिटिश कम्पनी का मालिकाना हक

शीर्षक पढ़कर हो सकता है आप चौंक गए हों। लेकिन यह क्लिक बेट्स का कोई भ्रम नहीं, वास्तविकता है। भारत की आज़ादी के 75 वर्षों बाद आज भी हिंदुस्तान में एक रेलवे ट्रैक ऐसा है, जिस पर हिंदुस्तान की सरकार का नहीं बल्कि एक ब्रिटेन की कंपनी का मालिकाना है। इस ट्रैक पर जो एक-मात्र पैसेंजर रेलगाड़ी चलती है उसका नाम शकुंतला है इसलिए इसे शकुंतला रेलवे कहते हैं। इस ट्रैक की मालिक सैंट्रल प्रोविन्स रेलवे कंपनी है। यह रेलवे ट्रैक भारत में महाराष्ट्र राज्य में स्थित है। वैसे इस चौंकाने वाली कहानी के बारे में आपने पहले भी कई बार पढ़ा होगा, लेकिन इस समय जबकि आज़ादी का अमृतकाल (वर्ष) चल रहा है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुलामी के सभी प्रतीकों को एक-एक करके छोड़ देने की बात कही है, तो उम्मीद की जानी चाहिए कि अब आज़ादी के 75 साल बाद इस रेलवे ट्रैक का भी भारतीयकरण होगा।
यह एक नैरोगेज लाइन है, जो महाराष्ट्र में यवतमाल से अमरावती के अचलपुर के बीच बिछी है। मुर्तजापुर इस ट्रैक का बड़ा जंक्शन है। इसके दो महत्वपूर्ण इस रेलवे को सैंट्रल रेलवे प्रचालित करती है। यह नैरोगेज ट्रैक 762 एमएम या 2 फिट 6 इंच का है। यवतमाल से ट्रेन शुरु होती है और अचलपुर तक आती है। दूसरी तरफ  अचलपुर से शुरु होकर यवतमाल तक आती है। यह कुल 189 किलोमीटर या 117 मील का  ट्रैक है। यह ट्रेन अचलपुर से यवतमाल के बीच 17 छोटे बड़े स्टेशनों पर रूकती है।
100 साल पुरानी 5 डिब्बों वाली यह ट्रेन पहले स्टीम इंजन से चला करती थी, पर साल 1994 से डीजल इंजन से चलती है। इस रेलवे ट्रैक को किलिक निक्सन एंड कंपनी ने साल 1903 में बिछाया था। किलिक निक्सन कंपनी की स्थापना सन् 1857 में हुई थी। इस ट्रैक में पहले 1921 में मैनचेस्टर में बना स्टीम इंजन चलता था, जिसे 15 अप्रैल 1994 में डीजल इंजन से रिप्लेस कर दिया गया। अंग्रेजों के जमाने में यह ट्रैक इस इलाके से कपास लेकर मुंबई पोर्ट तक पहुंचाने के काम आता था। गौरतलब है कि अमरावती के इलाके में 19वीं सदी में बड़े पैमाने पर कपास की खेती होती थी, आज भी काफी होती है। साल 1951 में जब रेलवे का राष्ट्रीयकरण शुरु हुआ तो पता नहीं कहां चूक हो गई कि देश के सभी रेलवे ट्रैक का तो राष्ट्रीयकरण हो गया, लेकिन शकुंतला  रेलवे रह गया। यह ट्रैक आज भी इस इलाके में एकमात्र रेलवे यातायात का साधन है और इसका किराया बहुत कम होने के कारण ज्यादातर गरीब लोग आज भी इसी पर सफर करते हैं।
वैसे इसे रेलवे ट्रैक की स्थिति बहुत जर्जर है। पिछले 60 सालों से इसकी मुरम्मत नहीं हुई इसलिए यहां जो डीजल रेल चलती है, उसकी अधिकतम रफ्तार 20 किलोमीटर प्रति घंटे होती है। यवतमाल से अचलपुर तक पहुंचने में आज भी 7 से 8 घंटे लेती है। सरकार इस ट्रैक का इस ब्रिटेन कंपनी को कितनी रॉयलिटी हर साल देती है, इस बारे में स्पष्ट विवरण तो नहीं है, लेकिन अलग-अलग जगहों पर इसके जो अलग-अलग विवरण है, उसका एक अनुमानित निष्कर्ष यह है कि सरकार करीब 1 करोड़ 20 लाख रुपये के आसपास इस कंपनी को देती है।
लेकिन अब यह भी कहा जा रहा है कि सरकार इस दी जाने वाली राशि में से मेंटेनस के भी पैसे काट लेती है। जो भी आज़ादी के इस अमृतकाल में गुलामी का यह प्रतीक भी खत्म होना चाहिए।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर।