कचरा निस्तारण पर सरकारों एवं स्थानीय निकायों का गैर-ज़िम्मेदार रवैया

केंन्द्र और राज्य सरकारें पिछले लम्बे अरसे से स्वच्छता अभियान के बड़े-बड़े आयोजन और दिखावा करते आ रही हैं। ठीक इसके विपरीत कचरे के निस्तारण में लापरवाही व गैर-ज़िम्मेदारी के कारण राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण जिस तरह से राज्यों एवं स्थानीय निकायों पर जुर्माना ठोक रहा है, वह इस बात का प्रतीक है कि सरकारें और स्थानीय निकाय प्रबंधन कचरे को लेकर गम्भीर नहीं हैं। हाल ही में राजस्थान सरकार पर 3500 करोड़ के जुर्माने के साथ इसके कुछ और पहले वह बंगाल सरकार पर सीवेज शोधन संयंत्रों को सही तरह संचालित न करने के कारण 3500 करोड़ रुपये का जुर्माना लगा चुका है। 
एनजीटी उत्तर प्रदेश सरकार को कचरे का उचित प्रबंधन न कर पाने के कारण पर्यावरणीय मुआवज़े के रूप में 120 करोड़ रुपये की राशि जमा करने का निर्देश दे चुका है। कूड़े के निरस्तारण के लिए जारी राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण गाइड लाइन और दिशा-निर्देशों की कदम-कदम पर अनदेखी की जा रही है लेकिन सरकार और निकाय प्रबंधन सो रहे हैं।  देखा जाए तो प्राकृतिक सुंदरता से सराबोर पृथ्वी को हम कचरे के ढेर में परिवर्तित करते जा रहे हैं। नदी, झील, तालाब और महासागरों को हमने कूड़ाघर बना दिया है। पहाड़ की वादियों, बुग्यालों और हिमालय में भी हम कूड़े का ज़हर घोलने से पीछे नहीं हैं। इसी कारण जल और थल प्रदूषित हो रहे हैं। हवा को ज़हरीली गैसों ने प्रदूषित कर दिया है। ये गैसें उद्योगों और परिवहन माध्यमों सहित ‘ए.सी.’ जैसे विभिन्न उत्पादों से निकलती है, लेकिन इसमें बड़ा योगदान इन्सानों द्वारा विभिन्न स्थानों पर डम्प किए गए कचरे का भी है। ये कचरा तब और ज्यादा खतरा बन जाता है, जब खुले में ही इसे जला दिया जाता है। सबसे बड़ी चिंता का विषय कचरे का ठीक से प्रबंधन करने की व्यवस्था न करने वाले नगर निकाय और हमारी सरकारें हैं जिस करण देश में विभिन्न बीमारियां जन्म ले रही हैं। 
भारत के नगर निकायों में प्रतिदिन लगभग 1 लाख 47 हज़ार 613 टन कचरा पैदा होता है, लेकिन लगभग 50 प्रतिशत कचरा महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, दिल्ली, गुजरात और कर्नाटक जैसे पांच राज्य अकेले ही पैदा करते हैं। कचरा प्रबंधन में समस्या न हो इसके लिए समय-समय पर जनता और नगर निकायों को विभिन्न माध्यमों से घरों से कूड़ा लेने से पहले ही गीला और सूखा कूड़ा अलग-अलग करने की सलाह दी जाती है लेकिन देश के समस्त नगर निकायों के 25-30 प्रतिशत वार्ड कूड़े के स्रोत पर ही कचरे को अलग-अलग नहीं करते हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक सबसे ज्यादा सॉलिड वेस्ट महाराष्ट्र से निकलता है। जबकि इस वर्ष मई में आई एक रिपोर्ट प्रदूषण को लेकर चौंकाने वाली है। एक अध्ययन के मुताबिक वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों के मामले में भारत और चीन अग्रणी देश हैं। भारत में जहां हर साल करीब 24 लाख मौतें प्रदूषण की वजह से होती हैं, वहीं चीन में यह आंकड़ा 22 लाख है। एक अध्ययन के मुताबिक, पूरी दुनिया में प्रदूषण की वजह से हर साल करीब 90 लाख लोग मौत के मुंह में समा जाते हैं।  वहीं वर्ष 2000 के बाद की बात करें तो कार, ट्रक और उद्योगों से निकलने वाले धुएं से होने वाली मौत में करीब 55 फीसदी का इजाफा हुआ है।
पिछले कुछ समय से एनजीटी यानी राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण कचरा निस्तारण में लापरवाही बरतने अथवा पर्यावरण की अनदेखी के कारण एक के बाद एक राज्यों पर जुर्माना लगाने में लगा हुआ है। पिछले दिनों उसने राजस्थान सरकार पर तीन हजार करोड़ रुपये का जुर्माना इसलिए लगाया, क्योंकि राज्य के कुछ शहरों में औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले प्रदूषित पानी को नदियों में उड़ेला जा रहा था, तो कुछ में कचरे का निस्तारण ढंग से नहीं किया जा रहा था। इसके पहले एनजीटी ने महाराष्ट्र सरकार पर 12 हजार करोड़ रुपये का जुर्माना ठोस और तरल कचरे का प्रबंधन करने में नाकामी के चलते लगाया था। हाल के दिनों में एनजीटी पर्यावरण को क्षति पहुंचाने के कारण कई राज्य सरकारों अथवा उनके नगर निकायों के खिलाफ  लगातार सख्ती दिखा रखा है।
 यह सख्ती यही बताती है कि राज्य सरकारें, उनके नगर निकाय और प्रदूषण की रोकथाम करने वाले विभाग अपने दायित्वों का सही तरह निर्वाह नहीं कर पा रहे हैं। यह स्थिति पूरे देश और यहां तक कि राजधानी दिल्ली में भी देखने को मिल रही है। करीब तीन सप्ताह पहले एनजीटी ने यमुना में बढ़ते प्रदूषण को लेकर दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव को फटकार लगाते हुए अपना असंतोष प्रकट किया था।  
यदि गंदगी और प्रदूषण से लड़ना है तो आम नागरिकों से लेकर नगर निकायों को अपनी ज़िम्मेदारी का सही तरह निर्वाह करना होगा। यही नहीं बायोमेडिकल वेस्ट के निस्तारण में लापरवाही मिलने पर अब निजी नर्सिंग होम और अस्पतालों पर ताला भी लग सकता है। अभी तक इन संस्थानों के खिलाफ  ऐसी कार्रवाई का नियम नहीं था, लेकिन बायोमेडिकल वेस्ट अधिनियम-2018 के तहत अब ज़िले के सीएमओ ऐसे निजी अस्पतालों और नर्सिंग होम बंद करवा सकेंगे। यही नहीं, अब इनके संचालन के लिए स्वास्थ्य विभाग में रजिस्ट्रेशन के साथ प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की स्वीकृति लेना भी ज़रूरी होगा। इसका कितना अनुपालन हुआ? कितने निजी नर्सिंग होम और अस्पतालों पर ताला लगा? ऐसे तमाम अनुत्तरित प्रश्न सरकार और स्थानीय निकायों के समक्ष खड़े हैं। एक तरफ देश भर में बड़े-बड़े दावों के साथ स्वच्छता अभियान चलाया जा रहा है और दूसरी तरफ  कचरे की अनदेखी के चलते लगने वाला जुर्माना इस बात का प्रमाण है कि कचरे के निस्तारण में पूरी ज़िम्मेदारी से कार्य नहीं किया जा रहा।