विश्व देशों का भारत के प्रति बढ़ता राजनयिक विश्वास

भारत के पांचवीं आर्थिक शक्ति बनने के बाद और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के परमाणु अस्त्रों के इस्तेमाल की यूक्रेन तथा यूरोपीय देशों के विरुद्ध धमकी ने अमरीका, ब्रिटेन, फ्रांस, कनाडा, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया और यूरोपीय देशों को चिंता में डाल दिया है। ऐसे में विश्व के देशों ने भारत की ओर आशा लगाकर भारतीय प्रधानमंत्री से यह उम्मीद की है कि वही पुतिन को अपने पुराने संबंधों के चलते विश्व शांति का पाठ पढ़ा सकते हैं। भारत की विश्व में नई सामरिक तथा आर्थिक स्थिति अब पहले से ज्यादा कई गुना मजबूत हो गई है। अब भारत अपनी बात हर तरह से मनवाने में सक्षम भी है। दूसरी तरफ  इंग्लैंड की प्रधानमंत्री लिस ट्रस के सामने भारत से अपने मूल रूप से संबंध अच्छे करने की चुनौती भी है। पिछले 18 महीने में ब्रिटेन की प्रधानमंत्री बतौर विदेश मंत्री भारत का 3 बार दौरा कर चुकी हैं। ऐसे में उन्हें भारत से अच्छे संबंध बनाने का अनुभव होने के साथ-साथ भारतीय विदेश नीति के बारे में भी उन्हें स्पष्ट तौर पर ज्ञान है।
उज़्बेकिस्तान के समरकंद में शंघाई सहयोग संगठन की अति महत्वपूर्ण बैठक में भारत ने अपनी नई दमदार विदेश नीति का आगाज किया है। भारत अब वो पुराना भारत नहीं रहा है, इस बात को दुनिया के सामने इस संगठन की बैठक में भारत ने बड़ी मजबूती के साथ रखा है। भारत की विदेश नीति के तहत भारत किसी एक मजबूत राष्ट्र का सहारा ना लेकर रूस और अमरीका को एक ही तराजू में तौल रहा है। भारत की नई कूटनीति तथा विदेश नीति की धमक अब स्पष्ट रूप से इस संगठन की बैठक में दिखाई दी है। 
भारत ने अपनी कूटनीति के चलते बैठक में उपस्थित चीन तथा पाकिस्तान को दरकिनार कर पूरे विश्व को समझा दिया है की चीन और पाकिस्तान दुनिया में अलग-थलग पड़ गए हैं। इसी तरह यूक्रेन के मामले में भारत ने रूस के व्लादिमीर पुतिन को साफ-साफ  शब्दों में वैश्विक शांति की बातें समझाईं है। अमरीका को भी भारत ने समझा दिया कि रूस और यूक्रेन मामले में वह अमरीकी दबाव में ना आकर रूस को मौन समर्थन देना नहीं छोड़ेगा और इसके अलावा रूस से अपने व्यवसायिक रिश्ते बनाकर क्रूड आयल, डीजल तथा पेट्रोल की खरीदी निरंतर जारी रखेगा। उल्लेखनीय है कि भारत ने विगत 3 वर्षों से अपनी विदेश नीति कुछ इस तरह निर्धारित की है कि जिसमें बड़े राष्ट्रों पर केंद्रित न होकर वह हर राष्ट्र से संबंध बनाकर वैश्विक जगत में अपनी नई स्वतंत्र विदेश नीति का आगाज करने जा रहा है। आने वाले समय में भी  भारतीय गणतंत्र एक नई विदेश नीति लेकर उभरेगा।
भारत को संभवत शंघाई सहयोग संगठन और जी-20 तथा संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद जैसे महत्वपूर्ण संगठनों में अध्यक्षता का अवसर भी मिल गया है क्योंकि आने वाले वर्ष में भारत वर्ष में ही शंघाई संगठन सहयोग और जी-20 की महत्वपूर्ण बैठक आयोजित होने वाली हैं। जी-7 देशों में भी जर्मनी तथा कुछ अन्य देश इस समूह में भारत को शामिल करना चाहते हैं। इस तरह इन देशों के समर्थन से भारत जी-7 का महत्वपूर्ण हिस्सा भी बन सकता है। स्वतंत्रता के बाद से ही भारत ने अपने को स्वतंत्र विदेश नीति का पोषक बना कर रखा है और विगत वर्षों से भारत ने अपने को एक गुट निरपेक्ष राष्ट्र की तरह वैश्विक स्तर पर प्रस्तुत किया है। रूस यूक्रेन युद्ध तथा ताजा चीन ताइवान तथा अमरीकी द्वंद में भारत ने अपनी स्वतंत्र विदेश नीति के तहत एक अलग मध्यम मार्ग बनाए रखा है। 
भारत ने इस संगठन की बैठक के दौरान यह स्पष्ट रूप से बता दिया है कि जो देश उसके साथ जिस तरह का व्यवहार करेगा, भारत उसे उसी तरह से जवाब देने में सक्षम है। चीन को भी स्पष्ट रूप से भारत ने चेतावनी दी है कि यदि वह एलएसी तथा लद्दाख में किसी भी तरह की दखलअंदाजी करेगा तो भारत इसे बर्दाश्त नहीं करेगा और यदि वह दोस्ती की पहल करता है तो भारत दो कदम आगे आकर वार्ता में शामिल होने का तैयार है। भारत ने स्पष्ट रूप से रूस को यह समझा दिया है कि उसकी पाकिस्तान के साथ बढ़ती नजदीकी उसे रास नहीं आ रही है, इसी तरह अमरीका द्वारा पाकिस्तान को दी जाने वाली सहायता का भी भारत ने खुलकर विरोध किया है। भारत ने अपनी विदेश नीति तथा कूटनीति को साफ  कर दिया है, वह जहां शंघाई संगठन का खास सदस्य है जो अमरीका का घोर विरोधी माना जाता है, दूसरी तरफ  वह 5 देशों वाले मजबूत संगठन क्वाड का भी हिस्सा है जो स्पष्ट रूप से चीन का विरोधी संगठन माना जाता है। भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि वह देश के हितों के नफा और नुकसान देखकर अपने संबंध अन्य देशों से स्थापित करेगा।
 भारत वैश्विक स्तर पर विश्व के अनेक देशों से अपने अलग-अलग व्यवसायिक एवं राजनीतिक रिश्ते बनाने में विश्वास रखता है। भारत की स्वतंत्र विदेश नीति इस बात से भी स्पष्ट हो जाती है कि भारत जी-20 जैसे संगठन का सदस्य भी है जिसमें अमरीका चीन जैसे परम्परागत घोर विरोधी अमरीका तथा चीन भी अहम सदस्य हैं। आने वाला वर्ष भारत की नई विदेश नीति और कूटनीति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण इसलिए होने वाला है कि भारत जी-20 तथा शंघाई संगठन की मेजबानी और अध्यक्षता करेगा और इन समूहों की  बैठकों में अपने मनपसंद मित्र देशों को बुलाने का अधिकार भारत के हाथ में ही होगा। ऐसे में भारत एक नए और मजबूत भारत के रूप में उभरेगा।
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