स्टेजी ड्रामेबाजी

पंजाब कभी हरित क्रांति लाने में अग्रणी रहा था। किसी समय इसने देश के अन्न भंडार को भरा था। इसके लिए आज तक भी इसकी प्रशंसा की जाती है, परन्तु आज पंजाब नशों की प्रवृत्ति, गैंगस्टरों की कार्रवाइयों एवं धरनों-प्रदर्शनों आदि में प्रथम स्थान पर है। प्रत्येक दूसरे-तीसरे दिन यहां किसी न किसी संगठन की ओर से मुख्य सड़कों को रोकने के दृष्टिगत मीलों तक वाहन थम जाते हैं तथा हज़ारों-लाखों लोग परेशानी में से गुज़रते हैं। इस बार कर एकत्रित करने में यह प्रदेश अतीव पिछड़ा है। यह हरियाणा से भी कहीं पीछे खड़ा दिखाई  नहीं देता, परन्तु अब नई सरकार की ब्यानबाज़ियों में यह सबसे आगे खड़ा दिखाई देता है। स्टेजी ड्रामे करने एवं गम्भीर राजनीतिक पग उठाने में बड़ा अन्तर होता है। सम्भवत: इस बात की समझ नई सरकार को अभी तक नहीं आई। इसीलिए उसकी नित्य-प्रति की ब्यानबाज़ियां जारी हैं।
 दिल्ली में विगत लम्बी अवधि से मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी शासन चला रही है। प्रत्येक वर्ष गेहूं एवं धान की कटाई के बाद किसानों की ओर से खेतों में शेष बचे अवशेषों को नष्ट करने के लिए व्यापक स्तर पर आग लगाई जाती है जिस कारण पहले से अत्याधिक प्रदूषित हवा और भी विषाक्त हो जाती है। इससे समूचे उत्तर भारत में खास तौर पर देश की राजधानी दिल्ली में अतीव बुरा प्रभाव पड़ता है जिसमें सांस लेना भी कठिन हो जाता है। विगत कई वर्षों से मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल इन दिनों में इस धुंधलेपन का आरोप पंजाब एवं हरियाणा पर लगाते रहे हैं तथा उच्च स्वर में इन सरकारों की आलोचना करते रहे हैं। विगत सात मास से पंजाब में आम आदमी पार्टी के मुख्य संयोजक अरविन्द केजरीवाल के नेतृत्व में मुख्यमंत्री भगवंत मान की सरकार स्थापित है। इस बार इसे धान की पराली की व्यवस्था करने की प्रक्रिया में से गुज़रना पड़ा है। इसके लिए बड़ी लम्बी-चौड़ी योजनाएं बनाई गईं। किसानों को जागरूक करने के लिए व्यापक स्तर पर विज्ञापन भी जारी किये गये। अफसरशाही एवं प्रशासन को पूर्णतया सचेत किया गया तथा प्रत्येक प्रकार की प्रशासनिक कार्रवाइयां करने की धमकियां भी दी गईं। धान की फसल बोने के समय सरकार के सीधी बुआई करने तथा पानी के नीचे गिरते स्तर को बचाने के लिए किये गये सभी यत्न विफल सिद्ध हुये हैं। फसल की कटाई के समय सरकार ने अन्य विषयों पर विचार करने के साथ-साथ कुछ किसान संगठनों के साथ यह लिखित समझौता किया कि आग लगाने पर उनके विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी। लाल एंट्रियों पर कुछ अफसरों को मुआत्तल करने की मात्र ड्रामेबाज़ी भी की गई, परन्तु आज स्थिति यह है कि सम्पूर्ण उत्तर भारत में पराली जलाने के दृष्टिगत जो प्रदूषण उत्पन्न हुआ है, उसमें 80 प्रतिशत पंजाब का ‘योगदान’ है। पंजाब में अब तक 22 हज़ार से अधिक खेतों को आग लगाये जाने के मामले सामने आये हैं जबकि हरियाणा में अब तक ऐसी घटनाएं केवल 2200 से ही आगे बढ़ी हैं। उत्तर प्रदेश में 802, मध्य प्रदेश में 1200, राजस्थान में ऐसी घटनाएं 400 से कुछ अधिक हुई हैं। मुख्यमंत्री भगवंत मान के अपने ज़िला संगरूर में इस समय पूरे पंजाब के ज़िलों से अधिक आग लगने की घटनाएं हुई हैं। इसके बाद तरनतारन, पटियाला, अमृतसर एवं बठिंडा आते हैं। सरकार चुपचाप यह सब कुछ होते देख रही है। सैटेलाइट के ज़रिये पूरे देश को ही नहीं, अपितु अमरीका को भी इसका पूरा ज्ञान है कि यहां क्या कृत्य हो रहा है। 
इसके बावजूद मुख्यमंत्री भगवंत मान एवं उनके कृषि मंत्री कुलदीप सिंह धालीवाल इस घटनाक्रम का सम्पूर्ण दोष केन्द्र सरकार के सिर पर जड़ रहे हैं। निष्क्रिय हुई सरकार के पास ब्यानबाज़ी करने के अतिरिक्त कुछ भी नहीं बचा प्रतीत होता है। सरकार का यह भी ब्यान है कि दिल्ली की हवा में विष घोले जाने का अधिक ज़िम्मा हरियाणा का है। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर कहते हैं कि हरियाणा में इस बार यह घटनाक्रम पहले से अब तक 25 प्रतिशत तक कम हुआ है जबकि पंजाब में इसमें 20 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। नि:सन्देह आज पंजाब में की जा रही इन ‘साहसिक कार्रवाइयों’ को पूरा देश बड़े ध्यानपूर्वक देख रहा है। इस घटनाक्रम के लिए कुछ किसान संगठनों एवं अधिकतर किसानों ने जो ़गैर-ज़िम्मेदारी प्रदर्शित की है, वह अतीव निंदनीय है। इससे पहले से गिरते- पड़ते पंजाब की छवि और भी धूमिल हुई है।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द