़खतरनाक मोड़ पर पहुंच गया है रूस-यूक्रेन युद्ध

पुतिन के बदले तीखे तेवर और यह साबित करने की कोशिशों के बीच कि पश्चिमी मीडिया की खबरें एकतरफा हैं, यूक्रेन में जंग की स्थिति निरन्तर गम्भीर होती जा रही है। इस माहौल को गढ़ने के बाद रूस ने अमरीका, ब्रिटेन वगैरा को भी कड़ी चेतावनी दी है। साथ ही ‘थंडर न्यूक्लियर’ एक्सरसाइज भी की है। इससे निश्चित ही यह लगने लगा है कि रूस-यूक्रेन युद्ध न सिर्फ  अब खतरनाक मोड़ पर पहुंच चुका है बल्कि यह भी, कि यह अब लम्बा खिंचेगा। हालांकि परमाणु हमले की आशंका अभी भी न्यून है।,
रूस के परमाणु अभ्यास और उस पर अमरीकी चेतावनी के अलावा रूस-यूक्रेन युद्ध के कुछ और पहलू हैं, जिन्होंने इस आशंका को जन्म दिया है कि यह युद्ध अब एक खतरनाक मोड़ पर पहुंच गया है। अब साफ  है कि यहां से यह जिस तरफ भी मुड़ेगा, वह न सिर्फ  ज्यादा विनाशकारी होगा बल्कि निकट भविष्य में यह जल्द समाप्त नहीं होने वाला। यह बहुत आगे तक बढ़ेगा। पुतिन के लिये यूक्रेन से युद्ध शेर की सवारी बन चुका है। वह उस पर से अब उतर नहीं सकते। बेशक पुतिन अपने स्वभाव के अनुरूप और सियासत के हिसाब से भी हारकर वापस नहीं जायेंगे। हारे तो सत्ता शीर्ष से हटने की पूरी आशंका है। देश की आन के नाम पर युद्ध को खींचने में ही भलाई है। पुतिन के लिये मजबूरी है कि युद्ध जारी रहे। फिलहाल किसी तरह के शांति समझौते की कोई गुंजाइश नहीं है, क्योंकि समर्थन से मिली सफलताओं से यूक्रेन कुछ ज्यादा ही आशावादी हो चुका है, उसका पुतिन पर कोई भरोसा नहीं रहा। 
वैसे, पुतिन पहले भी समझौते तोड़ चुके हैं और अगर अंतर्राष्ट्रीय दबाव में कर भी लें तो कुछ बरस बाद तोड़ देंगे, यह तय है। युद्ध में बाहरी समर्थन देने वाली ताकतें भी नहीं चाहेंगी कि कोई समझौता हो। इन परिस्थितियों में ये कई सवाल मौजूं हो गए हैं कि पुतिन ने अपनी रणनीति में जो इतना आक्रामक बदलाव किया है, वह किन रूपों में सामने आयेगा? क्या यह आक्रामकता सैन्य संसाधनों के टोटे के चलते उपजी हताशा का परिणाम है? क्या युद्ध क्षेत्र से मिल रही बुरी खबरों से दहले रूस के जनमानस को प्रभावित करने, उत्साहित करने, उभरते युद्ध विरोधी अभियानों को दबाने के लिये पुतिन ने यह पैंतरा बदल है? क्या रूस में आम नागरिकों को या कहें रिज़र्विस्ट को जबरिया सेना में शामिल करने का फैसला इसीलिए किया गया क्योंकि जंग में जवानों की कमी हो चुकी है। अप्रशिक्षित नागरिकों को सीधे मोर्चे पर भेजने से क्या वहां विद्रोह नहीं पनपेगा? जिस तरह युवा देश छोड़ रहे हैं, वह एक तरह का शांत विरोध तो है ही। क्या युद्ध की वजह से अपने तख्तापलट की नौबत को टालने के लिये ही पुतिन यह सारी कवायद कर रहे हैं? ..और इसी के चलते क्या। उन्होंने पश्चिमी देशों को कड़ी चेतावनी दी है कि वे रूस को कमज़ोर, विभाजित और नष्ट करने की कोशिश जारी रखेंगे तो वह भी उनके विरुद्ध हर तरीके के हथियार और सभी उपलब्ध साधनों का इस्तेमाल करने के लिये स्वतंत्र हैं? इसमें ‘हर तरीके’ का मतलब परमाणु हमला समझा जा रहा है अथवा पुतिन इन विषम परिस्थितियों में कोई ऐसा फैसला ले सकते हैं, जिसके बारे में दुनिया ने सोचा ही न हो। 
दरअसल पुतिन जानते हैं कि यूक्रेन से कई गुना बलशाली होने के बावजूद अगर वह दस-बारह दिन के भीतर युद्ध खत्म नहीं कर पाए, तो इसकी वजह पश्चिमी देशों और अमरीका का यूक्रेन के साथ सैन्य सहयोग है। बेशक वह इसको लेकर पश्चिमी देशों से जबरदस्त नाराज़ और विचलित हैं, परन्तु क्या महज यही नाराज़गी, परमाणु हमले की वजह बन जायेगी? यह  सच है कि अगर नाभिकीय हमला होता है तो इसका प्रभाव पश्चिमी देशों तक, नाटो और अमरीका तक पहुंचना तय है। उसके निशाने पर तब यूक्रेन कम किन्तु उसके पीछे खड़े उसके समर्थक देश ज्यादा होंगे। ..तो क्या पुतिन अपरिपक्वता दिखाते हुए अपनी नाराज़गी को मूर्त्त रूप देने, इसे दिखाने के लिये यूक्रेन के रणनीतिक क्षेत्र पर सीमित परमाणु हमला कर सकते हैं? एक दूसरा रास्ता भी है, जिसका आखिरी सिरा भी परमाणु हमले की ओर खुलता है। पुतिन अपने बयानों, आक्रामक रणनीतियों से पश्चिमी मीडिया की खबरों को गलत साबित करना चाहते हैं कि वह कमज़ोर पड़ रहे हैं। वह संकेत देना चाहते हैं कि यह जंग यूक्रेन के तबाह होने तक जारी रहेगी। इस रवैये से साफ  भी है कि युद्ध लम्बा चलेगा। 
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर