छह साल बाद भी चर्चा में क्यों बनी है नोटबंदी!

देश में नोटबंदी की घटना को हुए पूरे छह साल हो गये हैं। शासन-प्रशासन में लगातार नये-नये निर्णय लेने पड़ते हैं। ऐसे में कोई खास निर्णय ही होते हैं जो सालों बाद भी न सिर्फ  लोगों द्वारा याद किये जाते हैं बल्कि जानकार लोग उनके प्रभावों पर टिप्पणी कर रहे होते हैं। 8 नवम्बर, 2016 को रात 8 बजे 500 और 1000 रुपये के नोटों को अगले 4 घंटों बाद चलन से बाहर किये जाने का जो अचानक घोषणा हुई थी, उस पर आज तक न सिर्फ  आम लोगों के बीच लगातार चर्चा हो रही है बल्कि विशेषज्ञ भी नियमित रूप से इस ‘नोटबंदी’ पर चर्चा करते हैं। हद तो यह है कि कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के बावजूद आज तक यह मानने वाले विशेषज्ञों की संख्या में कमी नहीं आयी कि भारतीय अर्थव्यवस्था को जितना नुकसान नोटबंदी से हुआ, हाल की किसी भी और घटना और दुर्घटना से नहीं हुआ। यहां तक कि कोरोना जैसी महामारी का भी भारतीय अर्थव्यवस्था पर उतना ऐतिहासिक दुष्प्रभाव नहीं पड़ा, जितना नोटबंदी का पड़ा है।
सवाल है आखिर इस निष्कर्ष का आधार क्या है? निश्चित रूप से इसका आधार सरकार के तत्कालीन दावे और उन दावों की असल परिणति है। रिज़र्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक 4 नवम्बर, 2016 को देश में 17.74 लाख करोड़ रुपये की करंसी चलन में थी और नोटबंदी से होने वाले फायदों की फेहरिस्त में एक दावा यह भी था कि इसके बाद नकदी के चलन में भारी कमी आयेगी। ऑनलाइन लेनदेन मुख्य धारा का लेन-देन बन जायेगा, जिससे पारदर्शिता बढ़ेगी। ऐसा नहीं है कि नोटबंदी के बाद ऑनलाइन लेनदेन में बढ़ोत्तरी नहीं हुई। तब से अब तक ऑनलाइन लेनदेन में करीब 500 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है और यह लगातार हो रही है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि यह दावा सही साबित नहीं हुआ कि नकदी का चलन कम हो जायेगा या रुक जायेगा क्योंकि अक्तूबर 2021 में देश में नकदी का चलन बढ़कर 29.17 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच चुका था, जिसका मतलब यह है कि नोटबंदी के बाद तत्कालीन वैल्यू के लिहाज से नोटों की सर्कुलेशन में करीब 64 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है। 
जाहिर है, इस बेतहाशा बढ़ी नकदी का सबसे डरावना और चिन्ताजनक पहलू यह है कि 500 और 1000 रुपये के जिन पुराने नोटों पर यह कहते हुए प्रतिबंध लगा था कि इसके बाद नकदी के चलन में कमी आयेगी, वह नहीं आयी। साथ ही नये छपे नोटों का जाली संस्करण भी धड़ल्ले से जारी रहा। वित्तीय वर्ष 2021-22 की वार्षिक रिपोर्ट में कहा गया कि आरबीआई ने साल 2020-21 की तुलना में इस साल 500 रुपये मूल्य के 101.9 फीसदी अधिक नकली नोटों का पता लगाया। इसका मतलब यह है कि साल 2020-21 की तुलना में साल 2021-22 में अर्थव्यवस्था में 100 फीसदी से ज्यादा नकली नोट शामिल हो गये। सिर्फ  500 रुपये के ही नकली नोट नहीं बढ़े बल्कि 2000 रुपये के नकली नोटों में भी इस दौरान 54.16 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई। हैरानी की बात यह है कि छोटे नोटों में भी नकली नोटों की बाढ़ देखी गई। मसलन 10 रुपये के नकली नोट पकड़े जाने में 16.4 फीसदी और 20 रुपये के नकली नोटों के पकड़े जाने में 16.5 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई। इसी तरह 200 रुपये के नकली नोट 11.7 फीसदी, 50 और 100 रुपये के नकली नोटों में क्रमश: 28.7 और 16.7 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई।
कुल मिलाकर कहने की बात यह है कि नोटबंदी के फायदों के जो बड़े-बड़े दावे किये गये थे, वे धरातल पर सही नहीं उतरे। इन दावों में कहा गया था कि इसके बाद टेरर फंडिंग पर लगाम लगेगा, आतंकवादी गतिविधियां घटेंगी और राजनीतिक भ्रष्टाचार में भी कमी आयेगी, लेकिन लगता है कि इन सारी बुराइयां ने अपनी पूरी ताकत से नोटबंदी के दावों को उखाड़ फेंकने के लिए ही कमर कस ली थी। इसीलिए ऐसे किसी भी दावे में कोई भी कमी नहीं आयी। अगर टेरर फंडिंग रुकने के अनुमान पर आतंकी गतिविधियों में कमी आने की बात पर विचार करें तो  पिछले पांच सालों में ऐसी गतिविधियों में  औसतन हर साल 4 से 7 फीसदी वृद्धि हुई है। हां, यह बात सही अवश्य है कि पिछले पांच छह सालों में लगातार भारतीय सेना की मुस्तैदी के कारण आतंकवादियों के पकड़े जाने या उन्हें मार गिराने में ज़रूर पहले से कहीं ज्यादा कामयाबी मिली है लेकिन इसका रिश्ता सीधे-सीधे नोटबंदी से नहीं बल्कि हमारे सैनिकों की जांबाजी और उनकी बहादुरी से है। 
इस तरह देखें तो न सिर्फ  अपने एक्शन के एक साल बाद नोटबंदी की कार्यवाही पर प्रश्नचिन्ह लगे थे बल्कि छह सालों बाद भी ये सवालिया निशान और चटख व गहरे हो गये हैं कि जिन जिन दावों के साथ नोटबंदी का बड़ा निर्णय लिया गया था, वो सब दावे उल्टे साबित हुए। सच बात तो यह है कि नोटबंदी से उम्मीद किये गये फायदे तो हुए नहीं, उल्टे इसने भारतीय अर्थव्यवस्था को झकझोर कर रख दिया। अगर कहा जाए कि नोटबंदी के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था को गंभीर झटका लगा और जीडीपी में डेढ़ से दो फीसदी की कमी आयी, तो यह शुद्ध आलोचना के लिए की जाने वाली आलोचना नहीं है। यह सच्चाई है। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की यह भविष्यवाणी सही साबित हुई कि नोटबंदी भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी को चटका देगी। 
निश्चित रूप से इसने ऐसा ही किया है और इसके असर आज भी भारत की अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में बिल्कुल साफ -साफ  देखे जा सकते हैं। हालांकि अगर कोढ़ में खाज की तरह कोरोना महामारी नहीं आयी होती तो शायद नोटबंदी अब तक अर्थव्यवस्था को इतनी बुरी तरह से टीस न दे रही होती। तब शायद लोग अब इसे भूल भी गये होते, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर