संभवत : ‘अपराध बोध’ नहीं मनाने देता नोटबंदी की वर्षगांठ

केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने पिछले दिनों पोर्टल टैक्स इंडिया ऑनलाइन द्वारा आयोजित टीआईओएल अवार्ड्स 2022 को संबोधित करते हुये देश के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की खूब प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि वर्ष 1991 में तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह द्वारा शुरू किए गए आर्थिक सुधारों ने भारत को एक नई दिशा दिखाने का काम किया। देश इन आर्थिक सुधारों के लिए पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का आभारी है। गडकरी ने यहां तक कहा कि देश आर्थिक सुधारों के लिए मनमोहन सिंह का ऋणी है। मोदी सरकार में अपने मंत्रालय संबंधी कामकाज का तुलनात्मक रूप से बेहतर ‘ट्रैक रिकॉर्ड’ रखने वाले गडकरी ने मनमोहन सिंह की प्रशंसा इसलिये नहीं की कि वह सज्जन पुरुष हैं या कांग्रेस के सीनियर नेता या पूर्व में प्रधानमंत्री रहे हैं, बल्कि उन्होंने डॉ. सिंह की प्रशंसा उनकी दूरदर्शी आर्थिक नीतियों के चलते की, एक अर्थ शास्त्री के रूप में उनकी काबलियत की वजह से की। यहां यह बताना भी ज़रूरी है कि भाजपा के ही अनेक नेता व प्रवक्ता डॉ. मनमोहन सिंह की काबिलियत का अक्सर मज़ाक उड़ाते रहते हैं। खासकर वे ‘भक्त’ प्रवृति के नेता जिन्हें अर्थ शास्त्र का ‘अ’ भी नहीं पता। 
गडकरी के अनुसार आज से ठीक 6 वर्ष पूर्व 8 नवम्बर, 2016 को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अचानक नोटबंदी की घोषणा करते हुये उस समय चलन में रहने वाले एक हज़ार और पांच सौ के नोटों को चलन से बाहर करने की घोषणा की थी, उस समय इन्हीं डॉ. मनमोहन सिंह ने नोटबंदी की घोषणा के बाद समय-समय पर अपनी जो प्रतिक्रयाएं दी थीं, आज उन्हें भी याद किये जाने की ज़रूरत है। डॉ. सिंह ने नोटबंदी के दिन को देश की अर्थव्यवस्था के लिए काला दिन बताया था। उन्होंने नोटबंदी को सरकार की सबसे बड़ी भूल और एक संगठित और वैधानिक लूट बताया था। इसे पूरी तरह असफल बताते हुये कहा था, ‘8 नवम्बर देश की अर्थव्यवस्था के लिए तो काला दिन था ही, यह लोकतंत्र के लिए भी एक काला दिन है।’ उन्होंने कहा था कि पूरी दुनिया में एक भी देश ऐसा नहीं है जिसने ऐसा विनाशकारी कदम उठाया हो जिसमें 86 प्रतिशत करंसी का सफाया हो जाए। डॉ. सिंह ने नोटबंदी की वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था में आई दिक्कतों की ओर इशारा करते हुए यह भी कहा था, ‘अक्सर ऐसा कहा जाता है कि वक्त सभी ज़ख्मों को भर देता है लेकिन नोटबंदी के ज़ख्म दिन-ब-दिन और गहरे होते जा रहे हैं।’ नोटबंदी का कोई भी मकसद पूरा नहीं हो पाया है। डॉ. सिंह ने नोटबंदी की दूसरी वार्षिक तिथि पर यह भी कहा था कि ‘आज का दिन यह याद करने का दिन है कि आर्थिक नीतियों को त्रुटिपूर्ण तरीके से लागू करने पर देश को लम्बे समय तक इसके कहर को झेलना पड़ता है। यह समझना भी आवश्यक है कि आर्थिक नीतियों का निर्माण सोच-समझकर और सावधानी पूर्वक तरीके से करना चाहिए।’ उन्होंने नोटबंदी को एक आर्थिक विपदा बताया था। उन्होंने यह भी कहा था कि नोटबंदी ने हर व्यक्ति को प्रभावित किया, चाहे वह किसी भी उम्र, किसी भी लैंगिक समूह, किसी पेशे या किसी भी धर्म, जाति या संप्रदाय का हो।
उपरोक्त प्रतिक्रयाओं के अतिरिक्त नोटबंदी के दुष्परिणाम संबंधी और भी अनेक बातें न केवल विश्व के इस महान अर्थ शास्त्री ने की थीं बल्कि देश के और भी कई अर्थशास्त्रियों, पूर्व वित्त मंत्रियों, नोबल विजेताओं, रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर्स आदि ने भी कही थीं। दूसरी ओर सरकार थी जो नोटबंदी की शान में तरह तरह के निरर्थक कसीदे पढ़े जा रही थी। प्रधानमंत्री सहित सभी सत्ताधारी विभिन्न मंचों से नोटबंदी के तरह तरह के फायदे गिना रहे थे। नोटबंदी की घोषणा के बाद 27 नवम्बर, 2016 को हुये ‘मन की बात’ के पहले प्रसारण में प्रधानमंत्री ने नोटबंदी को ‘कैशलेस इकॉनमी’ के लिए आवश्यक कदम बताया था परन्तु रिज़र्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार आज लोगों के पास पहले से कहीं अधिक कैश मौजूद है। यही नोटबंदी थी जिसकी लाइनों में लगकर लगभग डेढ़ सौ लोग अपनी जान से हाथ धो बैठे थे। इसी का दुष्प्रभाव था कि लगभग 15 करोड़ दिहाड़ी मज़दूरों के काम धंधे और छोटे-बड़े हज़ारों उद्योग धंधे बंद हो गए थे। इतना ही नहीं बल्कि उस समय लाखों लोगों को अपनी नौकरी से भी हाथ धोना पड़ा था। आज डॉलर के मुकाबले रुपये का अवमूल्यन आये दिन देखा जा रहा है। तेल की कीमतें आसमान छू रही हैं। रुपये के स्तर में गिरावट तेल कीमतों में बढ़ोतरी, महंगाई बेरोज़गारी आदि सब कुछ उसी के दुष्परिणाम हैं।
इस समय नोटबंदी के फैसले के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में 58 याचिकाएं दायर की जा चुकी हैं। 5 जजों की खंडपीठ द्वारा इसकी सुनवाई भी की जा रही है। सुप्रीम कोर्ट ने नोटबंदी पर केंद्र सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक को नोटिस जारी किया था। 5 जजों की संविधान पीठ ने 9 नवम्बर तक यह बताने को कहा था कि किस कानून के तहत 1000 और 500 रुपए के नोट बंद किए गए थे। अदालत ने सरकार और आरबीआई को हलफनामे में अपना जवाब देने को कहा है परन्तु सरकार ने जवाबी हलफनामा देने के लिये एक बार फिर 26 नवम्बर तक का समय मांग लिया है जो कि न्यायालय द्वारा तल्ख टिप्पणी के साथ दे भी दिया गया है। उधर विपक्ष का आरोप है कि नोटबंदी से 93 प्रतिशत लोग बेरोज़गारी में धकेले जा चुके हैं। कश्मीर से आतंकवाद समाप्त होने के बजाये आतंक के डर से बचे हुये कश्मीरी पंडित भी घाटी से चले गये हैं जो अब तक वहां रह रहे थे। भ्रष्टाचार भी कम होने के बजाये इतना बढ़ा कि 2000 के नोट चलन से गायब हो गए। आज पहले से 72 प्रतिशत अधिक नोट चलन में है। इतना ही नहीं बल्कि एक अनुमान के अनुसार पहले से दुगुने तिगुने जाली नोट बनाये जा चुके हैं। नक्सलवाद भी बरकरार है।
ऐसे में साफ नज़र आ रहा है कि जो सरकार छोटी-छोटी बातों में जश्न मनाने में महारत रखती हो, वह हर वर्ष नोटबंदी के दिन यानी 8 नवंबर को खामोश रहती है। उस दिन नोटबंदी के कसीदा जवानों को भी सांप सूंघ जाता है जबकि इसके आलोचक 6 नवम्बर को काले दिन के रूप में याद करते हैं। सरकार की नोटबंदी पर बला की खामोशी और साथ ही सुप्रीम कोर्ट को इस संबंध में हलफनामा दाखिल करने हेतु की जा रही आनाकानी इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिये पर्याप्त है कि इस संबंध में पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की सभी भविष्यवाणियां पूरी तरह सच साबित हो रही हैं। सरकार भी अपराध बोध से ग्रस्त है। शायद इसी अपराध बोध की वजह से ही सत्ता, नोटबंदी की वर्षगांठ का जश्न नहीं मना पाती ।