पर्यावरण संरक्षण को लेकर गम्भीर होने की आवश्यकता पर्यावरण संरक्षण दिवस पर विशेष


जिस देश में हर साल 15 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में वन नष्ट हो रहे हैं, वहां पर्यावरण संरक्षण की बात करना बेमानी प्रतीत होती है। भारत ऐसा देश है जहां पर्यावरण का विषय दोयम दर्जे का माना जाता है। भारत में पर्यावरण प्रदूषण के कारण हर दिन करीब 150 लोग अपनी जान गंवा लेते हैं और हजारों लोग फेफड़े और हृदय की बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। फिर भी हम पर्यावरण संरक्षण की बात नहीं करते। 
विश्व पर्यावरण संरक्षण दिवस प्रति वर्ष 26 नवम्बर को पर्यावरण संतुलन बनाए रखने एवं जन सामान्य को जागरूक करने के साथ सकारात्मक कदम उठाने के लिए मनाया जाता है। प्रकृति ने मनुष्य को कई प्रकार की सौगात दी है जिसमें सबसे बड़ी सौगात पर्यावरण की है। अगर पर्यावरण न हो तो पृथ्वी में जीवन संभव नहीं होगा। बिना पर्यावरण के कोई भी जीव जंतु जीवित नहीं कर सकता। पर्यावरण का हमारे जीवन से गहरा सम्बन्ध है। वातावरण एक प्राकृतिक परिवेश है जो पृथ्वी पर जीवन को विकसित होने में मदद करता है। यह एक महत्वपूर्ण विषय है। एक देश जो अपनी मिट्टी को नष्ट करता है, वह खुद को नष्ट कर लेता है। जंगल हमारी भूमि के फेफड़े हैं। वे हमारी हवा को शुद्ध करते हैं और लोगों को नयी ताकत देते हैं।
वृक्षों की अंधाधुंध कटाई ने भी पर्यावरण को बहुत अधिक क्षति पहुंचाई है। पर्यावरण और अकाल का भी चोली-दामन का साथ है। वृक्षों की अंधाधुंध कटाई, वायु और जल प्रदूषण से हमने अकाल को न्यौता दिया है। इन सब कारणों से हमारी कृषि योग्य 18 लाख हैक्टेयर भूमि बंजर और बेकार होकर रह गई है।
कोरोना महामारी के दौरान लगाया गया लॉकडाउन पर्यावरण के लिए निश्चय ही वरदान सिद्ध हुआ था। पर्यावरणविदों का मानना है कोरोना महामारी ने लाखों लोगों की जीवन लीला ज़रूर समाप्त कर दी मगर कुदरत को खिलखिला दिया। लोग सुबह-शाम की हवा में एक नयी ताजगी महसूस करने लगे।
पर्यावरण को लेकर आज समूचा विश्व चिन्तित है। आखिर यह पर्यावरण है क्या और इससे चिन्तित होने के कारण क्या हैं? पर्यावरण वायु, जल, मानव और वृक्षों को लेकर बना है। इनमें से किसी भी एक तत्व का क्षरण होता है तो उसका सीधा असर पर्यावरण पर पड़ता है। प्रदूषण भी पर्यावरण के लिए खतरे की घंटी बना हुआ है। पेड़, पौधे, जलवायु मानव जीवन को प्रभावित करते हैं। किसी भी एक तल के असंतुलित होने पर पर्यावरण प्रक्रिया असहज हो जाती है जिसका सीधा असर मानव जीवन पर पड़ता है। विश्व ने जैसे-जैसे विकास और प्रगति हासिल की है वैसे-वैसे पर्यावरण असंतुलित होता गया है। बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियां, कल-कारखाने, उससे निकलते धुंए, वाहनों से निकलने वाले धुएं, वृक्षों की अंधाधुंध कटाई, नदी और तालाबों का प्रदूषित होना आदि घटनाएं पर्यावरण के साथ खिलवाड़ है। हमने प्रगति की दौड़ में तो मिसाल कायम की है मगर पर्यावरण का कभी ध्यान नहीं रखा जिसके फलस्वरूप पेड़ पौधों से लेकर नदी, तालाब और वायुमण्डल प्रदूषित हुआ है और मनुष्य का सांस लेना भी मुश्किल हो गया है।
प्रदूषण का अर्थ है हमारे आस-पास का परिवेश गन्दा होना और प्राकृतिक संतुलन में दोष पैदा होना। प्रदूषण कई प्रकार का होता है जिनमें वायु, जल और ध्वनि-प्रदूषण मुख्य है। पर्यावरण के नष्ट होने और औद्योगीकरण के कारण प्रदूषण की समस्या ने विकराल रूप धारण कर लिया है जिसके फलस्वरूप मानव जीवन दूभर हो गया है। महानगरों में वायु प्रदूषण अधिक फैला है। वहां चौबीसों घंटे कल-कारखानों और वाहनों का विषैला धुआं इस तरह फैल गया है कि सांस लेना दूभर हो गया है। यह समस्या वहां अधिक होती हैं जहां सघन आबादी होती है और वृक्षों का अभाव होता है।