हाथी काला कैसे हुआ?


सदियों पुरानी बात है। एक बार एक जंगल में भयानक आग लग गई। जंगल के सारे जानवर आग लगने से जंगल को छोड़कर दूसरे जंगल में जाने लगे।
जब सारे जानवर जंगल छोड़कर चले गए तो बस जंगल में हाथी और शेर बच गए। शेर बोला-‘हाथी भाई तुम जंगल छोड़कर नहीं जाओगे क्या?’
शेर की बात सुनकर हाथी बोला-‘तुम जाओ मैं तो यह जंगल छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगा। मैं अकेले ही जंगल की आग को बुझाकर ही दम लूंगा। तुम भी जंगल छोड़कर जा सकते हो। मुझे किसी के जाने का कोई गम नहीं है।’ 
हाथी की बात सुनकर शेर भी हाथी को अकेला छोड़कर दूसरे जंगल में चला गया।
हाथी पास की नदी से सूंड़ में जल भर-भर कर लाता और आग को बुझाता। धीरे-धीरे महीना बीत गया। मगर हाथी आग बुझाना नहीं छोड़ा। 
आखिर एक दिन हाथी ने जंगल में लगी सारी आग को अकेले बुझाकर चैन की सांस ली। आग बुझाने के कारण हाथी का पूरा शरीर आग से जलकर गोरे से काला हो गया।
एक दिन हाथी ने जंगल की आग बुझ जाने की खबर पड़ोसी जंगल में रह रहे अपने सारे मित्रों को दे आया।
जंगल की आग बुझ जाने की खबर पाते ही सारे जानवर वापस अपने जंगल में आना शुरु कर दिया। कुछ ही दिनों में सारे जंगलवासी वापस अपने जंगल में लौट आए।
सारा जंगल फिर जानवरों पक्षियों से भर गया। चारों तरफ पहले जैसी चहल-पहल शुरु हो गई।
मगर हाथी की दशा देखकर सारे जानवर बहुत दु:खी हुए। सबने जले हाथी की मिलकर इलाज कराया। कुछ दिनों में हाथी ठीक हो गया। मगर उसका गोरा रंग जल जाने के कारण हमेशा-हमेशा के लिए काला हो गया।
कई सदियां बीत गई मगर हाथी का रंग काला से गोरा न हो सका। पूर्वजों द्वारा किए काम के कारण आज हाथी को हर जगह सम्मान की नज़र से देखा जाता है। उनकी पूजा की जाती है। हाथी को गणेश जी का स्वरुप भी माना जाता है। हाथी के काला होने की कहानी आज भी अमर है। (सुमन सागर) 
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