सज़ा पूरी कर चुके कैदियों की रिहाई के लिए बने राष्ट्रीय नीति

इस कैद से तो रिहाई भी अब ज़रूरी है,
किसी भी समत कोई रास्ता मिले तो सही।
भारत की न्याय व्यवस्था का कच्चा-चिट्ठा तो भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संविधान दिवस के अवसर पर सर्वोच्च न्यायालय के च़ीफ जस्टिस की उपस्थिति में अंग्रेज़ी में लिखे सरकारी भाषण को खत्म करने के उपरांत अपने दिल की बात हिन्दी में करते हुए पूरी तरह खोल कर रख दिया है। चाहे राष्ट्रपति के पास कोई सीधी कार्यकारिणी शक्तियां नहीं होतीं, परन्तु देश के प्रमुख पद पर बैठी शख्सियत द्वारा ऐसी भावपूर्ण तथा स्पष्ट बातें ऐसे समारोह में करना सचमुच ही प्रशंसनीय है।
राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा कि उन लोगों को भी न्याय मिलना चाहिए, जो छोटे-छोटे अपराधों के कारण जेलों में बैठे हैं। उन्होंने कहा कि मैं एक बहुत छोटे गांव से आई हूं, बचपन से मैंने देखा कि गांवों के लोग तीन लोगों को भगवान मानते हैं। डाक्टर को जीवन बचाने, गुरु को ज्ञान देने तथा वकील को इन्स़ाफ दिलवाने वाला होने के कारण भगवान माना जाता है। उन्होंने अपने विधायक तथा राज्यपाल बनने के दौरान के अनुभवों की बात भी की। उन्होंने भावुक अंदाज़ में जजों को कहा कि जेलों में बंद उन लोगों के बारे में भी सोचना चाहिए जो थप्पड़ मारने जैसे तुच्छ अपराध में वर्षों से जेलों में बंद हैं।
उनके बारे में सोचें जिन्हें न तो अपने अधिकारों के बारे में पता है, न ही वह संविधान की प्रस्तावना से अवगत हैं तथा वह मौलिक अधिकारों तथा संवैधानिक कर्त्तव्यों से भी अंजान हैं। उनके बारे में कोई सोच नहीं रहा। उनके परिजन उन्हें छुड़वाने का साहस नहीं कर पाते, क्योंकि मुकद्दमा लड़ने में उनके घर के बर्तन तक बिक जाते हैं, परन्तु दूसरों की ज़िन्दगी खत्म करने वाले हत्यारे बाहर घूमते रहते हैं, लेकिन आम आदमी मामूली अपराध में वर्षों तक जेलों में पड़े रहते हैं। वह सरकार पर बोझ हैं। राष्ट्रपति ने कहा कि नई जेलें बनाने की बातें होती हैं, यह कैसा विकास है? अपितु जेलें तो खत्म होनी चाहिएं।
वैसे राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो का आंकड़ा है कि दिसम्बर, 2021 में भारत में 5 लाख, 54 हज़ार, 34 लोग जेलों में बंद हैं। वैसे भी भारत में 2020 में कुल 1 करोड़ 39 लाख लोग गिरफ्तार किये गये थे तथा 2021 में यह आंकड़ा 1 करोड़ 47 लाख तक बढ़ गया था। इंडिया जस्टिस रिपोर्ट के अनुसार भारतीय जेलों में बंद 80 प्रतिशत लोग अदालतों में मुकद्दमा शुरू होने के इंतजार में बैठे हैं। न्याय का इंतज़ार बहुत लम्बा है।
राष्ट्रपति की इस भावुक तकरीर की जितनी भी प्रशंसा की जाए, वह कम है तथा उनका यह कहना कि ‘जो मैंने नहीं कहा वह भी समझें’ तो और भी भावपूर्ण है। खुशी की बात है कि राष्ट्रपति के भाषण के तीन दिनों में ही सर्वोच्च न्यायालय ने 29 नवम्बर को देश भर के जेल अधिकारियों को 15 दिनों में ऐसे कैदियों का विवरण राष्ट्रीय कानूनी सेवा अथारिटी को भेजने का आदेश जारी किया है, ताकि ऐसे कैदियों की रिहाई के लिए एक राष्ट्रीय योजना बनाई जा सके। हम सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इतनी तेज़ी से लिये गये फैसले की प्रशंसा करते हुए विनम्रता सहित निवेदन करते हैं कि राष्ट्रपति के इस संबंध में ‘न कहे’ शब्दों के भावपूर्ण संकेत को भी समझते हुए इसके साथ-साथ ही वह ऐसे कैदियों का विवरण भी मंगवा लें जो अपने पर लगे आरोपों की सज़ा पूरी करने के बाद भी वर्षों से जेलों में बंद हैं। इनमें सज़ा पूरी कर चुके सिर्फ सिख कैदी ही नहीं, अपितु हर उस कैदी की रिहाई के लिए भी एक राष्ट्रीय नीति बननी चाहिए, जो सज़ा पूरी कर चुका है। इसके साथ ही आशा करते हैं कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय हत्यारों तथा दुष्कर्म के आरोपों में सज़ायाफ्ता लोगों को राजनीतिक तथा अन्य कारणों से फरलो तथा पैरोल पर भेजने हेतु कोई नियम बनाए ताकि सरकारें या राजनीतिक पार्टियां चुनावों में इन बदमाशों का इस्तेमाल न कर सकें। नहीं तो राष्ट्रपति की भावुक अपील का प्रभाव आधा-अधूरा ही रह जाएगा। सज़ा पूरी कर चुके कैदियों की रिहाई इसलिए ज़रूरी है कि समाज को यह जानकारी मिल सके कि इन्होंने ये अपराध किये थे और इन्हें यह सज़ा मिली थी, परिणामस्वरूप वह सुधार घरों (जेलों) में सुधर कर आये हैं या और बिगड़ कर? इसके साथ ही मानवाधिकारों की रक्षा लोकतंत्र का ज़रूरी अंग है तथा सज़ा काटने के बाद रिहाई न होना मानवाधिकारों का बड़ा हनन है। फिर इस तरह अपराध की सज़ा काटने के बाद भी वर्षों तक जेलों में रखना उनकी मानसिकता को प्रभावित करता है। बकौल राज़ इलाहाबादी :
आशियां जल गया, गुलिस्तां जल गया,
हम ‘क़फस’ से निकल कर किधर जाएंगे।।
इतने मानूस सयाद से हो गये,
अब रिहाई मिलेगी तो मर जाएंगे।
पंजाब भाजपा में अश्विनी शर्मा की एक ओर पारी?
पंजाब भाजपा के नए प्रभारी तथा गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री विजय रुपानी गुजरात चुनावों में व्यस्त हैं। बताया जा रहा है कि वह 8 या 9 दिसम्बर को पंजाब आएंगे। रुपानी को पंजाब आते ही सबसे बड़ा तथा पहला फैसला पंजाब भाजपा के अगले अध्यक्ष के बारे में लेना पड़ेगा। हालांकि हमारी जानकारी के अनुसार इस समय पहला प्रश्न यह नहीं कि पंजाब भाजपा की अध्यक्षता के इच्छुक कौन-कौन हैं, अपितु पहला प्रश्न यह है कि, क्या पंजाब भाजपा के वर्तमान अध्यक्ष अश्विनी शर्मा को बदला जा सकता है या 2024 के लोकसभा चुनाव उनके नेतृत्व में ही लड़े जाएंगे? इसमें कोई संदेह नहीं कि भाजपा में लगभग आधा दर्जन पुराने नेता अध्यक्ष की कुर्सी के दावेदार हैं और कई कांग्रेस तथा अन्य पार्टियों से भाजपा में आए नेता भी स्वयं को इस पद के लिए तैयार कर रहे हैं। परन्तु हमारी जानकारी के अनुसार भाजपा हाईकमान में बड़ी संख्या में नेता अश्विनी शर्मा को एक और अवधि के लिए अध्यक्ष बनाए रखने के पक्ष में हैं। हमारी जानकारी के अनुसार केन्द्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत उनके सबसे बड़े समर्थक हैं। भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा के साथ भी उनकी निकटता है और पार्टी के संगठन मंत्री बी.एल. संतोष को भी इस लिए मनाने का प्रयास किया जा रहा है। यह भी पता चला है कि केन्द्र में बैठी पंजाब की सिख लॉबी भी अश्विनी शर्मा के पक्ष में है। हालांकि अश्विनी शर्मा के एक-दो पुराने साथी भी इस पद के लिए दावेदार बताए जाते हैं। इस समय एक बात अवश्य पक्की है कि पंजाब भाजपा अध्यक्ष बदला जाये चाहे न परन्तु आधे से अधिक शेष पदाधिकारी अवश्य बदल दिये जाएंगे। 
अकाली दल के नये ढांचे में महिलाओं की कमी 
अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने दल के नये सलाहकार बोर्ड तथा 24 सदस्यीय कोर कमेटी की घोषणा की है। सलाहकार बोर्ड की हालत तो भाजपा के ‘मार्ग दर्शक मंडल’ जैसी ही लगती है परन्तु कोर कमेटी में चाहे सुखबीर सिंह बादल ने 14 नये सदस्य नियुक्त कर कुछ परिवर्तन दिखाने का प्रयास किया है। उन्होंने इस उच्च-ताकतवर कमेटी में एससी, बीसी तथा हिन्दू चेहरों को भी काफी प्रतिनिधित्व दिया है, परन्तु एक बात स्पष्ट की है कि सरेआम उसका विरोध करने वालों के लिए पार्टी में कोई स्थान नहीं है। नि:संदेह उन्हें निकाला न ही जाए परन्तु उन्हें थोड़ा पीछे अवश्य रखा जाएगा। इस कोर कमेटी में महिला सदस्यों की कमी सबसे अधिक खटकती है। हालांकि लगभग 50 प्रतिशत मतदाता महिलाओं ने पिछले कुछ चुनावों में सिद्ध कर दिया है कि वे अब परिवार तथा पतियों की इच्छा के बिना भी अपनी मज़र्ी से मतदान कर सकती हैं। पंजाब में ‘आप’ की जीत में महिलाओं के अधिक मतदान का ही बड़ा हाथ है क्योंकि ‘आप’ द्वारा महिलाओं को 1000 रुपये महीना देने का वायदा भी किया गया था। चाहे अन्य पार्टियां भी सत्ता में आकर महिलाओं को उनका बनता अधिकार नहीं दे रहीं, परन्तु अकाली दल की कोर कमेटी में महिला अकाली दल की अध्यक्ष को उसके पद के कारण कोर कमेटी की सदस्य बनाए जाने के बावजूद महिलाओं का प्रतिनिधित्व काफी कम महसूस होता है। 
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