प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से निजी कम्पनियों को अधिक लाभ

एक दिन भी ऐसा नहीं गुजरता जब ग्रामीण भारत में किसानों की आत्महत्याओं के समाचार मीडिया में  प्रसारित या प्रकाशित नहीं होते। सूखे के कारण फसल की विफलता, बेमौसमी और अत्यधिक बारिश और अन्य मौसमी आपदाओं के साथ-साथ तीव्र अभाव और ऋण का भुगतान न कर पाना जैसे प्रमुख कारक किसानों को अपना जीवन समाप्त करने के लिए मजबूर कर देते हैं।
फसल नुकसान के मुआवज़े के भुगतान की मांग को लेकर संघर्षरत किसान संगठनों का लम्बा इतिहास रहा है। जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की शुरुआत की थी तो इसका व्यापक रूप से स्वागत किया गया था। हालांकि फसल बीमा योजना के क्रियान्वयन से संकटग्रस्त किसानों को राहत देने की बजाय निजी बीमा कम्पनियों को काफी फायदा हो रहा है।
सांसद बिनॉय विश्वम ने हाल ही में प्रधानमंत्री को लिखे अपने पत्र में बताया कि किस तरह बीमाकृत किसानों के फसल नुकसान के दावों की अनदेखी की गयी और विभिन्न निजी बीमा कम्पनियों ने भारी मुनाफा कमाया। उन्होंने एक केंद्रीय मंत्री द्वारा केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्री को लिखे गये एक पत्र का हवाला दिया, जिसमें उन्होंने विस्तार से बताया कि कैसे ओडिशा में किसानों को निजी बीमा फर्मों द्वारा 2021 में खरीफ  के दौरान उचित मुआवज़े से वंचित कर दिया गया था। भाकपा सांसद ने प्रधानमंत्री से इस घोटाले की सीएजी (कैग) जांच कराये जाने का अनुरोध किया।
ओडिशा में जो हुआ वह सिर्फ  एक हिमशैल का ऊपरी भाग भर है। वास्तव में पूरे देश में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का कार्यान्वयन इतना अपारदर्शी है कि यह देश भर के किसानों के बीच लोकप्रिय नहीं रहा है। 2016 में योजना की शुरुआत के समय लगभग 30 प्रतिशत किसानों ने 21 राज्यों से 9,000 करोड़ रुपये का भुगतान करके योजना की सदस्यता ली थी। हालांकि 2021 तक केवल 18 प्रतिशत किसानों ने सदस्यता ली, इस तथ्य के बावजूद कि बैंकों से सभी फसल ऋण लेने वालों के लिए निजी बीमा कम्पनियों के तहत बीमा कराना अनिवार्य है। इस योजना के प्रदर्शन से असंतुष्ट तेलंगाना, पश्चिम बंगाल, गुजरात, महाराष्ट्र और कुछ अन्य राज्यों ने प्रीमियम के लिए योगदान करने से इन्कार कर दिया और इस केंद्रीय योजना से हट गये।
पिछले पांच वर्षों के दौरान केंद्र, राज्यों और किसानों द्वारा बीमा कम्पनियों को बीमा योजाना के तहत भुगतान किया गया कुल प्रीमियम 1,26,521 करोड़ रुपये था, जबकि बीमा कम्पनियों ने दावों के निपटान के लिए किसानों को केवल 87,320 करोड़ रुपये का भुगतान किया। दूसरे शब्दों में इस योजना से बीमा कम्पनियों को 39,201 करोड़ रुपये का फायदा हुआ है।
पिछले पांच वर्षों में दावों के निपटान में बाधाओं के परिणामस्वरूप योजना के कवरेज में गिरावट आयी है। उदाहरण के लिए पांच साल की अवधि में खरीफ  के दौरान कवर किये गये किसानों की संख्या में 29 प्रतिशत और रबी के दौरान 33 प्रतिशत की कमी आयी है। निजी बीमा कम्पनियों ने किसानों को कुल 92,954 करोड़ रुपये के दावों के मुकाबले केवल 87,320 करोड़ रुपये का भुगतान किया जबकि सार्वजनिक क्षेत्र की 90 प्रतिशत बीमा कम्पनियों ने अधिकांश दावों का निपटान किया है, अक्सर नुकसान उठाकर भी। ये निजी बीमा कम्पनियां हैं जो दावों का निपटान करने में विफल रही हैं तथा इस योजना से 60-70 प्रतिशत तक का मुनाफा कमाया है। 
अक्सर बीमा कम्पनियां किसानों से दावे प्राप्त करने के बाद फसल के नुकसान का आकलन करने और मुआवज़े का भुगतान करने में कई महीने और कई फसली मौसम का समय लेती हैं। हालांकि नुकसान के जल्दी आकलन के लिए फसल काटने के परीक्षणों को पूरा करने के लिए ड्रोन और अन्य तकनीकी मदद का उपयोग करना अनिवार्य है, लेकिन निजी बीमा कम्पनियां प्रस्तुत दावों को पूरा करने में महीनों की देरी करती हैं। खेती पर निवेश करने के लिए पूंजी नहीं होने के कारण छोटे किसान कभी न खत्म होने वाले ऋण चक्र में धकेल दिये जाते हैं। इसके अलावा काश्तकार किसान, जिनका ज़मीन पर मालिकाना हक नहीं होता, परन्तु वास्तव में वही खेती कर रहे होते हैं, वे बैंक फसल ऋण, पीएम सम्मान सहायता या बीमा मुआवज़ा प्राप्त करने के पात्र नहीं हैं। आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में काश्तकार किसान लगभग 40 प्रतिशत कृषक हैं। किसान के दावों को जमा करने के दो सप्ताह के भीतर मंजूरी दे दी जानी चाहिए। केंद्रीय कृषि मंत्रालय को किसानों के दावों पर कार्रवाई करने और बीमा फर्मों की अनियमितताओं की निगरानी के लिए किसान संघों की भागीदारी के साथ तुरंत एक समिति का गठन करना चाहिए। चूंकि निजी बीमा कम्पनियों का प्रदर्शन त्रुटिपूर्ण है, इसलिए कुल कारोबार सार्वजनिक क्षेत्र की बीमा कम्पनियों को सौंपा जाना चाहिए। किसानों को मुआवज़े के भुगतान में वित्तीय अनियमितताओं की जांच के लिए सरकार को सीएजी के पास जाना चाहिए। (संवाद)