वैश्विक मंदी के रुझान के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था झंझावात झेलने में सक्षम


भारत की कुल आय, सकल घरेलू उत्पाद जिसे जीडीपी के नाम से जाना जाता है, के आंकड़ों का नवीनतम सेट दर्शाता है कि कुछ कमजोरियों के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था को लचीली और झंझावातों को झेलने में सक्षम है। यह अलग बात है कि विनिर्माण क्षेत्र में समस्याएं अभी भी बरकरार हैं।
नवीनतम सकल घरेलू उत्पाद के आंकड़े निरंतर सफलताओं के साथ-साथ भारतीय अर्थव्यवस्था की विफलताओं, इसकी कठोरता और लचीलेपन के साथ-साथ संरचनात्मक ढांचे को प्रदर्शित करते हैं। तीन मुख्य बिंदु हैं: विनिर्माण लगातार विफल हो रहा है, कृषि क्षेत्र मुख्य आधार है और सेवाएं लगातार अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं। इन सभी गतिविधियों को मजबूत घरेलू निजी खपत और अल्प निर्यात से बल मिलता है।
वित्तीय वर्ष की दूसरी तिमाही में जीडीपी में 6.3: की सहज वृद्धि हुई, जो महामारी और वैश्विक अनिश्चितताओं के आघात को देखते हुए एक सकारात्मक संकेत है। वहीं, दूसरी तिमाही में जीडीपी पिछले साल के पहले तीन महीनों की तुलना में धीमी गति से बढ़ी। इसे चिंताजनक बताया गया है। हालांकि, अक्सर यह भुला दिया जाता है कि जीडीपी वृद्धि दर के आंकड़े पूर्व के किसी आधारभूत आंकड़े की तुलना मात्र होते हैं। फिर अक्सर उस आधार पर सरकारें अपनी चाल चलती हैं। समझदारी इसी में है कि इनमें से किसी भी बात को गहरायी में जाये बिना गंभीरता से नहीं लिया जाना चाहिए।
हमें आंकड़ों के नवीनतम सेट से तीन महत्वपूर्ण सबक मिलते हैं। पहला, कि महामारी के समय शीतनिद्रा के बाद अर्थव्यवस्था में फिर से जान आ गयी है। हम फिर से बढ़ रहे हैं और एक बड़ी अर्थव्यवस्था के लिए एक स्वस्थ रास्ते पर हैं, जबकि बाकी दुनिया मुश्किल से ऐसा कर रही है। 
दूसरेस समग्र अर्थव्यवस्था के लिए कृषि क्षेत्र महत्वपूर्ण है। पिछली तिमाही की तुलना में कृषि क्षेत्र में मामूली तेज़ी से वृद्धि हुई। एक बार फिर, वैश्विक खाद्य कमी और खाद्य कीमतों पर अनिश्चितता के इन दिनों में, महत्वपूर्ण कृषि क्षेत्र और अधिक महत्वपूर्ण हो गया है। एक बढ़ता हुआ और लचीला कृषि क्षेत्र देश के साथ-साथ उथल-पुथल होती कीमतों की स्थिरता के लिए सबसे अच्छा बीमा है। खाद्य कीमतों ने समग्र अर्थव्यवस्था के लिए स्वर और ताल निर्धारित किया है। बढ़ती खाद्य कीमतों का खतरनाक स्तर नीति निर्माताओं को एक सकारात्मक ढांचा बनाये रखने के मामले में और अधिक मुश्किल में डाल सकता है। उदाहरण के लिए, रिजर्व बैंक को ब्याज दरें बढ़ाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।
साथ ही, विनिर्माण क्षेत्र के उत्पादन का संकुचन 4.3 प्रति शत होना, जैसा कि नवीनतम आंकड़ों में खुलासा किया गया है, एक प्रमुख आर्थिक गतिविधि में देश की निरंतर विफलता का संकेत है। यह नीति निर्माताओं और भारतीय उद्योग के लिए पीड़ादायक बिंदु बना हुआ है। मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर सालों से फिसड्डी बना हुआ है। साथ ही, हमने चुनिंदा क्षेत्रों में उल्लेखनीय बदलाव देखा है। भारतीय ऑटोमोबाइल उद्योग शिशुवत बना हुआ है तथा भारी कीमतों पर केवल कुछ अनाकर्षक कारों का उत्पादन कर रहा था, जिनमें ज्यादातर सर्विसिंग और मरम्मत की आवश्यकता थी।
आज हमारे पास उनमें से अनेक हैं जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर के हैं, और यहां तक कि इन्हें विकसित देशों को निर्यात भी किया जाता है। उत्पादन कई गुना बढ़ गया है और यह वैश्विक प्रतिस्पर्धा से लड़ने की स्थिति में है। टाटा मोटर्स, जिसे वैश्विक निर्माताओं के प्रतिस्पर्धी के रूप में कभी भी गंभीरता से नहीं लिया गया था, अब कई अन्य प्रतिस्पर्धियों के बीच जो सर्वश्रेष्ठ हैं उनसे भी प्रतिस्पर्धा कर रहा है। चीनी मॉडल दर्शाता है कि विनिर्माण उद्योग में सफलता एक अर्थव्यवस्था के लिए क्या कर सकती है। लगभग चालीस साल पहले, चीन और भारत अपने आर्थिक प्रदर्शन और संरचना में बहुत भिन्न नहीं थे। हालांकि, विनिर्माण क्षेत्र में चीनी विकास और इस तरह के निर्यात में इसके प्रभुत्व ने चीन को आज क्या बना दिया है!
इस बारसेवा क्षेत्र ने अच्छी वृद्धि दिखायी है। यदि भारत को 8: से अधिक की विकास दर को बनाये रखना है तो इस साज.सज्जा को कम से कम दो अंकों के आंकड़े से बढ़ना होगा। सेवा क्षेत्र के विकास ने भारतीय सेवा उद्योग की प्रतिस्पर्धात्मकता को भी प्रदर्शित किया था। आईटीईएसए जो सफलता की उल्लेखनीय कहानी है, वह भी बिना समुचित सरकारी मदद के, जिसका मुख्य कारण यह रहा कि सरकार नेउसमें ज्यादा दखलअंदाजी करने से परहेज किया यद्यपि ऐसा करने के प्रयास किये गये।  आंकड़े यह भी बताते हैं कि अर्थव्यवस्था बुरी तरह से निजी खपत पर निर्भर है जो विकास के समग्र स्वर का निर्धारण करती है। (संवाद)