पंजाबियों को मुफ़्तखोर किसने बनाया ?

ज़िन्दगी हर जावीए से देखता हूं मैं तुझे,
है मेरी ़िफकर-ओ-नज़र का दायरा फैला हुआ।
जहांगीर नायाब के शे’अर के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति का फज़र् है कि वह ज़िन्दगी को प्रत्येक कोने से देखे तथा उसकी सोच पर नज़र का दायरा पूरी तरह विशाल हो। तभी वह वक्त के मौजूदा हालत से अपने भविष्य का अनुमान लगाने में सफल हो सकता है। हालांकि आज का सबसे बड़ा विषय तो गुजरात तथा हिमाचल विधानसभा तथा दिल्ली नगर निगम (एम.सी.डी.) के चुनाव परिणामों तथा उनके कारण भविष्य में घटित होने वाले सम्भावित हालात की चर्चा ही है। परन्तु इस दौरान राजनीतिक पार्टियों द्वारा पंजाबियों को मुफ़्तखोर बनाने के लिए दी गईं रियायतों का पंजाबी मानसिकता पर पड़ा प्रभाव भी विचारणीय है।
जिस तरह फतेहगढ़ साहिब के निकट सेब के पलटे ट्रक  से लोगों ने सरेआम पूरी बेशरर्मी से सेब की पेटियां लूटीं, उसने न तो सिर्फ पंजाबियों के सम्मान को कम किया है तथा पंजाबियों के स्वाभिमान को ठेस पहुंचाई है, अपितु यह भी दिखाया है कि किस तरह सरकारों तथा राजनीतिक पार्टियों ने मुफ़्त की वस्तुएं दे-दे कर पंजाबियों की गुरु साहिबान के समय से बनाई गई ‘घालि खाई किछु हथहु देहि।। नानक राहु पछाणहि सेई।। (अंग : 1245) वाली मानसिकता को नई तरह की पंक्तियों एवं भूख वाली मानसिकता में बदल दिया है, नहीं तो कोई ़गरीब या कोई भिखारी एक-आधी सेब की पेटी उठा लेता तो बात में समझ में आती है, परन्तु कारों के मालिकों को चाहिए था कि वे ऐसा न करते।
यह कोई ज्यादा पुरानी बात भी नहीं अभी 24 वर्ष पूर्व मेरी  आंखों के सामने घटित घटना है। जब खन्ना के निकट 26 नवम्बर, 1998 को सुबह के 3.15 मिनट पर हुई रेल दुर्घटना में 212 लोग मारे गये थे। सैकड़ों घायल हो गये थे। प्रात: 4 बजे हम दुर्घटना वाले स्थान पर पहुंच गए थे। गांवों तथा शहरों के लोग अनथक प्रयास कर रहे थे कि घायलों की  ज़िन्दगी बचाई जा सके। लंगर लग गए थे और शायद एक भी व्यक्ति ने अपनी कोई  भी वस्तु गुम हो जाने की शिकायत नहीं की थी।
नि:सन्देह दो पंजाबियों जिनमें पटियाला के राजविन्दर सिंह तथा मोहाली के गुरप्रीत सिंह ने सेब के व्यापारियों को 9 लाख 12 हज़ार अपनी तरफ से देकर पंजाब की इज्ज़त को बचाने का प्रयास किया है परन्तु यह घटना आम पंजाबियों की मानसिकता में आये बड़े बदलाव को व्यक्त तो करती ही है।  हालांकि हम पंजाबी गुजरातियों को उनके व्यापार के ढंग-तरीकों के कारण कई बार कुछ बुरा-भला भी कहते रहते हैं परन्तु गुजरात के चुनाव परिणामों ने यह बात तो स्पष्ट कर दी है कि वह मुफ्त की चीज़ों संबंधी पंजाब से अलग सोचते हैं। हमारे सामने है कि गुजरात विधानसभा के चुनावों में मुफ़्त बिजली, पैन्शनों तथा अन्य वायदे करने वाली कांग्रेस एवं ‘आप’ दोनों को उन्होंने नकार दिया है। यदि पंजाब में नैतिक मूल्यों तथा मेहनत करके बांट कर खाने की प्रथा को जीवित रखना है तो ज़रूरी है कि पंजाबियों को फिर से स्वाभिमान के साथ जीने को प्राथमिकता देने वाले तथा मुफ़्त की खाने वाले बनाने से बचाने के लिए कोई अभियान चलाया जाये। नहीं तो अलामा इकबाल के लफ्ज़ों में:
़िखरद-मंदों से क्या पुछूं कि मेरी इबत का क्या है।।
कि मैं इस ़िफक्र में रहता हूं मेरी इंतहा क्या है।।
चुनाव परिणाम 
जो चुनाव परिणाम दिल्ली नगर निगम (एम.सी.डी.), गुजरात तथा हिमाचल प्रदेश विधानसभा के हमारे सामने आये हैं। उनमें एम.सी.डी. में ‘आप’, गुजरात में भाजपा तथा हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस ने जीत दर्ज की है।
नि:सन्देह ‘आप’ ने दिल्ली एम.सी.डी. में बड़ी जीत प्राप्त की है परन्तु मत प्रतिशत के अनुसार यह ‘आप’ के लिए एक ़खतरे की घंटी भी है। वैसे तो ‘आप’ ने  2017 के एम.सी.डी. चुनावों में 21.09 प्रतिशत मतों के मुकाबले इस बार लगभग दोगुणा अर्थात् 42.5 प्रतिशत मत प्राप्त किए हैं जो कमाल की उपलब्धि है। परन्तु इस बीच 2020 के विधानसभा चुनावों में ‘आप’ ने 53.75 प्रतिशत मत प्राप्त किये थे। इस प्रकार आम आदमी पार्टी 2020 के मुकाबले इस बार लगभग 11 प्रतिशत कम मत लेकर गई है, जिस पर उन्हें विचार-विमर्श करने की ज़रूरत है। जबकि भाजपा जो 2017 के एमसीडी चुनावों में सिर्फ 36.8 प्रतिशत मत लेकर भी विजेता रही थी, इस बार हारने के बावजूद लगभग 3 प्रतिशत अधिक मत लेने में सफल रही है। इस बार भाजपा ने 39.09 प्रतिशत मत प्राप्त किये हैं। भारी अंतर यह रहा कि भाजपा ने 2020 के विधानसभा चुनावों में प्राप्त किये मतों से भी लगभाग आधा प्रतिशत अधिक मत ही हासिल किये हैं। भाजपा ने 2020 विधानसभा में 38.5 प्रतिशत मत प्राप्त किये थे। कांग्रेस ने 2017 के एमसीडी चुनावों में प्राप्त किये मत, जो 21 प्रतिशत के लगभग थे, से इस बार बहुत कम सिर्फ 11.6 प्रतिशत मत ही हासिल किये हैं। परन्तु उसके लिए संतोष की बात यह होगी कि 2020 विधानसभा चुनावों में तो उसके मत सिर्फ 4.24 प्रतिशत ही रह गये थे, जो अब 7 प्रतिशत के लगभग बढ़ गये हैं। 
गुजरात के परिणाम
इस समय तक प्राप्त रिपोर्टों से स्पष्ट है कि भाजपा ने 2017 के विधानसभा चुनावों में प्राप्त किये 49.05 प्रतिशत मतों के मुकाबले इस बार 52.50 प्रतिशत मत प्राप्त किये हैं तथा 156 सीटें जीत कर एक नया रिकार्ड भी बनाया है। जबकि कांग्रेस जिसने पिछली बार 41.44 प्रतिशत मत प्राप्त किये थे, इस बार 27.29 प्रतिशत के आस-पास ही मत हासिल कर सकी है तथा यह 17 सीटों पर ही सीमित हो गई है। आम आदमी पार्टी चाहे गुजरात में तीसरी बड़ी पार्टी बनने में सफल रही है और इस आधार पर वह अपना राष्ट्रीय पार्टी के रूप में मान्यता प्राप्त करने का लक्ष्य भी पूरा कर सकती है, ने भी लगभग 12.92 प्रतिशत मत ही प्राप्त किये हैं तथा 5 सीटों पर ही जीत दर्ज करने में ही सफल हो सकी है। इस प्रकार नि:संदेह गुजरात में कांग्रेस व ‘आप’ को मिले मत मिला कर भी  भाजपा से चाहे कहीं कम हैं परन्तु इस का अर्थ यह बिल्कुल नहीं कि ‘आप’ की मौजूदगी ने भाजपा को रिकार्ड तोड़ जीत हासिल करने में मदद नहीं की। वास्तव में जब किसी सत्तारूढ़ पार्टी की विपक्ष के वोट बंट जाने की बात सामने आती है तो सत्तारुढ़ पार्टी के पक्ष में सत्ता समर्थक लोग अपने-आप ही झुक जाते हैं।   
हिमाचल प्रदेश के परिणाम
हिमाचल प्रदेश के परिणाम भी यही स्पष्ट करते हैं कि जब आम आदमी पार्टी चुनावों के पहले चरण में ही मैदान से बाहर हो गई तो मुकाबला सीधा भाजपा और कांग्रेस में दिखाई देने लगा था, जिससे भाजपा के बागी उम्मीदवारों ने भी कांग्रेस के पक्ष में हवा बनाई तो कांग्रेस की जीत की सम्भावनाएं बन गई थीं। हिमाचल में एक और भी अंतर है कि यहां मुस्लिम आबादी सिर्फ 2.18 प्रतिशत ही है। भाजपा यहां हिन्दुओं को मुस्लिम ़खतरे का हौवा नहीं दिखा सकती। यहां लड़ाई सांप्रदायिक ध्रुवीकरण से दूर रही। कांग्रेस ने 2017 के विधानसभा चुनावों में हिमाचल में 41.7 प्रतिशत मत प्राप्त किये थे, परन्तु इस बार ये बढ़ कर 43.90 प्रतिशत के आस-पास हैं। जबकि भाजपा जिसने 2017 में 48.8 प्रतिशत के लगभग मत प्राप्त किये थे, इस बार 43 प्रतिशत मत ही प्राप्त किए हैं अर्थात् भाजपा के लगभग 6 प्रतिशत मत कम हुए हैं। ऐसा भाजपा के बागी उम्मीदवारों के कारण भी हुआ है। हिमाचल में आम आदमी पार्टी तो सिर्फ 1.10 प्रतिशत मत ही प्राप्त कर सकी है। कांग्रेस को हिमाचल प्रदेश में प्रियंका गांधी की लगातार मेहनत का लाभ भी मिला है। 
एक भविष्यवाणी 
आप का कोई स़फर बे-समत बे-मंज़िल न हो ।
ज़िन्दगी ऐसे न जीना जिस का मुस्तकबिल न हो।
(अनीस देहलवी)
हम कोई ज्योत्षि या नजूमी तो नहीं हैं परन्तु दो जमा दो चार तो स्पष्ट दिखाई दे ही जाते हैं। इन ताज़ा चुनाव परिणामों को देखते हुए एक भविष्यवाणी बड़ी आसानी से की जा सकती है कि भाजपा 2024 के आम चुनाव जीतने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ेगी। चाहे अभी भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित किये जाने की कोई सम्भावना नहीं परन्तु वह हिन्दू बहुसंख्यावाद का पत्ता और मज़बूती से खेलने का प्रयास अवश्य करेगी। हम समझते हैं कि इस उद्देश्य के लिए एक ओर राम मंदिर का निर्माण शीघ्र अतिशीघ्र पूरा किया जाएगा और दूसरा उसके साथ ही कुछ अन्य मंदिरों का मामला भी उभार में आएगा, परन्तु यह तो गैर-सरकारी मामले हैं। सरकारों द्वारा ‘एक समान कानून’ तथा ‘जनसंख्या नियंत्रण कानूनों’ को 2024 के चुनावों से पहले-पहले लागू किये जाने की सम्भावनाएं भी स्पष्ट नज़र आ रही  हैं। 
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