देश और समाज के विकास हेतु भ्रष्टाचार पर अंकुश ज़रूरी

अंतर्राष्ट्रीय भ्रष्टाचार विरोधी दिवस हर साल 9 दिसम्बर को देश और दुनिया में भ्रष्टाचार के बारे में लोगों के बीच जागरूकता बढ़ाने और वे इससे लड़ने के लिए मनाया जाता है।  संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार हर साल 1 ट्रिलियन डॉलर का भुगतान रिश्वत के रूप में किया जा रहा है, जबकि यूएसडी 2.6 ट्रिलियन को भ्रष्ट उपायों के कारण चुराया गया है।  संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के अनुसार यह अनुमान लगाया जाता है कि विकासशील देशों में भ्रष्टाचार के कारण 10 गुना धनराशि खो गई है।
आज के दिन हमें भ्रष्टाचार को जड़ मूल से खत्म करने  का प्रण करना चाहिए। भ्रष्टाचार विरोधी लोग अनेक वक्तव्य देते हैं। असल में हकीकत तो ये है ऐसी कसमें खाने वाले भी जानते हैं कि ये सिर्फ  रस्मी प्रक्रिया है। भ्रष्टाचार एक दीमक की तरह राष्ट्र के विकास को अवरुध करता है। भ्रष्टाचार एक गंभीर अपराध है जो सभी समाजों में नैतिक, सामाजिक और आर्थिक विकास को कमज़ोर करता है।
वैश्विक रेटिंग एजेंसियों ने भ्रष्टाचार के मामलों में भारत को अग्रणी देश बता कर कठघरे में खड़ा किया है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा जारी भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक 2021 में 180 देशों में से भारत का स्थान 85वाँ है। सरकार को भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिये सख्ती के साथ-साथ व्यावहारिक कदम उठाने की दिशा में कार्य करना चाहिए। भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम के तहत समय पर प्रभावी कार्रवाई करके भ्रष्टाचार को रोका जा सकता है। सरकारी अधिकारियों-कर्मचारियों और जन-प्रतिनिधियों के भ्रष्टाचार पर कार्रवाई करके लोकतंत्र को मज़बूत किया जा सकता है।
आधा भारत आज रिश्वत व भ्रष्टाचार के मकड़जाल में फंसा हुआ है। भ्रष्टाचार पर सर्वे की विभिन्न रिपोर्टों से यह खुलासा हुआ है। भारत में भ्रष्टाचार ने संस्थागत रूप ले लिया है। स्थिति यह हो गई है कि बिना रिश्वत दिए आप एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकते। देश में भ्रष्टाचार इस हद तक फैल चुका है कि इसने राष्ट्र व समाज की बुनियाद को ही बुरी तरह हिला कर रख दिया है। जब तक मुट्ठी गर्म न की जाए तब तक कोई काम ही नहीं होता। भ्रष्टाचार एक संचारी  बीमारी  की भांति इतनी तेजी से फैल रहा है कि लोगों को अपना भविष्य अंधकार से भरा नज़र आने लगा है और कहीं कोई भ्रष्टाचार मुक्त समाज की उम्मीद नज़र नहीं आ रही है। मंत्री से लेकर संतरी और नेता पर भ्रष्टाचार के दलदल में फंसे हैं। हालात ये हैं कि निजी क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं है। सिविल सोसाइटी और मीडिया के दवाब में  सरकारी एजेंसियां  भ्रष्टाचार के खिलाफ  कार्रवाई को अंजाम तो दे रही हैं मगर उनकी गति बेहद धीमी है। भ्रष्टाचार ने अपनी जड़े मज़बूती से जमा ली हैं। लगभग सभी सलकारी कार्यालय ऐसे हैं जहां बिना सुविधा शुल्क के कोई काम नहीं होता।