गेहूं का झाड़ बढ़ाने के लिए गुल्ली डंडे की समस्या का हल करना ज़रूरी


धान की कुछ अच्छी फसल लेने और इसके अवशेष और पराली को विभिन्न विधियों से सम्भालने या नष्ट करने के उपरांत किसानों ने गेहूं की बिजाई तकरीबन 95 प्रतिशत क्षेत्र में समय पर कर ली है। आलू, मटर और गन्ने की जहां काश्त हुई थी, उन फसलों से खाली हुए क्षेत्र पर किसान अब पिछेती लगाने वाली किसमों की बिजाई कर रहे है। धान वाले खेतों में अक्तूबर-नवम्बर में गेहूं की बिजाई करने के बाद अब सामने गुल्ली डंडे की समस्या आ रही है। गुल्ली डंडा कई खेतों में 30 प्रतिशत तक झाड़ घटाने में हावी होता है। आम तौर पर यह नदीन गेहूं-धान के फसली चक्कर वाले खेतों में होता है। गेहूं 35 लाख हैकटेयर क्षेत्र पर होती है। धान-गेहूं का फसली चक्कर बढने के उपरांत गुल्ली डंडे की समस्या भी बढ़ी है। नदीन (जिसमें गुल्ली डंडा शामिल है) या तो फसल के साथ ही पैदा हो जाते है या फिर पहले पानी से पहले या पहली और दूसरी सिंचाई के बाद उगते है।
गुल्ली डंडे की समस्या नदीन नाशकों के प्रयोग के साथ या फिर काश्तकारी तरीके अपनाकर भी हल की जा सकती है। गेहूं की अगेती किसमों की बिजाई 15 सै.मी. के फासले के साथ रखी कतारों में अंतिम अक्तूबर या नवम्बर में की जाये तो गुल्ली डंडे की समस्या कम आती है। धान की फसल की जगह कोई भी अन्य फसल लगाई फसली चक्कर बदलकर गुल्ली डंडे की समस्या कम की जा सकती है। गेहूं की बिजाई के समय मिट्टी की परत दबा दी जाए तो भी गुल्ली डंडे के पहले दौर पर काबू पाया जा सकता है, क्योंकि गुल्ली डंडे या किसी नदीन को उगने के लिए नमी की जरुरत होती है। फसल की इस प्रकार बिजाई करके गुल्ली डंडे या अन्य नदीनों को भी उगने से रोका जा सकता है। परन्तु किसान इन काश्तकारी तरीकों को नहीं अपनाते। गुल्ली डंडा हाथ से निकालना बहुत महंगा पड़ता है और ऐसा करना भी असंभव है। गुल्ली डंडे  की रोकथाम के लिए किसान आम तौर पर नदीन नाशक प्रयोग करते है। कई स्थानों पर गुल्ली डंडा दो-तीन नदीन नाशकों के छिड़काव पर किये फालतु खर्च के साथ भी नहीं मरता। या तो सही नदीन नाशक का चुनाव नहीं किया जाता या फिर छिड़काव की सही विधि प्रयोग नहीं की जाती या छिड़काव सही समय पर नहीं किया जाता। 
सबज़ इंकलाब के बाद शुरू-शुरू में तो गुल्ली डंडा मारने के लिए किसान ऐसी दवाईयों का प्रयोग करते थे, जो सस्ती थी। वह गुल्ली डंडे की रोकथाम कर देती थी। फिर पिछली शताब्दी के 9वें दशक के शुरू से इन दवाईयों की प्रभाव-शक्ति घटती गई, जिसके उपरांत पिछली शताब्दी के 9वें दशक के मध्य के बाद कई अन्य नदीन नाशक आ गये, जिन्होंने गुल्ली डंडे की रोकथाम की और गेहूं के झाड़ में भी बढौतरी की। परन्तु कुछ समय के बाद इन दवाईयों के परिणाम संबंधी भी शिकायतें आने लगीं, जिसके उपरांत यह नदीन नाशक आ गये जो अलग-अलग रूप में लम्बे समय तक प्रयोग किये जा रहे हैं। किसानों की शिकायत है कि अब कई स्थानों पर इन नये नदीन नाशकों के साथ भी गुल्ली डंडा नहीं मरता। गुल्ली डंडा फसल को बुरी तरह से प्रभावित करता है। किसानों ने दो-दो नदीन नाशक मिलाकर छिड़काव करने शुरू कर दिये। उन्होंने अपनी विधियां भी ढूंढने पर ज़ोर दिया। कुछ मनजीत सिंह पक्खी बेगोवाल (दोराहा निकट) जैसे मेहनती और समझदार किसानों ने सनकौर को यूरिये के साथ मिलाकर पहले पानी के बाद जब खेत में पानी न खड़ा हो, परन्तु अच्छी तरह से गीला हो, छिडकाव करना शुरू कर दिया, जिससे उनको बड़े क्षेत्र पर गुल्ली डंडा समाप्त करने में सफलता प्राप्त हुई और गुल्ली डंडे से काफी हद तक निजात मिल गई। ‘सनकौर’ वैसे तो आलुओं पर प्रयोग करने के लिए सिफारिश किया गया है। किसानों द्वारा  ‘सनकौर’ संबंधी की यह खोज सफल भी रही और इस पर खर्च भी बहुत कम आया। जहां गुल्ली डंडा मारने के लिए सटौंप नदीन नाशक के प्रयोग की सिफारिश की गई थी, उस पर 2500 रुपये प्रति एकड़ खर्च करने के बाद भी गुल्ली डंडे का पूर्ण नाश नहीं हुआ और किसान बाद में टोटल जैसी दवाई का सप्रे करने के लिए मजबूर हुए। कुछ कम्पनियों ने भी सनकोर का प्रयोग करके कुछ नदीन नाशक गुल्ली डंडे के लिए विकसित कर दिये जैसे यू.पी.एल. द्वारा ‘एैवरट’ नदीन नाशक का मंडीकरण किया जा रहा है।
पंजाब कृषि यूनिवर्सिटी द्वारा बिजाई के समय गुल्ली डंडा पैदा होने से पहले पैंडीमैथालीन और अवकीरा जैसे नदीन नाशक सिफारिश किये गये है। नदीन पैदा होने के बाद आईसोप्रोटयूरान ग्रुप के रसायनों और सलफोसलफूरान ग्रुप के नदीन नाशक प्रयोग करने के लिए कहा गया। पहली सिंचाई के बाद जब नदीन पैदा हो जाएं कलोडीनाफौप, पिनोकसाडिन आदि ग्रुप के नदीन नाशकों के प्रयोग की सिफारिश की गई है। जिन खेतों में गुल्ली डंडे के साथ चौड़े पत्ते वाले नदीनों की समस्या हो तो इनकी पूरी रोकथाम के लिए ‘टोटल’, एटलांटिस और ‘शगुन 21-11’ (कलोडीनाफोप +मैटरीबियूजन) नदीन नाशक प्रयोग करने की सिफारिश है। आम किसान टोटल, एटलांटिस, शगुन 21-11 और टोपिक आदि नदीन नाशक ही प्रयोग करते है।
कई स्थानों पर पी.ए.यू. द्वारा सिफारिश किये गये इन नदीन नाशकों के साथ भी गुल्ली डंडा नहीं मरता। ऐसी स्थिति में किसानों को कृषि विशेषज्ञों और पी.ए.यू. के विज्ञानिकों की सलाह लेनी चाहिए। प्रयोग की विधि में सुधार लाना चाहिए। नदीन नाशकों के प्रयोग का सही चुनाव करने के लिए पिछले वर्षों में खेतों में प्रयोग किये गये नदीन नाशकों की जानकारी रखनी चाहिए। जिन नदीन नाशकों ने पिछले वर्षों में अच्छे परिणाम न दिये हों, उन नदीन नाशकों को इस वर्ष न प्रयोग किया जाये। लगातार एक ही नदीन नाशक प्रयोग करने से नदीनों में नदीन नाशक के प्रति रोधक शक्ति पैदा हो जाती है और असर कम हो जाता है। इसको रोकने के लिए प्रत्येक वर्ष विभिन्न ग्रुपों के नदीन नाशक प्रयोग किये जायें। 
सिफारिश से कम मात्रा प्रयोग करने पर गुल्ली डंडे की रोकथाम नहीं होती और सिफारिश से ज्यादा मात्रा प्रयोग करने से गेहूं की फसल का नुकसान हो जाता है।  खड़ी फसल में छिड़काव करने के लिए 150 लीटर पानी प्रति एकड़ प्रयोग करना चाहिए।