किसानों की कृषि आय कैसे बढ़े ?


कृषि पंजाब की आर्थिकता का आधार है। यह लगभग 68 प्रतिशत लोगों को रोज़गार उपलब्ध करवाती है। आज़ादी के बाद कृषि में पंजाब ने शानदार तकक्की की है सब्ज़ इन्कलाब के आगाज़ के बाद पिछली शताब्दी के 70वें में ही पंजाब ने भारत को अनाज के तौर पर आत्मनिर्भर बनाया था और अब यह अनाज निर्यात करने के योग्य है। गेहूं की उत्पादकता 20 क्विंटल और धान की 30 क्विंटल प्रति एकड़ पर पहुंच गई है। इसके बावजूद किसान खुश नहीं उनकी आय में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई, चाहे उत्पादकता दूसरे प्रदेशों से ज्यादा है। 
कुल 41.3 लाख हैक्टेयर कृषि योग्य क्षेत्र में से केवल 35 लाख हैक्टेयर क्षेत्र पर गेहूं और 30-31 लाख हैक्टेयर क्षेत्र पर धान की काशत की जाती है। एक ही फसली चक्र ने कई प्रकार की कृषि समस्याओं को जन्म दिया है। कुदरती साधनों का बड़े स्तर पर प्रयोग होने के कारण उनका नुकसान हुआ है। धरती निचले पानी की स्तह दिन-ब-दिन नीचे जा रही है। ज्यादा ब्लाकों में धरती नीचला पानी खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है। वहीं नया ट्यूबवैल लगाने की कोई गुंजाईश नहीं और पुराने ट्यूबवैलों में किसान फाल्तू खर्च करके सबमर्सिबल पंप नीचे गहरे ले जा रहे है। धरती की उपजाऊ शक्ति कम होती जा रही है, जिसके कारण रासायनिक खादों के प्रयोग में बढ़ौतरी हो रही है। खादों के प्रयोग में भी डी.ए.पी. (डाइयामोनियम फासफेट) और यूरिया ज्यादा इस्तेमाल किये जा रहे हैं। दूसरी खादों की खप्त कम है। चाहे डी.ए.पी. और यूरिया की खप्त में बढ़ौतरी इस कारण भी हुई है कि इन पर भारत सरकार द्वारा भारी सब्सिडी दी जा रही है। कम्पलैक्स खाद मिक्सचरों जैसे 12:32:0, 20:20:13 आदि की खप्त इस कारण नहीं की जा रही कि यह यूरिया और डी.ए.पी. से महंगी है। इसके साथ पोष्टिक तत्वों के इस्तेमाल में असंतुलता आ गई, जिसने धरती की उपजाऊ शक्ति को प्रभावित किया। म्यूरेट ऑफ पोटाश (एम.ओ.पी.) सिंगल सुपर फास्फेट (एस.एस.पी.) और कम्पलैक्स मिक्सचर आदि खादों का प्रयोग महंगा होने के कारण कम हो गई। इस साल भारत सरकार का खादों की सब्सिडी का बिल 532,446.79 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है। रूस और यूक्रेन की जंग के कारण भी खादों की कीमतें बढ़ गई हैं। सब्सिडी की रकम बढ़ा कर भारत सरकार किसानों को सस्ते खाद विशेष तौर पर यूरिया और डी.ए.पी. देने के लिए मजबूर हुई ताकि उत्पादन न घटे और किसानों में रोष पैदा न हो।
कुछ वर्षों के दौरान प्राकृतिक आपदा, कीड़े-मकौड़ों और बीमारियों के हमलों की बहुतात और फसलों की देखभाल करने में मुश्किलें भी किसानों की गेहूं और धान से हुई आय को प्रभावित करती है। जब तक किसानों द्वारा उत्पादन में की हुई बढ़ौतरी उनकी आय न बढ़ाये, उनके लिए यह बेमायने है। फसल पालन पोषण और देखभाल के खर्च बढ़ रहे हैं। उनकी फसलों का मूल्य उनके द्वारा की जा रही लागत पर 50 प्रतिशत मुनाफा देकर नहीं मिल रहा। प्रोफैसर स्वामीनाथन कमिश्न द्वारा की गई सिफारिशों अनुसार फसलों की कीमतें मुकरर नहीं की जा रही। किसानों पर खर्च का बोझ बढ रहा है और वह नाखुश हैं। इस लिए हर दिन किसानों द्वारा धरने तथा रैलियां की जा रही है। उनकी आय बढ़ाने की जरुरत है। इस लिए एक बहुपक्षीय सोच की जरुरत है। ज्यादा कज़र् उठाकर लागत बढ़ाकर भी कोई विशेष पैदावार नहीं ली जा सकती। वर्तमान स्थित में टैक्नॉलोजी, ज्ञान विज्ञान और अनुसंधान की जानकारी प्रत्येक किसान के पास होनी चाहिए। वह पूरी सूझ-बूझ के साथ नए अनुसंधानों को जानकर ही कृषि करें, तो कुछ मुनाफे की प्राप्ति हो सकती है। गेहूं और धान पैदा करना महंगा होता जा रहा है। कृषि समस्याएं दिन-ब-दिन उलझती जा रही हैं। कृषि योजनाबंद्धी पूरा तकनीकी ज्ञान लेकर सूझ-बूझ के साथ करने की आवश्यकता है। किसानों के पास कृषि योग्य भूमि घटती जा रही है। करीब 65 प्रतिशत किसानों के पास 10 एकड़ से भी कम ज़मीन रह गई है, जिनके पास कुल ज़मीन का 31 प्रतिशत ही है। बड़े जमींदार जो 25 एकड़ से ज्यादा की कृषि करते हैं, उनके पास 25 से 26 प्रतिशत ज़मीन है और उनकी संख्या 6.5 प्रतिशत के करीब है।
उत्पादन बढ़ाने की गुंजाईश बहुत कम है। किसानों की आय बढ़ाने की जरूरत है। जिसमें खर्चों में भी कमी लानी जरूरी है। इस समय किसान कृषि संबंधी खादों और कीटनाशकों के प्रयोग और सफल किस्मों के बीजों का उपयोग, वह दुकानदारों और व्यापारियों, जहां से वह कृषि सामग्री खरीदते हैं, उनकी सलाह के साथ करते हैं। इसके स्थान पर किसानों को कृषि विशेषज्ञों के साथ सम्पर्क करके आधुनिक कृषि तकनीकों का प्रयोग करके कृषि से आय बढ़ाने और लाभदायक मंड़ीकरण करने की जरूरत है।
 ज्ञान और साधना की कमी के कारण कृषि में रूकावट आ रही है। पंजाब में 4.90 लाख के करीब ट्रैक्टर हैं, जिनका प्रयोग समय साल में 200 से 300 घंटे किया जा रहा है। जबकि ट्रैक्टर की लाभदायक खरीद के लिए यह साल में कम से कम 1000 घंटे प्रयोग किया जाना चाहिए। छोटे खेतों और सीमांत किसानों के लिए अपनी कृषि मशीनरी खरीदना जरूरी नहीं। छोटे किसानों के लिए तो छोटे ट्रैक्टर भी सफेद हाथी हैं। सहकारी सोसायटी और किसान संगठन कज़र् देने और खाद के बटवारे के अलावा कृषि मशीनरी और सांझी कृषि पैदावार और सांझा मंडीकरण और सांझी सुविधा किसानों को देने के लिए आगे आएं।