केन्द्रीय मंत्रिमंडल में हो सकता है बड़ा फेरबदल

 

केंद्रीय मंत्रिमंडल में जल्दी ही फेरबदल होने वाला है। खबर है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बजट सत्र से पहले ऐसा कर सकते हैं। इस संभावित फेरबदल को इस साल विभिन्न राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों से जोड़कर देखा जा रहा है। गौरतलब है कि 2023 में नौ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इसके अलावा 2024 में लोकसभा चुनाव भी हैं। अनुमान है कि फेरबदल 14 जनवरी के बाद होगा और इसके लिए हटाए जाने वाले मंत्रियों और उनकी जगह लेने वाले नए चेहरों की सूची तैयार हो चुकी है। गौरतलब है कि 14 जनवरी के बाद खरमास खत्म हो रहा है और धार्मिक मान्यता के मुताबिक खरमास के बाद ही शुभ कार्य किए जाते हैं। 
बताया जा रहा है कि फेरबदल में कई पहलुओं का ध्यान रखा जाएगा। इसके तहत सामाजिक समीकरणों के हिसाब से उपयोगी सांसदों को मंत्रिमंडल में जगह दी जाएगी और हटाए जाने वाले मंत्रियों को पार्टी संगठन के काम में लगाया जाएगा। गौरतलब है कि पिछली बार केंद्रीय मंत्रिमंडल में फेरबदल 8 जून, 2021 को हुआ था। तब 12 मंत्रियों को हटा कर नए चेहरे शामिल किए गए थे। इस बार भी लगभग इतने मंत्री हटाए जाने का अनुमान है। इस बार ज्यादातर नए चेहरे लोकसभा सदस्यों में से लिए जाएंगे। इस बार के फेरबदल में महिलाओं के साथ दलित और आदिवासी वर्ग के सांसदों को ज्यादा तरजीह दिए जाने की संभावना जताई जा रही है। 
खुले में शौच से मुक्ति के दावे की पोल खुली
देश में पिछले आठ साल के दौरान शौचालय क्रांति को लेकर सरकार के स्तर पर खूब महंगा प्रचार हुआ है और इस दौरान भारत को खुले में शौच से मुक्त देश भी घोषित किया जा चुका है, लेकिन हकीकत यह है कि राजधानी दिल्ली में ही अब भी हज़ारों लोग खुले में शौच के लिए जाते हैं। 
यह हकीकत उस समय उजागर हुई जब दिल्ली के उप-राज्यपाल विनय कुमार सक्सेना पिछले सप्ताह शुक्रवार की रात को औचक निरीक्षण पर निकले और उन्होंने कश्मीरी गेट के रैन बसेरे और उसके आसपास के इलाकों का दौरा किया। उन्होंने देखा कि सैकड़ों लोग सड़कों के किनारे या कहीं फ्लाईओवर के नीचे सो रहे थे। लोगों से बातचीत में उन्हें यह भी पता चला कि रैन बसेरे में तो कोई छह सौ लोग रहते हैं लेकिन हज़ारों लोग सड़कों पर सोते हैं और शौच के लिए यमुना के किनारे जाते हैं। उप-राज्यपाल गए तो थे दिल्ली सरकार के रैन बसेरे की योजना की पोल खोलने लेकिन उन्होंने अनजाने में खुले में शौच से देश के मुक्त होने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दावे की पोल भी खोल दी। यह राजधानी दिल्ली की हकीकत है। देश के दूसरे हिस्सों के बारे में अंदाज़ा लगाया जा सकता है लेकिन सरकारी कागज़ों में देश खुले में शौच से मुक्त हो चुका है। इंतज़ार कीजिए इसी तरह धीरे-धीरे देश गरीबी, भुखमरी, बेरोज़गारी आदि से भी मुक्त घोषित कर दिया जाएगा।
बदला जा सकता है पूजा स्थल कानून 
आने वाले समय में केंद्र सरकार ‘प्लेस आफ वरशिप’ कानून अर्थात पूजा स्थलों बारे कानून को बदल सकती है। अभी तत्काल इसकी कोई ज़रूरत नहीं दिख रही है, क्योंकि इस कानून के रहते ही अदालतें धार्मिक स्थलों को लेकर ऐसे आदेश दे रही हैं, जिनसे उनकी प्रकृति बदल सकती है। 
वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद के बाद अब मथुरा की एक अदालत ने श्री कृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह के विवाद में सर्वे करने का आदेश दे दिया है। इससे पहले वाराणसी में जब सर्वे का आदेश दिया गया तो दूसरे पक्ष की ओर से बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद बने ‘प्लेस आफ वर्शिप’ कानून का हवाला दिया गया था, जिसके मुताबिक किसी भी धर्मस्थल की 1947 वाली स्थिति को बदला नहीं जा सकता है। तब अदालत ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा था कि यह कानून किसी धर्मस्थल का सर्वे करने से नहीं रोकता है। 
इसी तर्क के आधार पर मथुरा में भी सर्वे का आदेश दिया गया है। सवाल है कि अगर सर्वे के ज़रिए यह साबित हो गया कि ज्ञानवापी मस्जिद की जगह पर पहले मंदिर था और जिसे फव्वारा बताया जा रहा है, वह शिवलिंग था तो क्या होगा? या सर्वे में यह पता चले कि श्री कृष्ण जन्मभूमि की जगह पर शाही ईदगाह है तो क्या होगा? अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि तब इन दोनों जगहों को हिंदुओं को सौंपने के लिए कैसा आंदोलन होगा। अदालतों की सुनवाई से जब यह मुद्दा पूरी तरह से पक जाएगा, तब ‘प्लेस आफ वर्शिप’ कानून को बदला जा सकता है।
वाजपेयी की समाधि पर राहुल 
अपनी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान दिल्ली पहुंचे राहुल गांधी ने महात्मा गांधी सहित कई पूर्व प्रधानमंत्रियों की समाधियों पर जाकर उन्हें श्रद्धांजलि दी। इस सिलसिले में वह पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की समाधि पर भी गए। इससे पहले कांग्रेस का कोई नेता किसी भाजपा नेता की समाधि पर नहीं गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या उनकी पार्टी का कोई भी नेता जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी या राजीव गांधी की समाधि पर नहीं जाता। इसलिए राहुल गांधी का अटल बिहारी वाजपेयी की समाधि पर जाना एक बड़ी राजनीतिक पहल है। यह सिर्फ  दिखावे की पहल नहीं है, बल्कि बहुत सोच समझ कर उठाया गया कदम है। कांग्रेस से जुड़े सूत्रों का कहना है कि जिस तरह से प्रधानमंत्री मोदी और उनकी पार्टी पिछले कुछ समय से सरदार वल्लभ भाई पटेल, नेताजी सुभाषचंद्र बोस, महामना पंडित मदन मोहन मालवीय जैसे कांग्रेस के दिग्गजों को अपनाया है, उसी का जवाब है यह पहल।
 बताया जा रहा है कि महापुरुषों की समाधियों पर जाने का राहुल का कार्यक्रम 24 दिसम्बर को देर होने की वजह से स्थगित नहीं हुआ था, बल्कि खास कारण से उसे टाला गया था। अगले दिन अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म दिन था। इसलिए यह तय हुआ कि राहुल उनकी जयंती के दिन ही उनकी समाधि पर जाकर श्रद्धांजलि दें। इससे अलग संदेश जाएगा। पहला संदेश तो यह है कि राहुल राजनीतिक छुआछूत में यकीन नहीं रखते हैं। कांग्रेस को इसका फायदा मिल सकता है।