पेड़ों पर इंसान की क्रूरता देखकर कुदरत भी रो पड़ती है

 

आपको शायद यह जानकार आश्चर्य हो कि धरती के 80 प्रतिशत पेड़ काटे जा चुके हैं। अगर पेड़ों के खिलाफ इंसानी क्रूरता का यही आलम बरकरार रहा तो कुछ सालों तक धरती से सारे पेड़ समाप्त हो जाएंगे। हैरानी की बात यह है कि पिछले दो दशकों से भी ज्यादा समय से दुनिया पेड़ों पर किये गये इस विनाश की सजा भी भुगत रही है, फिर भी उसे पेड़ों की महत्ता समझ में नहीं आ रही।
शायद बहुत से लोगों को पता न हो कि भारत के जाने माने वैज्ञानिक जगदीशचंद्र बसु ने 20वीं शताब्दी की शुरुआत में ही एक ऐसा यंत्र विकसित कर लिया था, जो न सिर्फ पेड़ों की वृद्धि को माप सकता है बल्कि इस यंत्र या उपकरण की बदौलत हम पेड़ों की भावनाएं भी एहसास कर सकते हैं। क्रेस्कोग्राफ नाम का यह उपकरण उन्होंने उस जमाने में महज 300 रुपये में बना लिया था। डा. जगदीशचंद्र बसु को रेडियो विज्ञान का पिता माना जाता है। हालांकि उन्हें नोबेल पुरस्कार नहीं मिला, लेकिन साल 1909 में मार्कोनी को जिस रेडियो के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया था, वह दरअसल जगदीशचंद्र बसु का काम था, हालांकि इसको लेकर लंबी बहस है। बहरहाल वनस्पति से उनके लगावों को देखते हुए और उनकी इस चिंता के मद्देनज़र अगर इंसान ने अपने लालच की भूख कम नहीं की तो वह कुदरत को नष्ट कर देगा, से पता चलता है कि उन्हें आज जो पर्यावरण की स्थिति हो गई है, उसका पहले से ही भान हो चुका था।
हमें मालूम होना चाहिए कि धरती पर पेड़ सबसे पुराने जीवित जीव हैं। यह भी जानकर हमें आश्चर्य होना चाहिए कि पेड़ कभी उम्रदराज होने के कारण नहीं मरते। वे कई तरह के रोगों, कीड़ों, मकौड़ों और सबसे ज्यादा इंसान की क्रूरता के चलते नष्ट होते हैं। धरती में पेड़ों के जीवित रहने का सबसे बड़ा कारण यह है कि वह अपनी खुराक का सिर्फ 10 फीसदी मिट्टी से और 90 प्रतिशत हवा से प्राप्त कर लेते हैं। एक पेड़ सालभर में जमीन से दो हजार लीटर पानी लेता है और बदले में वह लाखों लीटर पानी लौटाता है। सिर्फ कुदरत के चक्र को ही संतुलित रखने में पेड़ों की महत्वपूर्ण भूमिका नहीं है बल्कि इंसान की तमाम लग्जरी का भी वो स्रोत हैं। एक पेड़, एक एसी के दस कमरों में 20 घंटे चलने के बराबर ठंडक उत्पन्न करता है। पेड़ों से घिरा कोई क्षेत्र, गैर पेड़ वालों क्षेत्रों के मुकाबले 9 प्रतिशत ज्यादा ठंडा रहता है और साधारण से साधारण पेड़ भी हर दिन इतना ऑक्सीजन देता है कि कम से कम चार लोग आराम से जीवित रह सकें। जबकि कोई आम पेड़ सालभर में करीब 22 किलो काबर्नडाइऑक्साइड को सोख लेता है या खा लेता है।
दुनिया में 60,000 से ज्यादा पेड़ों की प्रजातियां पायी जाती हैं। जिनमें सबसे अधिक 8715 प्रजातियां ब्राजील में, 5776 प्रजातियां कोलंबिया में, 5142 प्रजातियां इंडोनेशिया में पायी जाती हैं। भारत में पेड़ों की 3000 प्रजातियां पायी जाती हैं जोकि धरती में पेड़ों की जनसंख्या का 12 प्रतिशत हैं। भारत में 15000 फूलों की प्रजातियां भी पायी जाती हैं। पेड़ पौधे इंसान के सबसे बड़े शुभचिंतक हैं। अगर पेड़ पौधे न हों और वे कार्बनडाईऑक्साइड का भक्षण न करें तो धरती में इंसान जीवित नहीं रह सकता। एक आम पेड़ अपने पूरे जीवनकाल में 1000 किलो कार्बनडाईऑक्साइड का अवशोषण करता है। कुछ लोगों को लगता है कि वह पुराने पेड़ों को काटकर उनकी जगह नये पेड़ लगा देंगे तो नुकसान की भरपायी हो जायेगी, मगर यह सही नहीं है। क्योंकि एक पूरी तरह से विकसित परिपक्व पेड़ नये पेड़ की तुलना में 7000 प्रतिशत पर्यावरण को ज्यादा स्वच्छ रखता है। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि धरती के जीवित रहने के लिए पुराने पेड़ों की कितनी ज्यादा जरूरत है। एक अनुमान के मुताबिक दुनिया में अभी भी पेड़ों की संख्या 3.04 खरब है, जो कि आकाशगंगा में मौजूद तारों और इंसान के दिमाग में मौजूद कोशिकाओं से भी कहीं ज्यादा हैं।
इंसान ने पेड़ों को लेकर किस तरह अपनी क्रूरता दिखायी है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि धरती में जब से इंसान की मौजूदगी है, उसके बाद से वह लगातार पेड़ों को काट रहा है। अब तक 3 लाख करोड़ से भी ज्यादा पेड़ों को काटा जा चुका है। इंसान धरती से पेड़ों को किस बेहर्मी से काट रहा है, इसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि धरती में हर दो सेकंड के भीतर एक फुटबॉल मैदान के बराबर जंगल को काटा जाता है। यही वजह है कि महज 2000 सालों में इंसानों ने धरती के 80 प्रतिशत जंगल काट डाले हैं। दुनिया में जितने पेड़ बचे हैं, उनमें से 50 प्रतिशत  पेड़ महज 5 देशों में हैं और बाकी में दो तिहाई पेड़ सिर्फ 10 देशों में हैं। कहने का मतलब दुनिया के 15 देशों में ही करीब 80 प्रतिशत पेड़ हैं। शेष दुनिया में केवल 1990 अरब पेड़ हैं। दुनिया के जिस देश में सबसे ज्यादा पेड़ हैं , वह रूस है। रूस में 641 अरब पेड़ मौजूद हैं। दूसरे नंबर पर कनाडा है जहां 318 अरब, ब्राजील में 301 अरब, अमरीका में 228 अरब और भारत में सिर्फ 35 अरब पेड़ बचे हैं।
अगर दुनियाभर के पेड़ों को दुनियाभर की मौजूदा आबादी के बीच बांट दिया जाए तो अब आमतौर पर एक व्यक्ति के हिस्से महज 400 पेड़ ही आते हैं। लेकिन भारत की स्थिति इस पूरे परिदृश्य में बहुत ज्यादा खराब है, क्योंकि हमारे यहां एक व्यक्ति के पीछे महज 26-27 पेड़ ही बचे हैं। इसलिए जितना भी जल्दी इंसान को यह बात समझ में आये उतना जरूरी है कि वह पेड़ों के विरूद्ध जारी अपनी यह क्रूरता जल्द से जल्द बंद करे।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर