भाजपा विरोधी मोर्चा अभी दूर की बात है

 


देश में विपक्षी दलों में एकता की बात मृग मरीचिका साबित हो रही है। तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर ने भाजपा के खिलाफ  तीसरे मोर्चे की हुंकार भरी है। आगामी लोकसभा चुनाव से पहले तीसरा मोर्चा बनाने के लिए तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने खम्मम जिले में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव, केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान और भाकपा महासचिव डी. राजा के साथ एक बड़ी रैली की। इस रैली में बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार सहित आरजेडी के तेजस्वी, एनसीपी के शरद पवार, शिवसेना के ठाकरे, बंगाल की मुख्यमंत्री ममता ने भाग नहीं लिया। 
इससे स्पष्ट है की मोदी विरोधी मोर्चा अभी दूर की बात है। लोकसभा चुनाव अभी दूर हैं मगर विपक्षी नेताओं के ख्याली पुलाव पकने शुरू हो गए हैं। भाजपा के खिलाफ  विपक्षी एकता की खिचड़ी फिर पकने लगी है। विपक्ष की एकता के नगाड़े बजने शुरू हो गए हैं। केसीआर की नज़र 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर मजबूत तीसरा मोर्चा बनाने पर टिकी है। जिन पार्टियों को उन्होंने खम्मम में आमंत्रित किया, वे सभी इस मोर्चे में शामिल हो सकती हैं। विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने की उनकी इस मुहिम को भाजपा के खिलाफ  रणनीति में अहम माना जा रहा है। मगर यह मुहिम अभी खंड-खंड स्थिति में है। आरजेडी जहां नितीश को पीएम मैटेरियल बता रही है वहीं, प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार की रेस से नितीश खुद को अलग दिखाने की कोशिश कर रहे हैं। राजनीतिक समीक्षकों का कहना है कि बंगाल में ममता और कांग्रेस, केरल में सीपीएम और कांग्रेस, आंध्र में वाईएसआर और कांग्रेस, तेलंगाना में केसीआर और कांग्रेस, तमिलनाडु में द्रमुक और अन्ना द्रमुक, पंजाब और दिल्ली में  केजरीवाल की पार्टी और कांग्रेस में गठजोड़ की सम्भावना नहीं के बराबर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मुकाबला करने के लिए विभाजित विपक्ष के सभी नेता चक्रव्यूह रचने में लगे हुए हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ‘भारत जोड़ो यात्रा’ कर अपनी सियासी ज़मीन टटोलनी शुरू कर दी है। कांग्रेस को उम्मीद है कि राहुल गांधी की यात्रा उन्हें जनता और कांग्रेस कार्यकर्ताओं से सीधे जोड़ेगी। 
वर्ष 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों के मद्देनज़र देश में एक बार फिर विपक्ष की एकता के लिए जोरदार प्रयास किये जा रहे है। विपक्ष की एकता के प्रयास परवान चढ़ेंगे या बीच मंझधार में रह जायेंगे कोई बताने वाला नहीं है। इस बार विपक्ष की यह एकता कथित साम्प्रदायिकता के खिलाफ  है या भाजपा को सत्ता से हटाने का प्रयास, यह देखने वाली बात है। विपक्ष की यह एकता सिद्धांतों पर आधारित है या अवसरवादी और सुविधा की राजनीति,  इस पर भी गौर करने की बात है।
 वर्तमान में विपक्ष कांग्रेस नीत संप्रग के साथ गैर-कांग्रेस और गैर भाजपा की सियासत करने वाले दलों में विभाजित है।  विपक्ष पहले से ही कई धड़ों में विभाजित है।  गैर-भाजपा और गैर-कांग्रेस का नारा बुलंद करने वाले तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लाख प्रयासों के बाद भी अब तक कोई सशक्त मोर्चा बन नहीं पाया है। ममता बनर्जी और चंद्रशेखर राव 2024 में नरेंद्र मोदी सरकार को सत्ता से बेदखल करने के लिए विपक्षी एकता की कवायद में जुटे हुए हैं। इस मोर्चे के नहीं बन पाने के मुख्य कारणों में शरद पवार, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन और शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे हैं। इन तीनों नेताओं के कांग्रेस के साथ साझेदारी के सम्बन्ध प्रस्तावित मोर्चे के गठन में बाधा डाले हुए हैं। ममता बनर्जी ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए एंटी भाजपा और एंटी कांग्रेस अलायंस बनाने का आह्वान किया है। सपा सुप्रीमों अखिलेश यादव के सम्बन्ध भी कांग्रेस से अच्छे नहीं हैं। राजद के तेजस्वी यादव भाजपा के खिलाफ  बनने वाले किसी भी मोर्चे का आंख मूंद कर साथ देने को तैयार हैं। 
उड़ीसा के मुख्यमंत्री पटनायक और आंध्र के मुख्यमंत्री फिलहाल किसी मोर्चे के साथ नहीं हैं। हालांकि इन दोनों की भाजपा के साथ नरमी किसी से छिपी नहीं है। दिल्ली के बाद पंजाब में सरकार बनाने वाली आम आदमी पार्टी भाजपा के सख्त खिलाफ  है मगर कांग्रेस का साथ देने को तैयार नहीं है। वाम मोर्चे की हालत सांप-छुछुंदर जैसी है। अन्य क्षेत्रीय दल भी आपस में बंटे हुए हैं। विपक्ष की ऐसी स्थिति भाजपा के लिए सुखद कही जा सकती है। विपक्षी एकता के प्रयास का असली मकसद 2024 में भाजपा को हराना  है। बहरहाल विपक्ष की एकता के नगाड़े कुछ नेताओं ने बजाने शुरू कर दिए हैं।