असाधारण गुणों वाला करंज का पेड़

 

हममें से ज्यादातर लोगों ने करंज का पेड़ देखा होता है, क्योंकि यह पूरे भारतवर्ष में पाया जाता है और समुद्र की सतह से 1200 मीटर ऊंचाई तक भी मिलता है। लेकिन ज्यादातर लोग नहीं जानते कि यही करंज का पेड़ है। दरअसल करंज नाम से तीन वनस्पति जातियों का पता चलता है, जिनमें से दो वृक्ष जातियां हैं और तीसरी लता सदृश फैली हुई गुल्म जाति। हम यहां करंज के मूल वृक्ष जाति की बात कर रहे हैं। इस बेहद घने और छायादार वृक्ष को आपने कभी न कभी किसी सड़क किनारे या नदियों-नारों के किनारे जरूर देखा होगा। करंज असाधारण गुणों वाला पेड़ है। इसमें इतने औषधीय गुण पाये जाते हैं कि जो इसके बारे में अच्छी तरह से जानता है, वह इसे औषधियों का वृक्ष कहता है। आमतौर पर करंज का पेड़ 10 से 15 मीटर तक ऊंचा और बेहद घना होता है। इसकी पत्तियां चौड़ी और चमकदार होती हैं। गर्मी के मौसम में इसमें सफेद और हल्के बैंगनी रंग के फूल खिलते हैं। यह नदियों और सड़कों के अलावा सघन वनों में भी खूब पाया जाता है। 
करंज का वृक्ष बहुत तेजी से बढ़ता है और पूरे साल घनी छाया देता है। इसी वजह से आदिवासी इलाकों में इसे आंगन या बस्तियों के बीच में भी लगाते हैं। करंज का पेड़ बहुत से पक्षियों को आश्रय देता है। इसके बीजों से बायोफ्यूल भी बनता है। संस्कृत साहित्य में इसका बहुत बार जिक्र आता है, वहां इसे नक्तमाल, करंजिका या वृक्षकरंज के नाम से संबोधित करते हैं। लोकभाषाओं में इसे डहरकरंज, कणझी आदि नामों से ही जानते हैं। जबकि इसका वैज्ञानिक नाम पोंगैमिया ग्लैब्रा है और यह लेग्यूमिनोसी परिवार से रिश्ता रखता है। हिंदी में इसे किरमाल, पापर, डिठोरी और करंज कहते हैं। अंग्रेजी में इसे इंडियन बीच और पोंगम ऑयल ट्री के नाम से जानते हैं। उड़िया में इसे कोनिआ और कोरोन्जो, गुजराती में कणझी, तेलगु में कागु, पंजाबी में पफरी या सुखचेन, मराठी में घनेरा करंज, मलयालम में पोन्नम, तमिल में पुंगम और कन्नड में होंगे कहते हैं।
सघन छायादार होने के कारण इसे तबसे सड़कों के किनारे लगाया जा रहा है, जबसे आधुनिक तरह की सड़कें बननी शुरु हुई हैं। इसका फूल देखने में मोती के जैसा, गुलाबी और आसमानी छाया लिए हुए श्वेत वर्ण का होता है। इसकी फली कठोर और मोटे छिलके की एक बीज वाली होती है। आकार में यह चिपटी और टेढ़ी नोक वाली होती है। करंज के बीजों से निकलने वाले तेल का प्राचीनकाल से ही अनेक तरह से इस्तेमाल होता है। दीवाली के दिन खास तौर पर करंज के तेल का दीया जलाते हैं। इसकी टहनी से दांतुन भी किया जाता है, क्योंकि यह दांतों के लिए बहुत उत्तम होता है। नियमित रूप से करंज की दांतुन से दांत साफ करने से, ये मजबूत और स्वस्थ रहते हैं। करंज का पत्ता त्वचा को निरोग रखने में सहायक होता है। करंज के पत्तों को पानी में उबालकर स्नान करने से खुजली खत्म हो जाती है। इसलिए करंज का साबुन भी बनता है। करंज के फूलों से मिलने वाला शहद सबसे अच्छा शहद माना जाता है और करंज के फूल खेतों के लिए उर्वरक का काम करते हैं। करंज के तेल का उपयोग मच्छर भगाने में भी होता है। इसकी लकड़ी का जलावन की तरह भी इस्तेमाल होता है। 
करंज बहुत उपयोगी पेड़ है। यह आंखों की कई तरह की बीमारियों में फायदेमंद होता है। इसके बीज से बने पेस्ट को काजल की तरह लगाने से आंख की कई पुरानी बीमारियां ठीक हो जाती हैं। करंज से खांसी का इलाज भी होता है। जिस कुक्कर खांसी को सबसे जिद्दी खांसी माना जाता है, उसका भी इलाज करंज के बीज के चूर्ण से बहुत आसानी से होता है। करंज के बीज का चूर्ण शहद के साथ मिलाकर चाटने से कुक्कर खांसी खत्म हो जाती है। करंज के सेवन से भूख में बढ़ोत्तरी होती है। नियमित रूप से इसकी दांतुन करने से भी भूख बढ़ती है। करंज के इस्तेमाल से पेट के तमाम रोग खत्म हो जाते हैं। बवासीर में भी इससे फायदा मिलता है। आयुर्वेद के मुताबिक करंज के फल, फूल, लकड़ी, पत्ते तथा किसी भी चीज से सैकड़ों स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों को दूर किया जा सकता है। करंज चूंकि बहुत घना और छायादार वृक्ष होता है, इसलिए सैकड़ों पक्षियों को आश्रय देता है। पर्यावरण को बेहतर बनाने में भी इसकी बड़ी भूमिका है। क्योंकि करंज के पेड़ में बहुत ज्यादा पत्तियां होती हैं, इसलिए यह उन कुछ गिने चुने पेड़ों में से है, जो काफी ज्यादा ऑक्सीजन बनाते हैं।
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