राहुल गांधी की यात्रा के संदर्भ में राजस्थान कांग्रेस की स्थिति 

 

भारत जोड़ो यात्रा’ 16 दिन बाद राजस्थान के अलवर से हरियाणा में प्रवेश कर गई थी। राहुल गांधी ने ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के स्वागत के लिए सीएम गहलोत को धन्यवाद दिया। वहीं हरियाणा में प्रवेश करने से पहले राहुल ने सीएम अशोक गहलोत और सचिन पायलट को गले लगाकर विदाई ली। मीडिया रिपोर्टस के अनुसार इस दौरान पीसीसी चीफ  गोविंद सिंह डोटासरा, पूर्व केंद्रीय मंत्री भंवर जितेंद्र भी मौजूद रहे। राहुल इनसे भी गले मिले और गोविंद सिंह डोटासरा का आभार जताया। राजस्थान में यात्रा का पड़ाव पूरा होने पर फ्लैग हैंडओवर सेरेमनी आयोजित की गई। इस दौरान राहुल सीएम अशोक गहलोत और पायलट को गले लगाया। उसके बाद ‘भारत जोड़ो यात्रा’ नूह के मुंडका बॉर्डर में प्रवेश कर गई थी। हरियाणा बॉर्डर पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने राहुल का स्वागत किया था।
बता दें कि राहुल की यात्रा ने 4 दिसम्बर को झालावाड़ जिले से राजस्थान में प्रवेश किया था। राजस्थान में पैदल यात्रियों ने 521 किलोमीटर का सफर तय किया। अंतिम दिन यानी 20 दिसम्बर को राहुल ने अलवर के मालाखेड़ा में सभा को संबोधित किया था। इस दौरान राहुल गांधी ने राजस्थान के मंत्रियों को टास्क सौंपा है। राहुल ने मंत्रियों को हर महीने 15 किलोमीटर पैदल चलने का सुझाव दिया था। राहुल के इस सुझाव को मंत्रियों के जनता से संवाद नहीं करने से जोड़कर देखा जा रहा था।
वहीं ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के राजस्थान में प्रवेश करने से पहले प्रदेश में सियासी घमासान मचा हुआ था। गहलोत और पायलट गुट एक दूसरे पर जमकर जुबानी हमला बोल रहे थे। ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के राजस्थान में प्रवेश से पहले केसी वेणुगोपाल ने गहलोत और पायलट के साथ मीटिंग ली थी जिसके बाद दोनों की खींचतान पर विराम लगा। पिछले 15 दिन से राजस्थान कांग्रेस में मचा सियासी तूफान शांत था हालांकि, राजस्थान का दौसा जिला पायलट परिवार के लिए गढ़ माना जाता है। दरअसल, दौसा लोकसभा से न सिर्फ  सचिन पायलट बल्कि उनके पिता और पूर्व केंद्रीय मंत्री राजेश पायलट व सचिन पायलट की मां रमा पायलट भी सांसद रह चुकी हैं। इसकी वजह से क्षेत्र में पायलट परिवार का दबदबा है। राजेश पायलट साल 1984 में दौसा से पहली बार कांग्रेस के टिकट पर लड़कर लोकसभा सांसद बने थे। हालांकि, 1989 में भाजपा के नत्थू सिंह ने बाजी मार ली लेकिन फिर उसके बाद 1991 से लेकर 1999 तक राजेश पायलट लगातार दौसा सीट से जीतते रहे। साल 1991, 1996, 1998 और 1999 में राजेश पायलट ने दौसा में जीत हासिल की। उनके निधन के बाद राजेश पायलट की पत्नी रमा पायलट ने उपचुनाव में जीत हासिल की। 2004 के लोकसभा चुनाव में सचिन पायलट को दौसा लोकसभा सीट से जीत मिली। 
यह क्षेत्र सचिन पायलट के लिए काफी खास रहा है। इसी वजह से जब राहुल गांधी दौसा से गुजरे तो वहां सचिन पायलट के पक्ष में जमकर नारेबाजी भी देखने को मिली। राहुल की यात्रा में सचिन पायलट के समर्थन में जमकर नारेबाजी देखने को मिली। राहुल की यात्रा में ‘हमारा नेता कैसा हो, सचिन पायलट जैसा हो’, जैसे नारे सुनने को मिले। इससे पहले गहलोत और पायलट समर्थकों में पोस्टर विवाद देखने को मिला था। झालावाड़ में पोस्टर पर राहुल के साथ सिर्फ  सचिन पायलट नजर आ रहे थे। कहीं गहलोत की तस्वीर लगाई भी गई तो छोटी सी तस्वीर का इस्तेमाल किया गया था। पायलट समर्थकों ने गहलोत समर्थकों पर सचिन पायलट का पोस्टर फाड़ने और जलाने का भी आरोप लगाया था। सोशल मीडिया पर सामने आए कुछ वीडियोज और तस्वीरों में लोग राहुल गांधी और सचिन पायलट की एक झलक पाने के लिए बेताब नज़र आ रहे थे। सड़क किनारे और आसपास के घरों में बड़ी संख्या में लोगों की मौजूदगी थी।
कहा जा रहा है कि अब राहुल गांधी ने अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच विवाद कम करने को लेकर अलवर के सर्किट हाउस में बैठक की थी। बंद कमरे में करीब डेढ घंटे तक चली बैठक में पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव केसी वेणुगोपाल और कुछ चुनींदा मंत्री मौजूद रहे थे। सूत्रों की माने तो कहा जा रहा है कि राहुल गांधी ने गहलोत और पायलट को शांत रहने की सख्त हिदायत दी है। कहा जा रहा है कि राहुल ने कहा कि जो पार्टी के लिए मेहनत करेगा, उसे मेहनत का फल जरूर मिलेगा। कौन क्या कर रहा है, यह सबको पता है। हर काम और भावी रणनीति की रिपोर्ट कांग्रेस आलाकमान के पास पहुंच जाती है। ऐसे में किसी को भी बार-बार बताने की जरूरत नहीं है। जो पार्टी के लिए काम करेगा, पार्टी उसे आगे और अच्छा काम करने का मौका देगी। 
राजस्थान में अपनी पद यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने पार्टी को एकजुट करने का बड़ा काम कर दिया है। उसके बाद अब राजस्थान के नेताओं को भी एकजुट होकर जनता के बीच जाना चाहिए और लोगों को पार्टी में ऑल इज वेल का संदेश देना चाहिए। तभी अगले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस भाजपा का मुकाबला कर पाएगी। वरना कुछ दिनों पूर्व प्रदेश में कांग्रेस के नेताओं की जो स्थिति थी। उस स्थिति में तो कांग्रेस का फिर से जीत पाना मुश्किल लग रहा है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत प्रदेश के सबसे बड़े नेता और सरकार के मुखिया हैं। उनकी जिम्मेवारी बनती है कि वह सचिन पायलट या अन्य किसी नेता के खिलाफ  गैर जरूरी बयानबाजी नहीं करें और सबको साथ लेकर चले।
आपको याद दिला दे साल 2020 के मध्य में जब सचिन पायलट अपने समर्थक विधायकों के साथ राजस्थान से बाहर चले गए तो हंगामा मच गया था । अशोक गहलोत ने पायलट पर सरकार गिराने की कोशिश करने का आरोप लगाया। उसके बाद से अब तक कई बार पायलट पर गहलोत हमला बोल चुके हालांकि माना जाता है कि सचिन पायलट को राजस्थान की कमान देने का मूड कांग्रेस आलाकमान ने बना लिया है। ‘भारत जोड़ो यात्रा’ की शुरुआत के बाद से ही कई बार सचिन पायलट राहुल गांधी के साथ पदयात्रा करते हुए दिखाई दे चुके हैं। सूत्रों के अनुसार, कांग्रेस आलाकमान ने ‘‘भारत जोड़ो यात्रा’’ के राजस्थान से पूरा होने के बाद इस संकट को हल करने का मन बना लिया है। अगले विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी प्रदेश को नया चेहरा देना चाहती है ताकि उसे एंटी इनकमबेंसी को कम करने में मदद मिल सके। 
राजस्थान कांग्रेस के लिए राहुल गांधी की यात्रा के बहुत से यही  सियासी मायने हैं। मुख्यमंत्री  अशोक गहलोत और सचिन पायलट खेमों के बीच इस यात्रा की वजह से सियासी सीजफायर करवाया गया था। राहुल की यात्रा के गुजरने के बाद अब दोनों खेमों के बीच शांति बरकरार रहती है या नए सिरे से खींच-तान बढ़ती है, इस पर सबकी निगाहें टिक गई हैं। कहीं यह वह कहानी न बन जाए कि झगड़ालू परिवार में किसी मेहमान के आ जाने पर बड़ा सामंजस्य बन जाता है और मेहमान की विदाई के साथ फिर वही...। (युवराज)