क्या विपक्षी दलों में एकता हो पाएगी ?

भाजपा की केंद्र सरकार के खिलाफ  विपक्षी दलों के नेता एकजुट होने के लिए लगातार प्रयास करते रहते हैं। शरद पवार, लालू यादव, उद्धव ठाकरे, अखिलेश यादव, एम.के. स्टालिन, जयंत चौधरी, ममता बनर्जी, एच.डी. देवेगौड़ा सहित वामपंथी दलों के नेता इसके लिए लगातार मीटिंग का आयोजन कर आपस में सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं। ये सभी नेता चाहते हैं कि भाजपा को छोड़कर अन्य सभी राजनीतिक दल एक साथ एक साझे मंच पर आकर लोकसभा चुनाव लड़ें  ताकि भाजपा को हराया जा सके। मगर इनके प्रयासों के सफल होने से पहले ही विरोधी दलों के कुछ नेता एकला चलो की नीति अपनाकर विपक्ष की एकता में फूट डालने का काम कर रहे हैं।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपनी आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता दिला कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विकल्प बनने का सपना देख रहे हैं। केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने दिल्ली व पंजाब में कांग्रेस को हराकर अपनी सरकार बनाई है। गुजरात विधानसभा चुनाव में भी ‘आप’ ने 14 प्रतिशत वोट प्राप्त किए थे। गुजरात में कांग्रेस के वोट कटने से कांग्रेस मात्र 17 सीटों पर ही सिमट गयी थी। अरविंद केजरीवाल ने घोषणा की है कि वह देश के कई प्रांतों के साथ ही आगामी लोकसभा चुनाव भी लड़ेंगे। तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव अपनी पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने के लिए भारतीय राष्ट्रीय समिति के नाम से नया नामकरण कर अगले लोकसभा चुनाव में कई राज्यों से चुनाव लड़ने के मंसूबे पाल रहे हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पिछले कुछ समय से विपक्षी दलों से दूरी बनाती नज़र आ रही हैं। चर्चा है कि उनका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अंदर खाने कथित तौर पर तालमेल हो गया है, जिस कारण वह विपक्ष से अलग हटकर अपना अलग ही राग अलापने लगी हैं। 
बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने कुछ दिनों पूर्व अकेले ही चुनाव लड़ने की घोषणा कर विपक्षी दलों को झटका दिया है। मायावती ने कहा कि वह किसी भी राजनीतिक दल से चुनावी गठबंधन नहीं करेंगी। कांग्रेस ने असम में अपने गठबंधन सहयोगी सांसद बदरुद्दीन अजमल की आल इंडिया यूनाईटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट पार्टी से गठबंधन को समाप्त कर दिया है। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि बदरुद्दीन अजमल असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिश्व शर्मा के इशारों पर कांग्रेस को कमज़ोर करने का काम कर रहे हैं। यह सब कुछ ऐसी ताज़ा घटनाएं है जो देश की राजनीति की दिशा व दशा तय करेगी। विपक्ष की राजनीति कर रहे कुछ दलों को कांग्रेस से आपत्ति है। वह कांग्रेस व भाजपा से समान दूरी बना कर रखना चाहते हैं। हालांकि केरल, त्रिपुरा में वामपंथी दल और कांग्रेस आमने-सामने चुनाव लड़ते हैं। मगर पश्चिम बंगाल व देश के अन्य प्रदेशों में गठबंधन कर लेते हैं। समाजवादी पार्टी ने भी पिछले विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस से गठबंधन करने से इन्कार कर दिया था। इस कारण कांग्रेस को अकेले चुनाव लड़ना पड़ा था। 
तमिलनाडु में पिछले लोकसभा व विधानसभा चुनाव में द्रमुक ने कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था, जिसमें दोनों दलों को ज़बरदस्त सफलता मिली थी। द्रमुक को विधानसभा में अकेले ही बहुमत मिलने के कारण उसने राज्य सरकार में कांग्रेस को अभी तक शामिल नहीं किया है। बिहार में राष्ट्रीय जनता दल व जनता दल यूनाइटेड की सरकार में कांग्रेस भी शामिल है। मगर कांग्रेस को सत्ता में नाममात्र की हिस्सेदारी मिली है जिससे बिहार के कांग्रेसी नेता संतुष्ट नहीं हैं।
 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार को सत्ता से हटाने के लिए विपक्षी दलों के नेता बड़े-बड़े दावे करते रहते हैं। मगर प्रधानमंत्री मोदी की राजनीति के सामने सभी विपक्षी दल पस्त नज़र आ रहे हैं। मोदी के एक छत्र नेता बनने के पीछे उनकी विपक्षी दलों में फूट डालकर राज करने की सबसे कारगर नीति है जो पूरी तरह सफल हो रही है। विपक्षी दलों द्वारा केंद्र सरकार के खिलाफ  जब भी कोई बड़ी मुहिम चलाई जाती है तो उसमें फूट पड़ ही जाती है और वह मुहिम विफल हो जाती है। शरद पवार ने कई बार विपक्षी दलों के नेताओं को एक मंच पर लाने का प्रयास किया जो सफल होता भी नज़र आया। मगर अंत में उसका भी वही हश्र हुआ और विपक्षी दल एक मंच पर नहीं आ पाए। 
कई विपक्षी दलों के नेताओं का मानना है कि विपक्ष की एकता में सबसे बड़ी बाधा कांग्रेस है। मगर वह इस बात को भूल जाते हैं कि कांग्रेस पार्टी आज भी देश में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी है। संसद में उसके सबसे अधिक सांसद हैं। ऐसे में कांग्रेस के बिना विपक्ष की राजनीति कैसे सफल सकती है। कांग्रेस पार्टी का आज भी पूरे देश में कम या ज्यादा जनाधार है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी पार्टी के जनाधार को मज़बूत करने के लिए ‘भारत जोड़ो यात्रा’ कर चुके हैं। जिसमें वह भाजपा विरोधी सभी दलों के नेताओं को आमंत्रित करते रहे। मगर उनके यात्रा में भी कई विपक्षी दलों के नेताओं ने शामिल होने से इन्कार कर विपक्ष की एकता को पलीता लगा दिया। विपक्षी दलों की आपसी फूट का फायदा उठाकर भाजपा 2024 में तीसरी बार केंद्र में सरकार बनाने की योजना बना रही है। यदि विपक्षी दलों की सिर फुट्टवल इसी तरह चलती रही तो भाजपा को लगातार तीसरी बार केंद्र में सरकार बनाने से कोई नहीं रोक सकता है।
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