विद्यार्थी डरें नहीं परीक्षा से 

 

इन दिनों छात्र-छात्राएं परीक्षा की तैयारी में लगे हैं। सी.बी.एस.ई. और आई.सी.एस.ई. के साथ-साथ प्रादेशिक शिक्षा बोर्डों की परीक्षा संबंधी समय-सारिणी जारी हो चुकी है। इस घोषणा के साथ पढ़ने वाले बच्चों के बीच एक सनसनी, डर और घबराहट का माहौल बन जाता है। परीक्षा का तनाव एक ऐसी सच्चाई है, जिससे प्रत्येक छात्र-छात्रा का वास्ता पड़ता है। थोड़ा-सा मानसिक तनाव परीक्षा को लेकर सूचेत व जागरूक करने में सहायक होता है। मगर अधिक तनाव कुछ बच्चों पर बहुत ही नकारात्मक असर डालता है। इनके लिए परीक्षा हौवा बन जाती है। इस ‘एग्जामिनोफोबिया’ की चपेट में ऐसे छात्र-छात्राएं भी मिलते हैं, जो पूरे साल मेहनत से पढ़ाई करते हैं। 
विशेषकर ऐसे बच्चे जिनके अभिभावक अपने बेटे-बेटियों से परीक्षा में बहुत अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद बांध रखे होते हैं। जैसे सौरभ मैट्रिक की परीक्षा देने वाला है, उसने साल भर ठीक-ठाक पढ़ाई की थी। वह अच्छे नंबरों से पास हो सकता था। मगर उसके पापा ने परीक्षा की तारीख घोषित होते ही कहना शुरू कर दिया कि बेटा, रात-दिन एक कर दो। हेमंत को पीछे करना है। हेमंत सौरभ का चचेरा भाई है और गत वर्ष उसने 92 प्रतिशत अंक प्राप्त किए थे। सौरभ के पिता को इससे अधिक चाहिए। सौरभ और उसके जैसे बहुत से छात्र-छात्राएं अभिभावकों की बड़ी-बड़ी आपेक्षाओं के कारण परीक्षा के तनाव का सामना करने लगते हैं। प्रत्येक वर्ष नवम्बर के पहले हफ्ते से आम परिवारों में परीक्षा को लेकर चेतावनी का दौर शुरू हो जाता है। टीवी, मोबाईल, खेलकूद और दोस्तों के साथ हाहा-ठीठी सब तरफ से ध्यान हटाकर सिर्फ पढ़ाई पर पिल पढ़ने का राग शुरू होने लगता है। बार-बार यह बताया जाता है कि यह बोर्ड के इम्तिहान हैं। अच्छे-अच्छे पढ़ाकुओं को उनकी औकात दिखा देते हैं। यहीं से बेस बनता है। तुम्हारे पिछले रिकार्ड इतने रद्दी हैं कि अब भी जमकर मेहनत न की तो गए काम से.. कुछ अभिभावक अपने बालक को समझाते हैं। होश में आ जाओ, आज कैरियर की दौड़ में वही टिक सकता है, जिसकी अच्छी मैरिट हो और बच्चों के मुकाबले में तुम्हारे नम्बर कितने कम होते हैं, सोचो तो सही...! 
परीक्षा मूलतरू शिक्षा की यात्रा का एक स्वाभाविक पड़ाव है, अचानक सामने आने वाली बला नहीं! इससे आपको यह पता चलता है कि आप अगले पड़ाव के लिए कितना तैयार है। मगर अपेक्षाओं का दबाव, नकारात्मक टिप्पणियां, परीक्षा की भयावह तस्वीर सामने लातीं जबरदस्त हिदायतें, इसे जीवन-मरण का प्रश्न बना देती हैं। बच्चे परीक्षा के परिणामों को पूर्णरूप से अपने भविष्य के साथ जोड़ लेते हैं। परीक्षा का रिजल्ट ही उनका सबकुछ हो जाता है। यानी जो परीक्षा खुशी और उत्सवधर्मिता के माहौल में सम्पन्न होनी चाहिए थी, वह तनाव और घुटन से घिर जाती है। 
परीक्षा से पहले का तनाव छात्र को हताशा से भर देता है। इस स्थिति में कुछ छात्र-छात्राएं सिरदर्द और अनिद्रा की समस्या से रूबरू होते हैं। उनको अपने दिल की धड़कनें सुनाई पढ़ती हैं। कभी परीक्षार्थी का मन अत्यधिक सकारात्मक हो जाता है और पढ़ाई करते समय महसूस होता है कि उसकी तैयारी ठीक है। उसे सब याद हो रहा है। इससे वह आनंदित हो जाता है। किन्तु अगले ही पल उसे नकारात्मक सोच घेर लेती है। प्रतीत होता है कि उसका सब पढ़ा-लिखा भूल चुका है। 
यह वह स्थिति होती है, जहां जोर-जबरदस्ती छात्र-छात्रा को आत्मघाती कदम उठाने की दिशा में प्रेरित कर सकती है। नैशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो की अगस्त-21 में जारी रिपोर्ट के अनुसार, सन् 2014 से 2020 के बीच 12,882 बच्चे तनाव और फेल होने के भय से आत्महत्या जैसा अतिरेकपूर्ण कदम उठा चुके हैं। जरा-सी काउंसलिंग और मां-बाप की सतर्कता से यह बच्चे बचाए जा सकते थे। यह नहीं भूलना चाहिए कि हर बच्चा यूनीक है, अद्भुत और अतुल्य है। किसी एक से किसी की तुलना नहीं की जानी चाहिए। अभिभावक को यह भी सोचना चाहिए कि प्रत्येक बच्चे की विभिन्न विषयों में दिलचस्पी अलग होती है। उसकी प्रतिभाएं रुचि, लगन, समझ, बुद्धि और अभिरुचि में विभिन्नता को समझकर अपेक्षाएं की जानी चाहिए। घर का माहौल भी बच्चों की पढ़ाई-लिखाई पर असर डालता है। बच्चे के सामने परीक्षा को डरावनी शक्ल में प्रस्तुत करना गलत है, जबकि अधिकतर भारतीय परिवारों के लिए यह सामान्य-सी बात है।
 ‘परीक्षा पे चर्चा’ माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अभिनव पहल है, सन् 2018 से वह अनवरत बच्चों और अभिभावकों को परीक्षा के तनाव से मुक्त रखने के लिए सीधा संवाद करते हैं। इस वर्ष 27 जनवरी की चर्चा में पीएम का यह विचार बहुत ही अर्थपूर्ण है कि विद्यार्थी को जितना संभव हो दूसरों से प्रतिस्पर्धा से बचना चाहिए। हमें दूसरों से नहीं अपितु अपने आप से स्पर्धा करनी चाहिए। जब हम स्वयं से स्पर्धा करेंगे, तब हम निरंतर अपने आप को बेहतर बनाने का प्रयास करते रहेंगे...। हर समझदार अध्यापक या शैक्षिक परामर्शदाता बच्चों को अपनी पढ़ाई की तुलना दूसरे बच्चों से न करने की सलाह देता है। हमारे नम्बर कितने आएंगे या हमें कितना पढ़ना है, इसे अपनी क्षमता के अनुसार तय करना ही श्रेयस्कर होगा। परीक्षा के नज़दीकी दिनों में कुछ छात्र देर रात तक पढ़ने का प्रयास करते हैं। अनुभवी शिक्षक इसे अच्छी बात नहीं मानते। क्योंकि इस स्थिति में परीक्षा के दरम्यान एकाग्रता और याददाश्त पर विपरीत असर देखने में आया है। फिलहाल अभिभावक अगर शुरू से बच्चों की पढ़ाई-लिखाई पर ध्यान रखें, उनकी समस्याओं पर सहज ढंग से अपनी राय दें, तो दवाईयों की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। घर का माहौल सौहार्दपूर्ण हो, बच्चे को खेलकूद, टीवी, मोबाईल से एकदम दूर नहीं करना चाहिए। पिछली गलतियों-विफलताओं पर चर्चा न करके बच्चे की तैयारी को लेकर संतोष और विश्वास जताएं। 
छात्रों के साथ अभिभावकों का यह सोचना कि उनके नौनिहाल परीक्षा में अच्छा प्रदर्शन करें, स्वाभाविक ही है। किन्तु यह सोचने मात्र या जोर-जबरदस्ती से नहीं होने वाला। इस संबंधी शैक्षिक परामर्शदाताओं का मत है कि परीक्षा से पूर्व बच्चों की स्वाभाविक दिनचर्या को बिगड़ने न दें। बल्कि उसकी दिनचर्या के साथ अपनी सहभागिता सुनिश्चित करें। 
उसके साथ ऐसा दोस्ताना भाव बनाएं कि वह अपनी प्रत्येक समस्या आप के साथ बेहिचक शेयर कर सके। इसका एक बड़ा लाभ यह होगा कि बच्चे का स्क्रीन टाइम स्वत: सीमित हो जाएगा। ध्यान रखें कि वह नाश्ता, दोपहर व रात का भोजन समय पर ही करे। बच्चे को खाने में सब्जी, रोटी, दाल, चावल, फल और दुग्ध उत्पाद दे सकते हैं। चिकनाईयुक्त तली-भुनी चीजें  देर से पचती हैं और यह सुस्ती लाती हैं, इसलिए इनसे बचना चाहिए। एक किशोरवय के बच्चे को रात में कम से कम सात घंटे सोना चाहिए। इससे कम नींद थकान का कारण बन सकती है, एकाग्रता और याददाश्त को भी कमजोर करती है। यह भी सलाह दी जाती है कि सोने के लिए बिस्तर पर जाने के पन्द्रह-बीस मिनट पहले पढ़ाई बंद कर देनी चाहिए। ध्यान देने की बात है, हमारा मस्तिष्क एक बार की पढ़ी हुई विषय वस्तु को पूर्णतया याद नहीं रख पाता है, इसलिए परीक्षा की तैयारी के आखिरी दिनों में अपना सर्वाधिक समय पहले से पढे हुए पाठों की रिवीजन और बेहतर उत्तर लिखने की प्रैक्टिस में लगाना है। इसके लिए हर समय किताबों में सिर खपाने की आवश्यकता भी नहीं है। बस एग्जाम तक अपने समय प्रबंधन को कुछ ऐसा बनाना है कि हर विषय को वांछित समय दे सकें और खेलकूद व मनोरंजन के लिए भी वक्त निकल आए। इन दिनों नया कुछ पढ़ने से बचना ही ठीक रहेगा। अब तक जो पढ़ा है, वही काफी है। अभिभावक और बच्चे दोनों इन बातों का ध्यान रखें, तो परीक्षा थ्रिलयुक्त उत्सव में बदल जाएगी और परिणाम भी चौकाने वाला आएगा।