अफगानिस्तान में महिला वर्ग के प्रति उपेक्षा

 

अफगानिस्तान में तालिबान शासन अपने ही नागरिकों के सपनों को कुचल रहा है। वहां की महिलाओं की दशा बद से बदतर हो रही है। महिला अधिकारों की दुहाई देने वाले देश इस पतन शीलता पर चुप हैं। वहां उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता खतरे में है। मिल रही सूचनाओं के अनुसार वहां के टी.वी. चैनलों से महिला एंकरों और महिला कर्मचारियों को हटाया जा रहा है। उनके सार्वजनिक स्थलों और बाज़ारों में जाने पर रोक लगाई जा रही है। शिक्षा और प्रगति के अवसर सीमित किये जा रहे हैं। ‘इस्लाम’ के नाम पर पढ़ाई का अधिकार, आगे बढ़ने का अधिकार क्यों छीना जा रहा है, यह इस समय की वैश्विक सोच का विषय होना चाहिए परन्तु ज्यादातर देश जाने क्यों इसके प्रति उदासीन हैं। उन्हें ईरान में चल रहे महिला आंदोलन पर हो रहे अत्याचार के प्रति रोष का इजहार करना तो सही लग रहा है। अमरीका, फ्रांस, जर्मनी जैसे देशों ने ईरान पर इस वज़ह से प्रतिबंध भी लगाये थे। परन्तु क्या अफगानिस्तान  की तालिबानी हुकम ढोती महिलाओं के प्रति इन उन्नत देशों का कोई फज़र् नहीं? उन्हें वे महिलाएं संवेदना की पात्र क्यों नहीं लगती? क्या जुल्म और सितम की परिभाषाएं अलग-अलग होती हैं?
यह तस्वीर अफगानिस्तान के ननगाहर विश्व विद्यालय के मैडीकल साइंस विभाग की है। चित्र में कैंपस में एक वैन खड़ी है। जिस पर तमाम अटैची और बैग लदे हुए है। वैन की छत पर और सामान नहीं रखा जा सकता। यह सामान उन लड़कियों का है जो भविष्य में महिला डाक्टर की योग्यता प्राप्त कर यूनिवर्सिटी से बाहर आने वाली थीं। यहां 20 दिसम्बर, 2022 तक वे मैडीकल स्टूडैंट थीं परन्तु 21 दिसम्बर का वह सोच भी नहीं सकती थीं कि क्या होगा? यह उनके जीवन का एक काला अध्याय बन गया। जिससे उनके डाक्टर बनने का सपना चूर-चूर हो गया। अफगानिस्तान की तालिबान सरकार ने इन मेधावी लड़कियों से ‘इस्लाम’ के नाम पर इल्म का हक छीन लिया। स्मरण रहे कि तालिब शब्द से ही तालिबान बना है और तालिब के मानी है- पढ़ा-लिखा आदमी। कोई भी पढ़ा-लिखा रोशन दिमाग का आदमी पढ़ाई-लिखाई का जबरदस्त विरोधी भला क्यों होगा? ऐसे पढ़े-लिखे समुदाय को क्या ‘जाहिल’ मान कर चला जा सकता है।
तालिबान का ताज़ा आदेश विचार योग्य है। अफगानिस्तान उच्च शिक्षा विभाग के प्रवक्ता हैं। जिया उल्लाह हाशयी। इन्होंने बीस दिसम्बर के अपने ब्यान में फरमाया कि उच्च शिक्षा में अब लड़कियों का प्रवेश एकदम से रोका जा रहा है। वे किसी भी कालेज या यूनिवर्सिटी में अपनी कक्षा में नहीं जा पायेंगी। अमरीका जो बड़ी बेबसी में अफगानिस्तान से पलायन कर गया था, ने इस तालिबानी फैसले की निंदा की। तभी संकेत पाकर संयुक्त राष्ट्र के महासचिव के प्रवक्ता ने अपने ब्यान में कहा था कि यू.एन. बहुत चिंतित हैं।  चकित करने की बात भारत की है जिसने भी यही कहा कि भारत बहुत चिंतित है। विश्व बिरादरी की इस आधी चुप से तालिबान को और कुछ मिला न मिला हो, उत्साह ज़रूर मिला होगा कि ज्यादा परवाह करने की ज़रूरत नहीं। आज नहीं तो कल, जमाना हमारा नाम लेगा। दिसम्बर की चौबीस तारीख थी, जब इन्होंने और भी सख्त प्रस्ताव पेश किया। यह नया फरमान यह था कि अब लड़कियां मस्ज़िदों तथा अन्य धार्मिक संस्थाओं में जाकर धार्मिक शिक्षा नहीं प्राप्त कर सकतीं। 
महिलाओं के प्रति उनका व्यवहार लगातार संकीर्ण होता चला गया है। आप इस्लाम के नाम पर दुनिया को भ्रम में नहीं रख सकते। कोई धर्म स्त्रियों की अवहेलना के लिए नहीं बना। सत्ता बचाये रखने के लिए स्त्रियों पर अत्याचार ज़रूरी नहीं।