चीन सीमा पर सुरक्षा की दृष्टि से अहम हैं वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम के मायने

 

देश के सामरिक महत्व के उत्तरी सीमावर्ती इलाकों यानी  हिमालयी क्षेत्रों में अवस्थित राज्यों की अंतर्राष्ट्रीय सीमा से  सटे जनपदों के विकास के लिए सत्तारूढ़ मोदी सरकार ने केंद्र पोषित जिस वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम की घोषणा की है, उसके कई मायने हैं। कुछ समकालीन हैं तो कुछ भविष्यकालिक हालांकि इनका महत्व सर्वकालिक रहेगा क्योंकि आने वाले दशकों में ये प्रोग्राम देश की सुरक्षा सम्बन्धी समग्र रीति-नीति बदलने का माद्दा रखते हैं।
गौरतलब है कि इस महत्वाकांक्षी प्रोग्राम से लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश के 19 जिलों के 2966 गांवों में सड़क और अन्य आधारभूत संरचनाओं (इन्फ्रास्ट्रक्चर) को मजबूत किया जाएगा क्योंकि ये सभी क्षेत्र देश की उत्तरी सीमा में सामरिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्र समझे जाते हैं जिनके प्रतिरक्षात्मक महत्व को ध्यान में रखते हुए उन्हें विकसित किये जाने की योजना बनाई गई है ताकि इन सीमावर्ती गांवों में सुनिश्चित आजीविका मुहैया कराई जा सकेगी। इससे न केवल वहां पर पलायन रोकने में मदद मिलेगी बल्कि सीमावर्ती सुरक्षा को भी मजबूती मिलेगी।  उल्लेखनीय है कि देश के उत्तरी छोर से लेकर पूरी छोर तक 3488 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा है जिसकी रखवाली करने का काम भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) वर्ष 1962 से ही करती आई है। इस काम में उसे जरूरत के मुताबिक भारतीय सेनाओं के भी सहयोग मिलते आये हैं। वहीं, हाल ही में केंद्र सरकार ने चीन सीमा पर चौकसी बढ़ाने के लिए आईटीबीपी की सात नई बटालियन बनाने का जो फैसला लिया है और इनके सतत निरीक्षण के लिए आईटीबीपी का एक क्षेत्रीय मुख्यालय बनाने का जो निश्चय किया है, वह एक दूरदर्शिता भरा कदम है क्योंकि इससे न केवल हमारी सैन्य क्षमताओं का विस्तार होगा, बल्कि चीनी की कुटिल व अविश्वसनीय चालों का मुकाबला करने में हमारी सेना भी और अधिक सक्षम हो जाएगी।
ताजा सरकारी फैसला इस बात की भी पुष्टि करता है कि आधुनिक वैज्ञानिक और तकनीकी विकास के इस युग में बढ़ती चीनी महत्वाकांक्षाओं के चलते पर्वतराज हिमालय भारत की उत्तरी सीमाओं की रक्षा करने में अब उतना कारगर साबित नहीं हो पा रहा है जितना कि भारतीय इतिहास, संस्कृति और साहित्य में उससे अपेक्षा की गई है और उस पर नाज किया जाता रहा है। 
यही वजह है कि मोदी सरकार लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक भारतीय सुरक्षा बलों को आधुनिक व तकनीकी सैन्य साजोसामान उपलब्ध करवा रही है ताकि चीन सीमा पर चीनी सैनिकों द्वारा जहां-तहां की जा रही अतिक्र मण की हर कोशिशों का मुंहतोड़ जवाब दिया जा सके। गर्व की बात है कि हमारे सैनिक कभी कभार बिना हथियार के भी चीनी सैनिकों के छक्के छुड़ा चुके हैं। अब तो हमारे सैनिकों का सामना होते ही उन्हें पसीने आ जाते हैं।
इससे देश-दुनिया में यह मजबूत संदेश गया है कि भारत अब 1962 वाला दब्बू भारत नहीं है, बल्कि वह अपने दुश्मनों के मुंह में हाथ डालकर उनके खूनी जबड़ों को तोड़ देने की माद्दा रखता है। वह निरन्तर अपनी सैन्य व आधारभूत क्षमताओं में इजाफा करता जा रहा है क्योंकि मौजूदा मोदी सरकार नेहरू सरकार युगीन गलतियों को दुहराने की भूल कतई नहीं करना चाहती है।  विशेषज्ञ बताते हैं कि केंद्र सरकार अपने अथक प्रयत्नों से लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक जिस तरह से सैन्य व असैन्य इंफ्रास्ट्रक्चर में निरन्तर बढ़ोतरी करती जा रही है, उससे एक ओर जहां नापाक चीनी मंसूबों पर पानी फिर चुका है, वहीं दूसरी ओर भारतीय सैनिकों के हौसले भी नित्य नई बुलंदियों को चूम रहे हैं जिससे चीनी सैनिक भी हतप्रभ दिखाई दे रहे हैं। सड़क परिवहन के क्षेत्र में एक से बढ़कर एक टनल और बारहमासी रोड बन रहे हैं जिससे सेना के लिए सीमाओं तक पहुंचना सुगम्य बनता जा रहा है। इससे चीन की बौखलाहट भी बढ़ती जा रही है।
बता दें कि 1962 में चीनी आक्र मण के बाद आईटीबीपी को चीनी एलएसी की रखवाली का काम सौंपा गया था, जिसके लिए 90,000 सुरक्षा कर्मियों को तब भर्ती किया गया था जो इस मोर्चे पर सेना के साथ तालमेल बिठाकर काम करते आये हैं। वहीं, सरकार ने वर्ष 2020 में केंद्र सरकार ने आईटीबीपी की 47 सीमा चौकी और 12 कैम्प को स्थापित करने की मंजूरी दी थी जिनका कार्य तेज़ी से प्रगति पर है।
वहीं, सरकार जिस तरह से वाइब्रेंट विलेज कार्यक्र म के माध्यम से दूरदराज के क्षेत्रों यानी सीमावर्ती गांवों में रहने वाले लोगों की बेहतरी के लिए पर्यटन, कौशल विकास और उद्यमिता जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर फोकस करने पर ध्यान दे रही है, उससे रोज़गार के अवसर भी बढ़ेंगे। इस कार्यक्र म की सफलता से देश के अन्य हिस्सों के लोगों की अभिरुचि भी इन क्षेत्रों में बढ़ेगी जिससे समावेशी विकास को बल मिलेगा। यदि यह सब कुछ सम्भव हो गया तो उसके सुखद परिणाम शीघ्र ही सामने आने शुरू हो जाएंगे। (अदिति)