नई दिल्ली में पंजाबी भाषा के ध्वज-वाहक

सन् सैंतालीस में देश के विभाजन के बाद अमृता प्रीतम, करतार सिंह दुग्गल, गोपाल सिंह दर्दी, प्रीतम सिंह सफीरा हरिभजन सिंह तथा महेन्द्र सिंह रंधावा जैसे महारथियों ने पंजाबी भाषा, साहित्य तथा संस्कृति की जड़ें मज़बूत करने के लिए जो कार्य किया, वह किसी को भूला नहीं। यदि इनमें हज़ारा सिंह गुरदासपुरी, चतर सिंह बीर, तारा सिंह कामल, बिशन सिंह उपाशक जैसे कवि दरबारियों का योगदान भी शामिल कर लें तो यह सूची और भी लबी हो जाती है। परन्तु जिस व्यति की मैं बात करने लगा हंू, वह छिप  कर रहने की इच्छा व छिप कर ही चले जाने वाली जीवनशैली को समर्पित था। वह होशियारपुर की गढ़शंकर तहसील के गांव बहिबलपुर में जन्मा हरि सिंह था जो पंजाब से दसवीं पास करके दिल्ली में लर्क भर्ती होकर भारत सरकार में डिप्टी सैट्री के रूप में सेवामुत हुआ था। उसने नौकरी करते हुए पढ़ाई जारी रखी और राजनीति शास्त्र में डाटरेट करने के लिए सेवामुति के बाद भी पढ़ता रहा।
नई दिल्ली ने हरि सिंह द्वारा किये प्रयासों पर युग-पलटाऊ मुहर लगाई। उन्हें ज्ञानी पास करके टुकड़े-टुकड़े वाली पढ़ाई पर इतना गर्व था कि उन्होंने बंगला साहिब गुरुद्वारे में इच्छुक लोगों के लिए निशुल्क ज्ञानी की कक्षाएं लगानी शुरू कर दीं। क्-फ्त्त् से शुरू किया गया यह उपकार उन्होंने तब बंद किया जब क्-ब्स्त्र के बाद हरचरण सिंह नाटककार ने करोल बाग में ईस्ट पंजाब नामक कालेज स्थापित करके इसमें ज्ञानी की शिक्षा देने का प्रबंध नहीं कर लिया। हरचरण सिंह की मांग पर बहुत कम लोगों को पता है कि उन्होंने अपने विद्यार्थियों को साथ लेकर क्-ब्फ् में पंजाबी साहित्य सभा नामक एक पंजीकृत संस्था भी स्थापित कर ली थी। इस संस्था के सदस्य तथा उनके प्रेमी प्रत्येक रविवार की शाम ज्ञानी हीरा सिंह के घर अपनी कविताएं, कहानियां तथा लेख पढ़ कर सुनाते और उन पर विचार-विमर्श भी होता। दिल्ली में मेरी साहित्यितक गतिविधियों की नींव रखने वाली भी यह संस्था ही है जिससे मैं आज तक जुड़ा हुआ हूं।
वर्तमान में सभा के पास ख्ख् गज़ में बनी तीन मंज़िला इमारत है जिसमें सभा के कार्यालय के अतिरित कांफ्रैंस हाल, आर्ट गैलरी तथा लाइब्रेरी है, जहां प्रत्येक दूसरे शनिवार साहित्यिक बैठकों के अतिरित कला प्रदर्शनियां तथा साहित्यिक समागम होते रहते हैं। वारिस शाह, गुरबश सिंह प्रीतलड़ी, नानक सिंह नावलकार, गुरमुख सिंह मुसाफर आदि बड़े लेखकों के दिन मनाए जाते हैं। यह संस्था पुस्तक मेलों में भाग लेने वाले दिल्ली के प्रकाशकों आरसी प्रकाशन, नवयुग पलिशर्स, मनप्रीत प्रकाशन, नैशनल बुक शाप तथा शिलालेख प्रकाशन को ससिडी भी देती है।
समर्थ लेखक को फैलोशिप के अतिरित ज़रूरमंद विद्यार्थियों की माइक सहायता करना भी इसकी गतिविधियों में शामिल है। इस सभा के दो कार्यक्रम विशेष होने के कारण बहुत चर्चित हैं। एक तो सभा ने पंजाबी भाषी ग्रामीण क्षेत्रों में ख् ग्रामीण लाइब्रेरियां खोल रखी हैं, जिनका लाभ पिछड़े हुए गांवों के पाठक ले रहे हैं। दूसरा यह कि यह सभा प्रत्येक वर्ष के आरंभ में कुतब की लाठ के निकट स्थित नवयुग फार्म में धूप की महफिल लगाती है, जहां सुबह क्क् बजे से शाम ब् बजे तक देश-विदेश से आए तीन-चार सौ पंजाबी प्रेमी एक-दूसरे से मिलते तथा अपनी पसंद के अनुसार खाते-पीते हैं। यहां प्रत्येक वर्ष तीन से पांच लेखकों को भ् हज़ार की नकद राशि एवं समान-पत्र से समनित किया जाता है और नई प्रकाशित हुईं दर्जन के लगभग पुस्तकें लोकार्पण भी की जाती हैं।  इस साहित्य सभा का चमत्कारी कार्य ज्ञानी हरि सिंह के डाटरेट करने के बाद  दूर हो जाने के उपरान्त करतार सिंह दुग्गल तथा भापा प्रीतम सिंह के हाथ में आना से शुरू होता है। इस भवन का निर्माण जिसका शिलान्यास विदेश मंत्री इन्द्र कुमार गुजराल ने भ् मई, क्-- को किया था। इसकी एक मंज़िल डाबर इंडिया लिमटेड के पास है, जिसके किराये की राशि इतनी है कि सभा के सभी कार्य एवं समारोह चलते हैं और सरकार के आगे हाथ नहीं फैलाने पड़ते।
होशियारपुर के हरि सिंह द्वारा क्-ब्फ् में स्थापित की गई यह नई दिल्ली वाली साहित्य सभा अब त्त् वर्ष की हो गई है॥
चंडीगढ़ साहित्य अकादमी और अंग्रेज़ी भाषा
हिन्दी, चीनी, पंजाबी, गुजराती या मलियालम जितने भी दमगजे यों न लगाएं, किसी भी साहित्यिक कृत्य का कल्याण तब तक नहीं होता जब तक इसका कोई रूपांतरण अंग्रेज़ी भाषा में नहीं होता। मेरे समय के पंजाबी लेखकों को सदा संत सिंह सेखों, करतार सिंह दुग्गल, कुलवंत सिंह विर्क या बलवंत गार्गी की उन लिखतों पर नज़र टिकी रहती थी जो वे कालम या पुस्तक रिव्यू के रूप में अंग्रेज़ी के समाचार पत्रों या मैगज़ीनों में लिखते थे, विशेषकर कैरावान, इलस्ट्रेटड वीकली या ट्रियून में। मेरी उम्र के लेखकों ने देखा है कि निरुपमा दा तथा जसपाल सिंह की अंग्रेज़ी भाषा में की गई टिप्पणियों का भी इसी प्रकार इंताज़ार किया जाता था। निरुपमा के शद भावना प्रधान होते थे और जसपाल सिंह के विदव्ता प्रधान। जसपाल सिंह के कालम को अभिषेक पलिकेशन्स द्वारा 'रीडिंग इन पंजाबी लिटरेचर' नाम के अधीन प्रकाशित करना चंडीगढ़ साहित्य अकादमी द्वारा समानित किये जाने का कारण बना है। समान में समान-पत्र एवं एक लाख रुयये शामिल हैं।
इस पुस्तक में पंजाबी लेखकों बारे लिखे क्भ्ब् लेख नवीन  पंजाबी रचनाकारी का आइना हैं। केन्द्र शासित इस क्षेत्र का ऊर्दू, हिन्दी व पंजाबी पाठकों में प्रचार करने वाला गुरनाम सिंह तीर उर्फ चाचा चंडीगढ़िया था और अब पूर्वी एवं पश्चिमी पंजाब की सीमाओं से बाहरी देशों तक उड़ा कर ले जाने वाला जसपाल सिंह शुरू से चंडीगढ़िया है।
जाते-जाते यह भी बता दूं कि जब क्-म्क् में अंग्रेज़ी के सामिक मैगज़ीन कैरवान ने पंजाबी अंक प्रकाशित किया था तो मेरी मांग पर खुशवंत सिंह ने उनके लिए राजिन्दर सिंह बेदी की कहानी 'पान शाप' अंग्रेज़ी में अनुवाद करवाई थी। बेदी का फ् अप्रैल, क्-म्क् को मटुंगा (बबई) से लिखा धन्यवादी-पत्र मेरे पास आज भी है जिसमें उसने अपनी ऊर्दू रचनाओं को अंग्रेज़ी में अनुवाद करवाने का इच्छा प्रकट की थी, जो मैं पूरी नहीं करवा सका था। अंग्रेज़ी भाषा ज़िन्दाबाद।