पाकिस्तान ने मांगा भारत का गेहूं

गत दिनों पाकिस्तान के पूर्व जरनल परवेज मुशर्रफ का दुबई के एक अस्पताल में देहांत हो गया। भारत के लिए जब वह पाकिस्तान में निर्णायक थे, कारगिल युद्ध उन्होंने  करवाया था। तब जब भारत पाकिस्तान से बेहतर रिश्ते चाहता था जिसमें उस समय के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सर्किय रचनात्मक भूमिका थी और भारत को निराश होकर युद्ध लड़ना पड़ा। इस वीरता भरे करारे जवाब की पाकिस्तान को बिल्कुल उम्मीद नहीं थी। पाकिस्तान ने कभी भी आतंकवादी गतिविधियों से परहेज नहीं किया, अपितु आतंकवादी ग्रुपों को पनाह देकर भारत को नुक्सान पहुंचाना चाहा।
आज पाकिस्तान के अंदरूनी हालात बद से बदतर हो चुके हैं। हाल ही में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान द्वारा पेशावर की पुलिस लाइन जहां के सुरक्षा प्रबंधों की कमी थी। मस्ज़िद में एक आत्मघाती हमलावर द्वारा किये गये हमले में 100 से अधिक लोग मारे गये तथा सैंकड़ों बुरी तरह से घायल हो गये। जिस आतंकवाद को सांप के रूप में पाकिस्तान ने पाला, वह आज वहां की आवाम को डंस रहा है।
हालात बदतर इसलिए भी हैं कि यहां आज महंगाई दर रिकार्ड स्तर पर है। आटा जैसी रोज़ की ज़रूरी वस्तु पर संकट है। इस बीच पाकिस्तानी कारोबारियों, उद्योगपतियों और चैंबर ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्रीज़ के सदस्यों ने शहबाज सरकार से आग्रह किया है कि वह भारत के साथ कारोबार बहाल करे, यही वक्त का तकाज़ा भी है। सदस्यों का कहना है कि देश में दूरदराज के क्षेत्रों में गरीब का पेट भरना है, तो भारत से गेहूं मंगाना चाहिए। पाकिस्तान के राजनीतिक और कूटनीतिक स्तर पर इस समय भारत से रिश्ते अच्छे नहीं हैं, पर भारत के गेहूं से संकट से उभरने में मदद मिलेगी। इस्लामाबाद चैंबर ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्रीज़ के कार्यवाहक अध्यक्ष फाहद हुसेन का कहना है कि पाकिस्तान का गेहूं उत्पादन विनाशकारी बाढ़ से प्रभावित हुआ है। ऐसे में भारत सहित पड़ोसी देशों से गेहूं आयात करके इस संकट से निपट सकते हैं। देश में आम आदमी की कमाई इतनी नहीं है कि वह आटे जैसी बुनियादी चीज़ भी खरीद सके।
वहां इस समय संकट इतिहास का सबसे बड़ा खाद्य संकट है। पंजाब, खेबर पख्तुनख्वा, सिंध और बलूचिस्तान प्रांतों में 10 किलो आटा 3000 पाकिस्तानी रुपये में बिक रहा है। आटे की कमी के चलते हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए हैं। लोग गेहूं की बोरियों के लिए लड़ रहे हैं। यह पूरा चक्कर इमरान खान के दौर में ही शुरू हो गया था। बिचौलियों और जमाखोरों ने कीमतों को बढ़ाने के लिए बड़े पैमाने पर तस्करी से गेहूं बाज़ार से गायब करवा दिया था। 
अब वहां की जनता महसूस कर रही है कि बुरे वक्त में पड़ोस से मदद लेने के लिए पाकिस्तान की सरकार को आगे आना चाहिए।
तहरीक-ए-तालिबान, जिसका जिक्र पहले किया गया है, प्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान में अपनी अनुमानित शरीयत कानून व्यवस्था लागू करना चाहता है। पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में तालिबानी आतंकवादियों की पूरी मदद की। अमरीका के बाद लोकतांत्रिक तर्ज की सरकार बनाने तथा चलाने की कोशिश को भी तालिबान ने पाकिस्तान की मदद से असफल कर दिया। अफगानिस्तान में जब तालिबान ने सत्ता संभाल ली थी। वहां का जन जीवन बदहाली के मोड़ पर आ गया था। लाखों लोगों ने पलायन का रास्ता अपनाया। परन्तु वे जो अपना मुल्क छोड़ नहीं पाये उन्हें मुसीबतों भरी जिन्दगी जीने के लिए विवश होना पड़ा। वहां भी भुखमरी का साम्राज्य है और कोई अन्य देश जल्दी कहीं तालिबान से संबंध रखना नहीं चाहता।
कुछ समय पहले श्रीलंका बदहाली के आलम में आ गया था। वहां भी चीन ने विकास कार्य के लिए करोड़ों रुपये का कज़र् दिया हुआ था। यह केवल संयोग नहीं कि पाकिस्तान में भी विकास की रुप रेखा चीन की करोड़ों रुपये की मदद के बिना तय नहीं की जा सकी। यदि आप भारत की बराबरी दिखाने के लिए इतनी बड़ी रकम कज़र् के रुपये में उठायेंगे। जब उनका रिटर्न नहीं कर पाएंगे, तब क्या होगा? यह एक विचारणीय मुद्दा था जिस पर सोचा ही नहीं गया। श्रीलंका और पाकिस्तान चीन की सहायता से कितने खुशगवार हुए हैं या फंस गये हैं। यह विश्लेषण का विषय होगा। पिछले कुछ वर्षों में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज़ शरीफ अनेक देशों में जा-जा कर देश की खराब दशा के सुधार हेतु आर्थिक सहायता की पुकार करते रहे हैं। संयुक्त अरब अमीरात से कुछ दिन पहले वित्तीय मदद मिली भी है, परन्तु जिस तरह पाकिस्तान के अंदरुनी हालात बिगड़ते चले गये हैं। जिस पर काबू पाना कठिन होता चला गया है। वहां की जनता का निष्कर्ष ठीक है कि भारत से मदद मांगी जाये, परन्तु किस मुंह से? वहां की सरकार भारत से मदद की गुहार किस बुनियाद पर करेगी? आतंकवाद के प्रसार को लेकर ये वहां की सरकार के असफलता के ही दिन नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय कार्य के दिन हैं।