रूस अमरीका से तोड़ेगा परमाणु अप्रसार संधि

रूस और यूक्रेन के बीच आक्रमण को एक वर्ष बीत गया। ब्रिटिश रक्षा मंत्रालय का अनुमान है कि इस युद्ध में करीब तीन लाख मौतें हुई हैं। इसी बीच अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अचानक यूक्रेन का दौरा करके आग में घी डालने का काम कर दिया है। नतीजतन आग बबूला हुए रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने 13 साल पुरानी ‘न्यू स्टार्ट न्यूक्लियर ट्रीटी’ अर्थात नई सामरिक सत्र न्यूनीकरण संधि तोड़ने का ऐलान कर दिया है। यह संधि पांच फरवरी 2011 को इन दोनों महाशक्तियों के बीच हुई थी। पुतिन ने पश्चिमी देशों को परमाणु युद्ध की चेतावनी देते हुए कहा कि वह इस ऐतिहासिक संधि को निलंबित कर रहे हैं। हम परमाणु परीक्षण फिर से शुरू कर सकते हैं, जिससे युद्ध के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके। पुतिन ने पश्चिमी देशों पर रूस को नष्ट करने की कोशिशों का आरोप लगाते हुए कहा कि अमरीका वैश्विक स्तर पर युद्ध को भड़का रहा है। रूस ने युद्ध टालने की जितनी भी कूटनीतिक कोशिशें की, उन्हें अमरीका ने सफल नहीं होने दिया। 
यह संधि दस साल के लिए हुई थी। इसकी अवधि 2021 तक थी, जिसे पांच साल बढ़ाकर 2026 तक लागू करने पर सहमति थी। संधि की शर्तों के तहत दोनों देश अपने परमाणु हथियारों के भंडार को सीमित रखेंगे। इस संधि का उद्देश्य के अंतर्गत दोनों देश परमाणु हथियारों की संख्या 1550 तक रखने को वचनबद्ध थे। संधि के तहत दोनों देश 700 सामरिक हथियारों को चलाए जाने के स्थल पर तैनात करने पर राजी थे। इसमें अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक और सबमरीन मिसाइल और परमाणु हथियारों से लैस बमवर्शक विमान रखे जा सकते थे। एक मिसाइल अपने साथ कई शीर्श परमाणु विस्फोटक (वॉरहेड) ले जा सकने में सक्षम होती है। ऐसे में मिसाइलों की संख्या कम और परमाणु विस्फोटक की संख्या अधिक रखने की छूट थी। युद्ध से बचने और शांति के प्रयासों में स्थायित्व लाने की दृष्टि से जिन संधियों को विश्व-व्यापी रूप में अमल में लाया गया था, लगता है इस संधि के टूटने के बाद युद्ध के समाप्ति की उम्मीद फिलहाल न्यूनतम हो गई है। इसके उलट तनाव बढ़ता दिख रहा है। यूक्रेन की सेना जहां अमरीका और उसके अनुयायी नाटो देशों की सैन्य मदद से रूसी सेना का मुकाबला कर रही है, वहीं अब बाइडेन के यूक्रेन दौरे के बाद चीन ने रूस को हथियार देने की घोषणा कर दी है। साफ  है, युद्ध खतरनाक मोड़ पर पहुंचने को तत्पर दिखाई दे रहा है। युद्ध विराम की संभावनाएं न्यून हो गई हैं। चीन ने अपने शीर्ष राजनयिक वांग यी को रूस भेज दिया है। इसके पहले अमरीकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने दावा किया था कि चीन-यूक्रेन के साथ जारी युद्ध में रूस को हथियार और गोला-बारूद देने पर विचार कर रहा है। इस पर चीन ने कहा है कि अमरीका दूसरों पर आरोप मढ़ने की झूटी सुचनाएं फैलाने से बाज आए। इधर ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन और लिज ट्रस यूक्रेन के लिए लड़ाकू विमान देने का समर्थन कर प्रधानमंत्री ऋषि सुनक पर दबाव बना रहे हैं। साफ है, पश्चिमी देश यूक्रेन के कंधे पर बंदूक रखकर रूस को नेस्तनाबूद करने की कोशिश में लगे है। 
इस यद्ध में तीन लाख से ज्यादा लोग अब तक मारे जा चुके हैं। रूस को इस हमले से कुछ हासिल होने की बजाय नुकसान ही हुआ है। बीते एक साल से चली आ रही इस लंबी लड़ाई ने यह भी तय कर दिया कि पुतिन में कूटनीतिक और सामरिक समझ की कमी थी। जबकि वह यूक्रेन की तुलना में अर्थ और सैन्य-शक्ति के मोर्चे पर एक वैश्विक महाशक्ति के रूप में पहचान बनाए हुए हैं। बावजूद रूस न तो यूक्रेन को पराजित कर सका और न ही उसके हौंसले को तोड़ सका? मुख्य बात यह भी देखने में आई है कि यूक्रेन में व्लादिमीर जेलेंस्की के विरूद्ध जन-विद्रोह दिखाई दिया है। जबकि पुतिन के विरुद्ध रूस में युद्ध के खिलाफ  विरोध प्रदर्शन देखने में आए हैं। फिर भी रूस यूक्रेन पर जो भी बड़े हमले कर जिस तरह से सामरिक शक्ति का प्रदर्शन कर रहा है, उससे उसकी निराशा और बौखलाहट झलक रही है। हैरानी इस पर भी है कि मानवता के समक्ष उपजे इस संकट को मानवाधिकारवादी देश स्वीकार तो कर रहे हैं, लेकिन युद्ध रोकने के लिए कोई देश आगे नहीं आ रहा है। जबकि यूरोप समेत अनेक देशों के समक्ष इस युद्ध ने ऊर्जा और खाद्यान्न संकट के साथ महंगाई को चरम पर पहुंचा दिया है। 
आई.सी.ए.एन. संगठन अंतर्राष्ट्रीय संधि के माध्ययम से दुनिया को परमाणु हथियार मुक्त बनाने के प्रयासों में जुटा है। संगठन के प्रयासों पर सहमति जताते हुए 122 देशों ने परमाणु हथियारों को प्रतिबंधित करने की संधि भी कर ली है। संयुक्त राष्ट्र संघ की जब 1945 में स्थापना हुई थी, तब उसका मुख्य उद्देश्य विश्व फलक पर परमाणु निरस्त्रीकरण ही था, लेकिन इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि इस वैश्विक संस्था के अस्तित्व में आने के बाद से ही परमाणु हथियार रखने वाले देशों की संख्या तो बढ़ ही रही है, परमाणु और हाइड्रोजन बंमों की संख्या भी बढ़ रही हैं। जो देश परमाणु संपन्न हैं, वे अब तक परमाणु व अप्रसार संधि (एनपीटी) पर दस्तखत करने को तैयार भी नहीं हुए हैं। इन देशों में अमरीका, रूस, चीन, ब्रिटेन, फ्रांस, भारत, पाकिस्तान, इजराइल और उत्तर-कोरिया शामिल हैं। यदि ऑर्म्स कंट्रोल एसोसिएशन, वॉशिंगटन की रिपोर्ट को मानें तो इस समय रूस के पास 7000, अमरीका 6,800, फ्रांस 300, चीन 260, ब्रिटेन 215, पाकिस्तान 140, भारत 110, इजराइल 80 और उत्तर कोरिया के पास 10 परमाणु हथियार मौजूद हैं। यदि ये देश इन हथियारों को चिंगारी दिखा दें तो पूरा ब्रह्मांड तहस-नहस हो जाएगा। अत: उचित होगा कि जी-20 समूह के अध्यक्ष के रूप में भारत उन संभावनाओं को तलाशे जो युद्ध-विराम की दृष्टि से कारगर साबित हों। 


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