पंजाब का मौजूदा घटनाक्रम-निशाने या हैं ?

कुझ न कहिना ते चुप रहिना ऐना वी सौखा नहीं
पीड़ बड़ी है सीने विच पर, मुसकाना वी पैंदा है।
(लाल फिरोज़पुरी)

हालात ऐसे हैं कि सिख कौम ऐसे चौराहे पर आ खड़ी है कि उसे कोई भी उचित रास्ता दिखाई नहीं दे रहा, परन्तु यदि हम चौराहे के मध्य ही खड़े रहे तब भी दुर्घटना निश्चित है, परन्तु यदि कोई गलत रास्ता चुन लिया तो नुकसान और भी अधिक होगा। सिख कौम का संकल्प सरबत दे भले का संकल्प है। सिखों ने हज़ारों कुर्बानियां देकर इस बात पर पहरा दिया कि किसी राजा को राज साा के नशे तथा ताकत के बल पर अन्य धर्म के लोगों को अपना धर्म मानने के लिए विवश करने का अधिकार नहीं है। सिख गुरुओं से लेकर सिख, मुग़ल शासन के अंत तक जबरन धर्म परिवर्तन के विरोध में लड़ते रहे। बाबा बंदा सिंह बहादुर का शासन आया तो अत्याचारियों से बदले तो लिए गए परन्तु किसी बेगुनाह मुसलमान को मारना तो दूर जेल में बंद करने का इतिहास में कहीं कोई ज़िक्र नहीं मिलता। सिख मिसलों के समय भी किसी अन्य धर्म के व्यति का जबरन धर्म-परिवर्तन नहीं हुआ तथा महाराजा रणजीत सिंह से चाहे हम पंजाबियों को शिकायत है कि उन्होंने पंजाबी को राज्य भाषा न बना कर बड़ी गलती की, जिस कारण पंजाबी मुसलमानों, हिन्दुओं तथा सिखों में पंजाबियत का उभार नहीं हुआ, अपितु वह धार्मिक विभाजन में ही बटे रहे, परन्तु यह  प्रदेश में भी समूचे पंजाबियों का शासन था। फिर ब्रिटिश शासन में आज़ादी की लड़ाई में दो प्रतिशत से कम संया सिखों की कुर्बानियां त्त् प्रतिशत से अधिक हुईं, यह स्पष्ट रूप में सिखों की देश भति का प्रकटावा है। इतिहास गवाह है कि सिर्फ और सिर्फ सिखों के भारत के साथ रहने वाले फैसले ने फिरोज़पुर तथा अमृतसर को भारत-पाकिस्तान की सीमा बनवाया, नहीं तो यमुना तक पाकिस्तान की सीमा होती तथा समूचा हरियाणा दिल्ली की सीमाओं तक पाकिस्तान का हिस्सा होता। परन्तु अफ़सोस है कि कांग्रेसी नेताओं ने सिखों के साथ किये वायदे पूरे नहीं किए। देश भर में स्वयं भाषा के आधार पर प्रदेश बनाए गए परन्तु पंजाबी भाषा के आधार पर प्रदेश बनाने की लड़ाई ने पंजाब के सिखों-हिन्दुओं में दरार पैदा कर दी। सिखों में बेगानापन तथा हिन्दुओं में भी एक अलग तरह की सोच ने इसे जन्म दिया। हालांकि  सच्चाई यह है कि हिन्दू नेताओं के पंजाबी विरोध ने पंजाब को एक सिख बहुसमति वाला प्रदेश बना दिया। नहीं तो पंजाब इतना बड़ा ज़रूर होता कि इसमें सिख तथा हिन्दू जनसंया एक समान होती। ख़ैर मैं समझता हूं कि यह पहली रणनीतिक लड़ाई थी, जिसमें मौके के सिख नेता अपनी चाल में सफल रहे तथा उस समय के हिन्दू नेता उनकी चाल में फंस गए थे।
आम तौर पर सिख प्रदेशों को अधिक अधिकार देने की लड़ाई ही लड़ते रहे हैं। आनंदपुर का प्रस्ताव ख़ालिस्तान की मांग नहीं थी, अपितु देश के संघीय ढांचे को मज़बूत करने की मांग की था परन्तु इसे केन्द्र सरकारों के प्रचार ने सिखों की अलग प्रदेश की मांग के रूप में प्रचारित किया। ख़ालिस्तान की मांग करने वाले ज्यादातर लोग भी पहले उस समय की कांग्रेस शासित केन्द्र सरकार के नज़दीक रहने वाले या उनके साथ गुप्त बैठकें करने वाले लोग ही थे। सिखों ने अभी तक पंथ या कौम के रूप में नहीं सोचा कि या ख़ालिस्तान सिखों के लिए लाभदायक है या नुकसानदायक। या यह मांग गुरु साहिब तथा गुरबाणी की सरबत दे भले की सोच के अनुकूल भी है या नहीं? परन्तु सरकारें उन लोगों को बड़ा तथा हीरो बनने का अवसर देती हैं, जो ख़ालिस्तान की बात करते हैं जब वह 'बड़े' हो जाते हैं तो उनके विरुद्ध कार्रवाई करके समूची कौम को ज़ुल्म का निशाना बना दिया जाता है।
साज़िश की गंध
मैं तो इस वास्ते चुप्प हूं कि तमाशा न बने
तू समझता है कि मुझे तुझ से ग़िला कुछ भी नहीं।

वास्तव में जैसे अचानक ही एकाएक पंजाब के धार्मिक तथा राजनीतिक आकाश पर अमृतपाल सिंह का उदय हुआ, उसी समय ही किसी साजिश की गंध भी आने लग पड़ी थी। इसीलिए हमने इन कालमों में उतने समय तक अमृतपाल सिंह की गतिविधियों पर कोई टिप्पणी न करने तथा चुप रहने का फैसला कर लिया था, जब तक इस संबंध में बोलने की कोई विवशता सामने नहीं आ जाती। परन्तु मौजूदा हालात ने हमें बोलने पर विवश कर दिया है, योंकि ऐसा प्रतीत होता है कि केन्द्र सरकार तथा पंजाब सरकार में इस कार्रवाई का श्रेय लेने की दौड़ लगी हुई है। नहीं तो पंजाब में सिर्फ सोशल मीडिया पर खिलौना हथियारों से फोटो डालने पर अदालती आदेशों के विपरीत शांतिपूर्ण ढंग से ख़ालिस्तान की बात करने वालों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई करने में एक मिनट भी न लगाने वाली सरकारें तथा एजेंसियां अमृतपाल सिंह के मामले में चुप रह कर उसे बड़ा एवं और बड़ा होने देने की इजाज़त कैसे दे सकती थी? अमृतपाल सिंह ने सरेआम हथियारों का प्रदर्शन किया, गुरुद्वारों में कुर्सियों के नाम पर कौम में दरार डालने वाली स्थिति पैदा की तथा फिर अजनाला थाने पर उसकी ओर से की गई कार्रवाई पर कई सप्ताह तक धारण की गई चुप्पी, केन्द्र तथा प्रदेश सरकार की किसी साजिश की गंध जैसी ही दिखाई देती है।
इस दौरान पंजाब के मुयमंत्री की केन्द्रीय गृह मंत्री के साथ मुलाकात तथा केन्द्रीय सुरक्षा बलों की तैनाती कई तरह के सवाल पैदा करती है।
वैसे भी किसी व्यति जिसे आधी रात के बाद पुलिस की कुछ टुकड़ियां घेरा डाल कर सो रहे को गिरतार कर सकती हों, को दिन-दहाड़े पूरे पंजाब को पुलिस छावनी बना कर इंटरनेट बंद करके गिरतार करने का प्रयास समझ के बाहर की बात है। फिर राष्ट्रीय मीडिया पर देश भर में इसका इस प्रकार प्रचार करना जैसे किसी देश विरोधी तत्वों के विरुद्ध देश हित की लड़ाई लड़ी जा रही हो। किसी साज़िश या किसी विशेष उपलधि प्राप्त करने के लिए बनाई रणनीति ही प्रतीत होती है। सिख युवकों पर एनएसए लगा कर उन्हें काले पानी की भांति असम के डिब्रूगढ़ भेजना भी वैसा ही घटनाक्रम है, जैसे क्-त्त्ब् के घटनाक्रम के बाद सिख युवकों को जोधपुर की जेलों में भेजा गया था।
विदेशों में सिखों द्वारा भारतीय दूतावासों के बाहर प्रदर्शनों को भारतीय मीडिया में बड़ा स्थान देकर देश में प्रचार करना किसी प्रचार की विशेष ज़रूरत की ओर ही संकेत देता है, नहीं तो ऐसे समाचारों को भारतीय मीडिया में कम से कम महत्व मिलना चाहिए था। फिर जिस प्रकार गत कई दिनों से अमृतपाल सिंह आगे-आगे और पुलिस पीछे-पीछे होने के नाटक का प्रचार किया जा रहा है, वह भी आश्चर्यजनक है। पुलिस के पास हैलीकाप्टर तथा ड्रोन किस लिए हैं? इस तरह प्रतीत होता है कि सरकार की दिलचस्पी अमृतपाल को गिरतार करने की बजाय उसे भागते दिखाने में अधिक है।
लक्ष्य 2024 तथा जालन्धर तो नहीं?
जब हर एक शहर बलाओं का ठिकाना बन जाए,
या ख़बर कौन कहां किसका निशाना बन जाए॥
(अहमद फ़राज़)

गत दिनों जालन्धर लोकसभा के उप-चुनाव संबंघी कुछ सर्वे रिपोर्टें चर्चा में थीं। जिनमें दो विशेष पार्टियां अंतिम दो में आने की चर्चा थी। पता नहीं यह चर्चा थी या झूठ, परन्तु यह सच थी तो इन दोनों पार्टियों के लिए 2024 के चुनावों के संदर्भ में जालन्धर के चुनाव परिणाम का काफी विपरीत प्रभाव डालने की सभावनाएं बन सकते हैं। इस दौरान एकाएक कुछ घटनाएं घटित होती हैं और एक ओर अकाली दल के बड़े नेताओं के खिलाफ तथा दूसरी ओर कांग्रेस के कई नेताओं के खिलाफ कार्रवाई शुरू हो जाती है। अकाली दल तथा कांग्रेस के नेता निजी बातचीत में कहते हैं कि इस कार्रवाई के लिए यह समय इसलिए चुना गया है ताकि वे जालन्धर लोकसभा उप-चुनाव की लड़ाई का नेतृत्व न कर सकें, परन्तु यह छोटी बात है। अब चर्चा यह सुनाई दे रही है कि भाजपा तथा 'आप' अमृतपाल सिंह के खिलाफ कार्रवाई को भारत को बचाने वाली 'देश भति' की 'जंग' के रूप में इसका श्रेय स्वयं लेकर इसे 2024 के चुनावों में इस्तेमाल करना चाहती हैं। एक ओर केन्द्र यह प्रभाव दे रहा है कि पंजाब सरकार आतंकवाद तथा खालिस्तान के खिलाफ लड़ाई में विफल हो गई है और केन्द्र को यह लड़ाई लड़नी पड़ रही है और दूसरी ओर 'आप' प्रमुख अरविंद केजरीवाल इसका श्रेय 'आप' की पंजाब सरकार तथा इसके मुुयमंत्री भगवंत मान को दे रहे हैं। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि भाजपा को शायद यह लग रहा है कि ख्ख्ब् के आम चुनावों में अकेला मुस्लिम विरोध शायद बहुसंयक को भाजपा के कारण एकजुट न कर सके, इसलिए उन्हें मुसलमानों तथा खालिस्तानियों दोनों का डर दिखाना ज़रूरी प्रतीत हो रहा है। दूसरी ओर आम आदमी पार्टी भी हर बात में भाजपा की नकल करती है और उससे एक कदम आगे होकर राष्ट्रवाद का नारा दे रही है और कांग्रेस का स्थान लेने के लिए उत्सुक है, उसे भी बहुसंयक के वोट दरकार हैं।

-क्ब्ब्, गुरु नानक स्ट्रीट, समराला रोड, खन्ना
-मो. -9216860000