बड़ी गम्भीर है यातायात जाम की समस्या

 

एक अमरीकी प्रबंधन कम्पनी की माने तो 2030 तक भारत में लगभग 3 लाख करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान केवल सड़कों व चौराहों पर जाम लगने के कारण होने लगेगा। 2019 के प्राप्त आंकड़ों के अनुसार देश में जाम के कारण 2200 करोड़ अमरीकी डॉलर का नुकसान हुआ था। यदि विकास के पक्ष से देखें तो यह बहुत बड़ी रकम होती है। यह तो केवल धनराशि के रूप में होने वाला नुकसान है, इसके अतिरिक्त परेशानी तो होती ही है, समय अलग बर्बाद होता है। चौराहों पर जाम के कारण जहां लाखों-करोड़ों रुपये का ईंधन बर्बाद होता है, वहीं प्रदूषण का स्तर भी बढ़ता है। ऐसे में देखा जाए तो यातायात जाम की समस्या एक गंभीर विषय है। 
देश के किसी भी शहर में चले जाएं, चौराहों पर जाम आम होता जा रहा है। फिर राजधानी दिल्ली सहित देश के बढ़े शहरों में तो हालात और भी गंभीर हो जाते हैं। देश के अनेक शहरों में अच्छी खासी संख्या में ऐसे सिग्नल वाले चौक आसानी से मिल जाएंगे जहां यातायात के पीक समय में तीन से चार बार सिग्नल बदलने के बाद जाकर कहीं आपको निकलने का मौका मिल पाता है। 
यातायात जाम की समस्या हमारे देश की ही समस्या नहीं है अपितु दुनिया के अधिकांश देश इस तरह की स्थिति से दो चार हो रहे हैं। अमरीका और कई यूरोपीय देशों में भी इस तरह की समस्या उत्पन हो जाती है। अमरीका व यूरोप के कई देशों में रोड कंजेशन चार्ज वसूल कर भीड-भाड़ वाले मार्गों पर वाहनों की आवाजाही को कम करने के प्रयास किए जा रहे हैं।  भारत में तो जाम की समस्या और भी अधिक गंभीर है। यहां पुराने शहरों और नई विकसित कालोनियों के बीच आवागमन के लिए मज़बूत सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था नहीं होने से हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। शहरी नियोजकों द्वारा समय-समय पर चौराहों विशेष को सिग्नल फ्री करने की बात तो की जाती रही हैं परन्तु कोई ठोस योजना नहीं बनाई जाती। दरअसल ऊंची-ऊंची इमारतों के साथ ही तेजी से बढ़ते शहरीकरण के बीच आने वाले समय में यातायात की उत्पन्न होने वाली समस्याओं को लेकर कोई ठोस नीति देखने को नहीं मिल रही। एक ओर लोगों का छोटे चौपहिया वाहनों से मोह भंग होता जा रहा है, वहीं घरों में एक से अधिक चौपहिया वाहन होना भी आम होता जा रहा है। स्थिति यह है कि वाहनों को घरों में पार्क करने के लिए जगह नहीं है। अनेक कॉलोनियाें या मोहल्लों में घरों के बाहर वाहन पार्क किए हुए आम देखे जा सकते हैं। कुछ इसी तरह से घनी आबादी के बीच बहुमंज़िला इमारतें खड़ी करने से भी जनसंख्या का दबाव बढ़ता जा रहा है। ऐसे क्षेत्रों में बनी हुई सड़कें एक सीमा तक ही चौड़ी की जा सकती हैं। ऐसे में ठोस नीति बनाना ज़रुरी हो जाता है।