राजनीतिक त़ूफान


राहुल गांधी को सूरत (गुजरात) की एक अदालत द्वारा मानहानि के दायर केस में दो वर्ष की सज़ा सुनाए जाने के बाद अगले ही दिन संविधान की धारा 102(1) तथा ‘जन प्रतिनिधि एक्ट’ का हवाला देते हुए लोकसभा कार्यालय द्वारा उनकी संसदीय सदस्यता खत्म करने की घोषणा ने देश के राजनीतिक जीवन में एक तरह से भूकम्प ला दिया है। कांग्रेस इस पूरे घटनाक्रम को राजनीति के साथ जोड़ रही है, जबकि भारतीय जनता पार्टी इसे देश के कानून अनुसार लिया गया फ़ैसला बता रही है। इस फैसले के विरुद्ध अलग-अलग स्थानों पर कांग्रेसी नेता तथा कार्यकर्ता सड़कों पर उतर आए हैं तथा रोष प्रदर्शन कर रहे हैं। राहुल गांधी अपने बड़बोलेपन के लिए पहले से ही जाने जाते हैं।
उन पर अलग-अलग स्थानों पर उनके द्वारा दिये गये बयानों को लेकर मानहानि के 4 अन्य मामले भी चल रहे हैं। कांग्रेसी प्रवक्ता ने यह भी कहा कि वह इस फैसले संबंधी न्यायिक लड़ाई भी लड़ेंगे तथा राजनीतिक स्तर पर भी संघर्ष करेंगे। 30 दिनों के भीतर कांग्रेस को इस मामले को लेकर उच्च न्यायालय में जाना पड़ेगा। न्यायिक प्रक्रिया कितना समय लेती है, कितने समय बाद संबंधित अदालतें अपने फैसले सुनाती हैं, इस संबंध में कुछ भी कहना मुश्किल है परन्तु राहुल गांधी के राजनीतिक स़फर के लिए इसे एक बहुत बड़ा झटका ज़रूर समझा जा रहा है। यह भी कि यदि उच्च अदालतों में फैसला राहुल के पक्ष में नहीं होता तो सज़ा के साथ-साथ वह 6 वर्ष तक चुनाव भी नहीं लड़ सकेंगे। कांग्रेस में आए बदलावों के कारण चाहे अब मल्लिकार्जुन खड़गे इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं परन्तु उनके लिए भी आगे का रास्ता काफी कठिन प्रतीत होने लगा है। देश में राजनीतिक तनाव के और बढ़ जाने के आसार बन गए हैं। बहुत-से राजनीतिक दल भाजपा के विरुद्ध एकजुट हो गए हैं। वह अपने भाषणों तथा घोषणाओं में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को तानाशाह कह रहे हैं तथा भाजपा की कार्रवाइयों को लोकतंत्र के लिए ़खतरा बता रहे हैं। ये पार्टियां पिछले समय में भाजपा के सांप्रदायिक एजेंडे संबंधी भी लगातार बोलती रही हैं। आगामी समय में ही यह पता चल सकेगा कि राहुल को लगा यह राजनीतिक झटका पार्टी के लिए कैसा साबित होगा। ़िफलहाल ज्यादातर पार्टियों के नेता एक मंच पर खड़े दिखाई देने लगे हैं। देश भर में जिस तरह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा भाजपा का प्रभाव बना दिखाई देता है, उसे देखते हुए यह ज़रूर महसूस होता है कि विपक्षी पार्टियों के लिए आगे का राजनीतिक रास्ता मुश्किलों भरा ही होगा।
इसका एक बड़ा कारण यह भी कहा जा सकता है कि इन ज्यादातर पार्टियों के नेताओं का क्रियात्मक रूप में चुनावों के दौरान एकजुट होना मौजूदा समय में बेहद मुश्किल प्रतीत होता है। कांग्रेस के बिना इन पार्टियों का राष्ट्रीय स्तर पर ज्यादा प्रभाव भी नहीं माना जाता, अपितु प्रांतीय स्तर पर ही देश में इनका अलग-अलग प्रदेशों में अपना-अपना प्रभाव बना रहा है। आगामी वर्ष मई, 2024 में लोकसभा चुनाव होने जा रहे हैं। जिनके लिए इन पार्टियों द्वारा पुख्ता योजनाबंदी करके तथा पूरी तरह अनुशासन में रह कर ही भाजपा का मुकाबला किया जा सकेगा। इस बात पर भी प्रश्न-चिन्ह आ खड़े हुए हैं कि निकट भविष्य में राहुल गांधी किस तरह कांग्रेस को साथ लेकर चलने में सक्षम हो सकेंगे। क्योंकि उनका ‘भारत जोड़ो यात्रा’ का बना प्रभाव अब कम होता दिखाई दे रहा है।
 

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द