अमृतपाल सिंह के विरुद्ध की गई कार्रवाई का कच-सच!

अमृतपाल सिंह से संबंधित घटनाक्रम ने न केवल पंजाब, अपितु देश-विदेश में बड़ी हलचल पैदा की है। उसे गिरफ्तार करने के लिए 18 मार्च को केन्द्रीय एजेंसियों के सहयोग से पंजाब पुलिस ने आप्रेशन शुरू किया था परन्तु आज 25 मार्च को यह लेख लिखे जाने तक अमृतपाल सिंह पुलिस की गिरफ्त में नहीं आया। चाहे जालन्धर ज़िले के मैहतपुर इलाके से चकमा देकर अलग-अलग कारों तथा मोटरसाइकिल बदल कर उसके पटियाला तथा फिर हरियाणा पहुंचने के समाचार तो निरन्तर आ रहे हैं। 18 मार्च को आप्रेशन आरम्भ करने के बाद कई दिनों तक पुलिस अमृतपाल सिंह तथा उसके साथियों को गिरफ्तार करने के लिए जूझती रही परन्तु इस समय के दौरान पंजाब की सत्तापक्ष आम आदमी पार्टी का राजनीतिक नेतृत्व इस घटनाक्रम से दूर ही रहा। इस नेतृत्व ने समय पर आकर लोगों को यह जानकारी नहीं दी कि अमृतपाल सिंह को कौन-से आरोपों के तहत तथा किन ठोस सबूतों के अधीन गिरफ्तार करने की कवायद शुरू की गई है।
इसका परिणाम यह निकला कि देश-विदेश में रहते सिख समुदाय के एक बड़े भाग में गुस्सा एवं रोष पैदा हुआ तथा उन्होंने ब्रिटिश, कनाडा, अमरीका तथा विश्व के अन्य कई देशों में रोष प्रदर्शन किये। लंदन में तो भारतीय दूतावास के सामने लगा तिरंगा ध्वज भी उतारने का प्रयास किया गया तथा अमरीका के शहर सान फ्रांसिस्को में भारतीय दूतावास की इमारत को नुकसान पहुंचाया गया। जर्मन में भी वहां रहते सिख समुदाय द्वारा प्रदर्शन किए गए। नि:सन्देह इन प्रदर्शनों में ़खालिस्तान पक्षीय सिख बड़ी संख्या में भाग ले रहे थे तथा उनके द्वारा भारत के विरुद्ध तथा ़खालिस्तान के पक्ष में तीव्र नारेबाज़ी भी की जाती रही है। चाहे केन्द्रीय एजेंसियां भी पंजाब पुलिस के साथ मिल कर अमृतपाल सिंह को पकड़ने के आप्रेशन में लगी हुई हैं। इसके बावजूद पंजाब तथा केन्द्र सरकार दोनों देश-विदेश में रहते सिख समुदाय पर इस घटनाक्रम के पड़ने वाले प्रभावों को समझने में असमर्थ रही हैं। बहुत समय बाद 21 मार्च को पंजाब के कृषि मंत्री कुलदीप सिंह धालीवाल ने इस विषय पर प्रदेश के लोगों को सम्बोधित किया तथा उसके बाद मुख्यमंत्री भगवंत मान लोगों के सामने आये, परन्तु भारत सरकार का विदेश मंत्रालय इसके बाद भी खामोश बना रहा तथा उसने 24 मार्च को आकर इस संबंध में अपनी चुप्पी तोड़ी तथा देश-विदेश में रहते भारतियों को पंजाब के घटनाक्रम संबंधी सोशल मीडिया पर फैलाई जा रही अ़फवाहों पर विश्वास न करने के लिए कहा। इससे सिर्फ एक दिन पहले लंदन स्थित भारतीय राजदूत ने पंजाब की स्थिति संबंधी प्रवासी भारतीयों को गुमराह न होने के लिए ज़रूर सचेत किया तथा यह भी विश्वास दिलाया कि पंजाब में हालात सामान्य हैं परन्तु तब लंदन सहित विश्व के कई भागों में सिख समुदाय द्वारा रोष प्रदर्शन किए जा चुके थे।
हमारी ओर से यह चर्चा करने का उद्देश्य यह है कि पंजाब सरकार तथा केन्द्र सरकार ने अमृतपाल सिंह तथा उसके साथियों को पकड़ने के लिए एक आप्रेशन की पटकथा तो लिख ली परन्तु उसे ठीक तरह से लागू करने में कई पक्षों से असफल रहीं। यदि अमृतपाल सिंह को गिरफ्तार करना चाहते थे तो 18 मार्च को सुबह उसे उसके गांव जल्लुखेड़ा (अमृतसर) में आसानी से पकड़ा जा सकता था परन्तु जब अमृतपाल सिंह अपने साथियों सहित अनेक कारों का क़ािफला लेकर मुक्तसर को रवाना हुआ तो उसके पीछे पुलिस के अनेक वाहन लग गए तथा उसका पीछा करते हुए उन्होंने जालन्धर के मैहतपुर इलाके तक उसके साथ जा रहे उसके अनेक साथियों के वाहन रोक कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया परन्तु अमृतपाल सिंह महितपुर के इलाके में ही पुलिस को चकमा देकर कई कारें तथा मोटरसाइकिल बदलता हुआ पुलिस के हाथों से निकल गया तथा 19 मार्च को ही वह लुधियाना से बस में सवार होकर अपने एक साथी पप्पलप्रीत सिंह के साथ पहले पटियाला तथा फिर कुरुक्षेत्र पहुंच गया तथा वहां से शाहबाद पहुंच कर बलजीत कौर नामक एक महिला के घर दो दिन तक ठहरा। बलजीत कौर के कहने अनुसार वह वहां से उत्तराखंड के लिए निकल गये। इस तरह पंजाब पुलिस तथा केन्द्रीय एजेंसियों द्वारा अमृतपाल सिंह की गिरफ्तारी के लिए शुरू किया गया यह बड़ा आप्रेशन सफल नहीं हो सका, परन्तु इस उद्देश्य के लिए पंजाब में केन्द्रीय सुरक्षा बलों की तैनात की गईं 18 के लगभग कम्पनियों तथा प्रदेश के आठ ज़िलों के 3200 के लगभग तैनात किए गए पुलिस कर्मचारियों के कारण प्रदेश में डर तथा दहशत का माहौल ज़रूर पैदा हुआ तथा सुरक्षा बलों द्वारा 200 के लगभग अमृतपाल सिंह के संगठन  ‘वारिस पंजाब के’ से संबंधित उसके साथियों को गिरफ्तार किया गया, जिनके संबंध में पुलिस अब दावा कर रही है कि 30 के लगभग उसके अधिक कट्टर समर्थकों को छोड़ कर शेष को चेतावनी देकर रिहा कर दिया जाएगा। 
अमृतपाल सिंह को गिरफ्तार करने में हुई असफलता के साथ-साथ पंजाब के राजनीतिक चिन्तक इस बात पर भी चर्चा कर रहे हैं कि पंजाब तथा केन्द्र सरकार ने पहले कई महीनों तक अमृतपाल सिंह का रूतबा क्यों बढ़ने दिया? जब वह एक के बाद एक भड़काऊ कार्रवाइयां कर रहा था तथा अनेक बार वह तथा उसके साथी कानून भी हाथ में ले रहे थे तो उस समय सरकारें खास तौर पर पंजाब सरकार खामोश क्यों रही? ़खालिस्तान बनाने तथा स्टेट से टक्कर लेने की बातें तो लगभग वह प्रतिदिन ही करता था। सोशल मीडिया तथा अन्य मीडिया प्लेटफार्मों पर इसकी व्यापक स्तर पर कवरेज़ भी होती थी परन्तु दिसम्बर 2022 को उसने तथा उसके साथियों ने भड़काऊ कार्रवाई यह की कि एक दिन में ही कपूरथला तथा जालन्धर शहर के दो गुरुद्वारों में बुज़ुर्गों तथा शारीरिक तौर पर असमर्थ श्रद्धालुओं के लिए दीवान हाल के पीछे श्री गुरु ग्रंथ साहिब के सरूपों से नीचे रखीं कुर्सियों तथा बैंचों को गुरुद्वारों से बाहर निकाल कर न सिर्फ उनकी तोड़-फोड़ की, अपितु उन्हें अग्नि भेंट कर दिया। इससे सिख समुदाय में भारी रोष उत्पन्न हुआ। जालन्धर गुरुद्वारा से संबंधित कमेटी ने तो इसकी पुलिस के पास शिकायत भी की परन्तु पुलिस ने फिर भी कोई कार्रवाई नहीं की थी। इस प्रकार अमृतपाल सिंह तथा उसके साथियों के हौसले बढ़ गए और उन्हें लगने लगा कि प्रशासन तथा गुरुद्वारा कमेटियों पर किसी भी ढंग से वे दबाव डाल सकते हैं। इसी रास्ते पर चलते हुए अमृतपाल सिंह तथा उसके साथियों ने रोपड़ जिले के एक अमृतधारी युवक वरिन्दर सिंह का अपहरण करने के बाद उसके साथ मारपीट की। जिसे लेकर उसने अजनाला के थाने में इस संबंधी शिकायत भी दर्ज करवा दी। इस केस में अजनाला पुलिस ने अमृतपाल सिंह के एक साथी गुरप्रीत सिंह तूफान को गिरफ्तार कर लिया। अपने इस साथी को पुलिस द्वारा गिरफ्तार किये जाने को अमृतपाल सिंह ने एक बड़ी चुनौती के रूप में लिया और सोशल मीडिया के माध्यम से दो-तीन दिन एकजुटता के बाद 23 फरवरी को अजनाला के थाना पर धावा बोल दिया। ऐसा करते समय अमृतपाल तथा उसके साथियों ने पालकी साहिब में श्री गुरु ग्रंथ साहिब के सरूप को आगे-आगे रखा जिस कारण पुलिस जवाबी कार्रवाई करने में असमर्थ रही। पुलिस ने अमृतपाल सिंह तथा उसके साथियों के दबाव में उसी दिन गुरप्रीत सिंह तूफान को रिहा कर दिया। इससे अमृतपाल सिंह तथा उसके साथियों का दबदबा और भी बढ़ गया। इस घटनाक्रम से जहां पंजाब के लोगों में भय तथा दहशत का माहौल पैदा हो गया, वहीं अजनाला थाने पर अमृतपाल सिंह तथा उसके साथियों द्वारा किए गये हमले की टी.वी. चैनलों द्वारा ‘लाइव’ कवरेज किये जाने से देश-विदेश में पंजाब की बड़ी बदनामी हुई। पंजाब की अमन-कानून की स्थिति पर भी बड़े प्रश्न खड़े हो गए। प्रदेश की अधिकतर राजनीतिक पार्टियों ने ‘आप’ सरकार से मांग की कि अमृतपाल सिंह पर अजनाला थाने में जबरन दाखिल होकर पुलिस कर्मचारियों से मारपीट करने तथा तोड़-फोड़ करने के आरोप में कार्रवाई की जाए परन्तु  आश्चर्यजनक बात यह थी कि इस घटना के लगभग एक महीने तक पंजाब सरकार खामोश बैठी रही और अचानक 18 मार्च को अमृतपाल सिंह तथा उसके साथियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी गई। इसके बाद यह जानकारी भी सामने आई कि अमृतपाल सिंह तथा उसके साथियों के खिलाफ अजनाला थाने के घटनाक्रम के दृष्टिगत 26 फरवरी को ही केस दर्ज कर लिया गया था परन्तु उसके विरुद्ध कार्रवाई करने की प्रक्रिया दिल्ली में पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान की केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ मुलाकात के बाद ही आरम्भ हुई। उसके बाद अब तक जो कुछ हुआ, वह इतिहास का भाग है। लोग उसे बड़े निकटता से देख भी रहे हैं। अब तो पंजाब पुलिस यह भी दावा कर रही है कि अमृतपाल सिंह ने खालिस्तान बनाने के लिए एक बड़ी योजना तैयार की हुई थी। इसलिए ही वह आनंदपुर खालसा फौज तथा अमृतपाल टाइगर फोर्स का भी गठन कर रहा था। उसने खालिस्तान का नक्शा भी बना लिया था। उसे विदेशों से व्यापक स्तर पर पैसा भी आ रहा था, परन्तु कुछ हलकों का यह भी आरोप है कि सुरक्षा एजेंसियां अब अमृतपाल सिंह तथा उसके साथियों पर लगाए गए एन.एस.ए. जैसे कड़े कानूनों को उचित ठहराने के लिए इस तरह के सबूत जुटा रही हैं। ये सबूत कितने ठोस हैं, इनकी परख होना अभी शेष है।  
इस समूचे संदर्भ में प्रदेश के लोगों में यह धारणा ज़ोर पकड़ती जा रही है कि जिस प्रकार 80 के दशक में तत्कालीन प्रादेशिक तथा केन्द्र सरकारों ने संकीर्ण राजनीतिक उद्देश्यों के लिए प्रदेश की स्थिति को बिगड़ने दिया था, उसी प्रकार का सरकारों का रवैया एक बार फिर देखने को मिल रहा है। प्रदेश के बुद्धिजीवि भी इस पर चर्चा कर रहे हैं कि 2024 के लोकसभा चुनावों के दृष्टिगत एक बार फिर प्रदेश में कोई गहरी राजनीतिक बिसात तो नहीं बिछाई जा रही? नि:संदेह वर्तमान स्थितियां यह मांग कर रही हैं कि पंजाब सरकार तथा केन्द्र सरकार न सिर्फ इस पूरे घटनाक्रम संबंधी प्रदेश के लोगों को विश्वास में लें, अपितु अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी भारतीय समुदाय और विशेषकर सिख समुदाय को विश्वास में लेने के लिए बड़ा प्रयास करना चाहिए, ताकि पंजाब एक बार पुन: 80 के दशक वाली बुरी स्थिति में प्रवेश न कर जाए। देश-विदेश में रहते  सिख समुदाय को भी पूरी स्थिति को अच्छी तरह समझते हुए, इस संबंध में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करनी चाहिए।