ऩफरती भाषणों के प्रति चेतावनी

सर्वोच्च न्यायालय ने केरल के एक व्यक्ति द्वारा दायर की गई याचिका के संबंध में सुनवाई करते हुए आज के बेहद संवेदनशील तथा असहनशील बनते जा रहे समाज संबंधी जो टिप्पणियां की हैं, वे बेहद गम्भीर हैं। उन्हें पूरे समाज तथा संबंधित सरकारों द्वारा इसी ही भावना के साथ लिया जाना चाहिए। इस याचिका का संबंध ऩफरत फैलाने वाले भाषणों के साथ है, जिनके बीच एक-दूसरे समुदाय के विरुद्ध कुछ राजनीतिज्ञों, धार्मिक नेताओं तथा समाज के गणमान्यों द्वारा ऐसा कुछ बोला जाता है जो भिन्न-भिन्न समुदायों में विष घोलने के समान होता है। एक-दूसरे पर किये गये दुष्प्रचार से टकराव बढ़ता है तथा समाज की चाल गलत दिशा में मुड़ जाती है।
अक्सर ऐसा होते आम देखा जाता है। टी.वी. पर होती बहस तथा समाचार पत्रों में ऐसे प्रकाशित होते बयान लोगों के दिल में एक-दूसरे के प्रति ऩफरत पैदा करने में सहायक होते हैं। इससे लोकतांत्रिक भावनाओं को ठेस पहुंचती है तथा अक्सर ऐसा चुनावों या आयोजित धार्मिक समारोहों में ही होता देखा गया है। जहां ऐसा माहौल सृजित करने में वोट की राजनीति काम करती है, वहीं अपने समुदाय को उत्तम दर्शाने की होड़ भी ऐसा माहौल सृजित करने में सहायक होती है, परन्तु अफसोस इस बात का होता है कि संबंधित सरकारों द्वारा ऐसी बातों को अनदेखा करने का यत्न किया जाता है, जिस कारण साम्प्रदायिक तनाव में वृद्धि होती है। नि:सन्देह साम्प्रदायिक दंगे हमारे देश तथा समाज के लिए लाहनत हैं। ऐसे माहौल में कौन रहना चाहेगा, जहां ऩफरत का राज हो। इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय ने गम्भीर संज्ञान लेते हुए कहा है कि जब राजनीति तथा धर्म को अलग कर दिया जाएगा और राजनीतिज्ञ राजनीति में धर्म का उपयोग नहीं करेंगे तो ऩफरती भाषण खत्म हो जाएंगे। इस संबंधी सचेत करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा है कि भड़काऊ तत्वों द्वारा दिये जाते ऐसे बयानों तथा भाषणों को नज़र-अंदाज़ करके लोगों का संयम में रहना ज़रूरी है। पीठ ने यह भी कहा है कि भारत के लोग अन्य नागरिकों या समुदायों को बदनाम न करने की शपथ क्यों नहीं लेते? न्यायालय ने सख्ती से यह आदेश भी दिया है कि ऩफरत भरे भाषण देने वालों के विरुद्ध शीघ्र एफ.आई.आर. दर्ज क्यों नहीं की जाती? हम यह बात बेहद अ़फसोस से लिख रहे हैं कि पिछले दशक भर से देश में जिस तरह का ऩफरत वाला माहौल बनाया जा रहा है, वह बेहद बुरा है। इससे न सिर्फ हर पक्ष से विकास का पहिया ही बेहद धीमा हो जाएगा, अपितु समाज पुन: रसातल की तरफ जाना शुरू हो जाएगा।
न्यायालय ने इस संबंधी पंडित जवाहर लाल नेहरू तथा अटल बिहारी वाजपेयी का उदाहरण भी दिया, जिन्हें सुनने के लिए लोग उत्सुक रहते थे। इन शख्सियतों के शब्द लम्बी अवधि तक उन्हें उत्साहित करते रहते थे। हमारे देश में पैदा हुईं महान आत्माओं तथा शख्सियतों ने अक्सर लोगों को भाइचारक साझ के साथ विचरण करने के लिए प्रेरित किया है। देश तथा समाज में सदियों से भिन्न-भिन्न समुदायों, विश्वासों तथा धार्मिक अ़कीदों वाले लोग रहते तथा विचरण करते रहे हैं। उनमें आपसी साझ पैदा करना ही देश के संविधान के अनुसार हमारे निर्धारित लक्ष्यों में एक अहम लक्ष्य होना चाहिए।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द