यह संकल्प उठाएं, धरती को स्वर्ग बनाएं 22 अप्रैल को धरती दिवस पर विशेष

हम सभी रोज़ सुनते हैं, पढ़ते हैं और चिंतित होते हैं धरती के बारे सोचकर और दिन-ब-दिन बढ़ रही वैश्विक तपिश (द्दद्यशड्ढड्डद्य 2ड्डह्म्द्वद्बठ्ठद्द) के बारे में विचार करके हम ़िफक्रमंद होते हैं। वैश्विक तपिश धरती का तापमान बढ़ने को कहते हैं। इन्सान की लम्बे समय की कार्रवाइयों का परिणाम है यह वैश्विक तपिश। जैसे फैक्टरी का धुआं, जंगल काटने, गाड़ियों और कारों आदि के बढ़ने के कारण धुएं का बढ़ना, कृषि के कई नये तरीके जिनसे हमारे वातावरण में ग्रीन हाऊस गैसें बढ़ती हैं। जनसंख्या के बढ़ने और उस बढ़ती जनसंख्या की ज़रूरतें पूरी करने के लिए प्राकृतिक स्रोत ज़रूरत से ज्यादा प्रयोग किये जा रहे हैं, दिन प्रतिदिन धरती के नीचे वाले पानी का स्तर गिरता जाता है। मैं यहां कोई आंकड़े या नम्बर या टेबल नहीं देनी चाहती, क्योंकि हम हर वर्ष, पिछले वर्षों के मुकाबले धरती के घटते स्रोतों को आंकड़ों द्वारा ज़िक्र करते रहते हैं बल्कि आज वास्तविक बातें करना ज़रूरी है।
हम कई वर्षों से पढ़ते आ रहे हैं कि लोगों को बिजली पानी के लिए रोज़ ही एक तरह से प्रयत्न करके अपना हिस्सा बचाना पड़ता है। समाचारों में लेख, चैनलों पर वीडियो, लैक्चर, सैमीनार हर तरफ करवाये जाते हैं। सरकारों द्वारा निश्चित दिन मनाये जाते हैं ताकि हमारी धरती के स्रोत बच सकें तथा लोगों में चाहे पढ़ा लिखा वर्ग हो, चाहे कम पढ़ा वर्ग, जागरूकता हर स्तर पर पैदा हो सके।
अक्सर यह देखा गया है कि ज्यादा लोगों के दिल और मन में धरती या उसके खत्म हो रहे स्रोतों के प्रति चिंता से अपने घरों के बिजली और पानी के बिलों की फिक्र ज्यादा होती है। क्यों?
हम अपने घरों में फालतू पानी और फालतू बिजली आदि प्रयोग किये जाने के प्रति बहुत सचेत होते हैं लेकिन सार्वजनिक स्थानों पर पानी, बिजली की होती बर्बादी हम पर असर नहीं करती। इसका एक ही जवाब है कि हम सिर्फ अपनी बचत बारे सोचते हैं, और जब सवाल आता है, कुदरत या समाज बारे कुछ सोचने या करने का, तो हम यह धारणा रखते हैं कि कौन सा मेरे करने से कुछ सुधर जाना है।
अपनी धरती दिनों दिन गर्म हो रही है। इसके स्रोत दिन प्रतिदिन कम होते जा रहे हैं। एक नारी जो घर को बनाती और संवारती है, उसके हाथ में धरती मां के असल रूप को बचाकर रखने की बहुत ताकत है।
अपने बच्चों को बचपन से ही घर और बाहर छोटी-छोटी चीज़ों की कद्र करना सिखाएं, जैसे पानी बचाना, पौधों और वृक्षों को बचाना आदि। घर से बाहर जहां भी कुदरती स्रोतों की बर्बादी हो, उसको रोकने में मदद करना या उसके बारे में आवाज़ उठाना बच्चों को सिखाना पड़ेगा। अक्सर हम देखते हैं कि चलती गाड़ी में से बाहर कूड़ा आदि फैंकते समय हम बुरा नहीं मानते, लेकिन जब विदेशों में जाते हैं तो वहां के सख्त नियमों से डरते, बहुत आज्ञाकारी बनकर रहते हैं।
अपने काम संवारने के लिए हम कुदरती हर स्रोतों नदियां, हवा किसी की परवाह नहीं करते और प्रदूषण फैलाते जा रहे हैं। अक्सर देखने में आता है, किसी पहाड़ी स्थान या पिकनिक वाले स्थान पर लोग बहुत ही कूड़ा-कर्कट फैंकते हैं। उस स्थान को गंदा करके ही रहते हैं। यह सब करने से हमारी धरती का वातावरण अवसान की तरफ जा रहा है। अपना आज संवारने के लिए हम वह गुनाह करते जा रहे हैं जिसकी सज़ा हमें ही नहीं, हमारी आने वाली पीढ़ियों, हमारे बच्चों को भी भुगतनी पड़ेगी। समय आयेगा जब हम शुद्ध हवा, पानी, जैविक खाने के लिए तरसेंगे। ऐसी सभी आदतें हमारे बच्चे, हमसे सीखते हैं। हमारी आदतें उनकी शख्सियत में घुल जाती हैं और उसका हिस्सा बनती हैं।
पिछले कुछ सालों से ही देख लो, पहले से आजकल ज्यादा बीमारियां फैल रही हैं। प्रदूषण ज्यादा बढ़ गया है। पहले खान-पान की हर चीज़ ज्यादा शुद्ध और कुदरती होती थी। आज ज्यादा चीज़ों में मिलावट है। ये सभी मिलावटें ही हमारी धरती को और प्रदूषित कर रहीं हैं।
महिलाओं को यह भार अब उठाना ही पड़ेगा कि वे घर से छोटे-छोटे प्रयत्न करें जिससे धरती के स्रोत बच सकें। फिर अपने क्लबों, कालोनियों तक धरती को हर स्तर पर बचाने की मुहिम चलानी पड़ेगी क्योंकि अब किताबी बातें बहुत हो गईं और इससे पहले कि पानी सिर के ऊपर से निकल जाये और बाढ़ आ जाये, हमें यहां बांध बनाने ही पड़ेंगे। अपने लिए, अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए, इस धरती मां के प्रति उसकी खुशहाली बरकरार रखने के लिए हम सभी को अपने बनते फर्ज निभाने पडें़गे। 
बराक ओबामा (अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति) ने ठीक कहा है कि ‘हम पहली पीढ़ी हैं जो बदले मौसम का असर महसूस कर रहे हैं और अंतिम पीढ़ी हैं जो इस बारे कुछ कर सकते हैं।’ सो, जितनी जल्दी हम सभी यह बात समझ जाएं, उतना ही अच्छा होगा। सरबत का भला इसी में ही है।