छोटे व मध्यम किसानों के लिए बीज का प्रबंध करे सरकार

रबी की कटाई खत्म होने के कगार पर है। अधिकतर किसानों ने गेहूं का मंडीकरण कर लिया है और कुछ किसान अभी इसकी सम्भाल कर रहे हैं और अवशेष से तूड़ी बना रहे हैं। साथ ही साथ किसान खरीफ की फसल की बुआई के प्रबंध करने में भी व्यस्त हो गए हैं। वह धान तथा बासमती की योग्य किस्मों के बीज की तलाश में हैं। खरीफ की फसलों संबंधी किसानों को ज्ञान-विज्ञान उपलब्ध करने तथा शुद्ध बीज देने के लिए पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) तथा यंग फार्मर्स एसोसिएशन आदि मार्च के महीने किसान मेले तथा कैंप लगाते हैं। शुरू-शुरू में तो प्रगतिशील तथा खुशहाल किसान ही इन मेले में भाग लेने हेतु आते थे, चाहे कि अब तो भारी संख्या में किसान मेलों में पहुंचने लग पड़े हैं। 
सब्ज़ इन्कलाब के बाद गेहूं-धान का फसली चक्र अधिक प्रचलित हो गया। कृषि माया, मेहनत, ऊर्जा तथा तकनीकी ज्ञान-विज्ञान पर आधारित बन गई। गेहूं तथा धान के उत्पादन में प्रभावशाली वृद्धि हुई है, चाहे अन्य फसलों जैसे तेल बीज, दालों, मक्की तथा नरमे का उत्पादन कोई खास नहीं बढ़ा। धान, गेहूं तथा बासमती का उत्पादन बढ़ने में सबसे बड़ा योगदान कृषि वैज्ञानिकों द्वारा विकसित की गई फसलों की अधिक उत्पादन देने वाली नई किस्मों के बीजों का है, जो किसान इन मेलों में भाग लेने के लिए आते हैं, उनमें अधिकतर संख्या नई किस्मों के संशोधित बीज लेने वालों की होती है। नई किस्मों के बीज की उपलब्धता कृषि को लाभदायक बनाती है और उत्पादन बढ़ाती है। 
इस कार्यक्रम का एक कमज़ोर पहलु यह है कि भीतर के गांवों के छोटे व सीमांत किसानों को नई किस्मों के शुद्ध बीज उपलब्ध नहीं होते। इसीलिए उनके खेतों का उत्पादन बड़े व प्रभावशाली किसानों से कम है। मार्च माह में जब मेले लगाए जाते हैं, इन किसानों के पास बीच खरीदने की शक्ति नहीं होती, क्योंकि गेहूं की फसल अभी खेतों में खड़ी होती है। सहकारी सभाएं तथा बैंक उन्हें पिछले कज़र् वापस किए बिना नया कज़र् नहीं देते। फिर आढ़ती भी मुंह मोड़े बैठे हैं। ये किसान मेलों में पहुंच भी नहीं पाते। उन्हें ज्ञान-विज्ञान तथा शुद्ध बीजों की प्राप्ति इसीलिए नहीं होती। नई तथा अधिक उत्पादन देने वाली सफल किस्मों के बीज मेलों में ही खत्म हो जाते हैं। छोटे तथा सीमांत किसान फिर गेहूं काटने के बाद जब उनके पास पैसे आ जाते हैं, वे बीज की मंडी में पैदा हुए कुछ स्वार्थी व्यापारियों की लूट का शिकार हो जाते हैं। यह कुछ चुनिंदा भ्रष्ट व्यापारी इन किसानों की इस मजबूरी का लाभ उठाते हैं। 
ये व्यापारी मेलों तथा कैंपों के बाहर जाकर भी किसानों को बीज बेचते हैं, चाहे उनके पास कोई मोबाइल लाइसैंस नहीं होता। परन्तु भीतर के गांवों के छोटे तथा पिछड़े किसान तथा पट्टेदार मजबूर हैं। वे क्या करें? जब मेलों तथा कैंपों में बीज मिलते हैं, उस समय उनके पास खरीद शक्ति नहीं होती तथा जब खरीद शक्ति होती है तो प्रमाणित संस्थाओं के पास बीज नहीं होते। इस कारण उन्हें निजी क्षेत्र के व्यापारियों पर निर्भर होना पड़ता है, जहां  कई परिस्थितियों में क्वालिटी बीज की उपलब्धता नहीं होती।
अधिकतर किसान अब बासमती की नई किस्मों पूसा बासमती-1847, पूसा बासमती-1885, पूसा बासमती-1886, पूसा बासमती-1692 तथा धान की सब किस्मों से अधिक उत्पादन देने वाली पूसा-44 किस्म के बीज की तलाश में हैं। इस तरह के बीज सरकारी संस्थाओं में उपलब्ध नहीं। बासमती की किस्मों के बीज तो मेलों में ही खत्म हो गए थे। पूसा-44 किस्म का बीज पंजाब राज्य बीज प्रमाणित अथारिटी ने तस्दीक ही नहीं किया क्योंकि पंजाब सरकार ने इस किस्म का बीज सत्यापित करने पर रोक लगा दी थी। नतीजा यह हुआ कि किसान जो इस किस्म की काश्त को छोड़ना नहीं चाहते, गैर-तस्दीकशुदा बीज अप्रमाणित एजैंसियों से लेने के लिए मजबूर हो गए और हरियाणा में करनाल आदि स्थानों पर जाकर ये बीज ला रहे हैं।   
किसानों के बीच उत्पादन के अंतर को दूर करने के लिए किसानों को विशेषकर छोटे एवं सीमांत श्रेणी को आवश्यकता के अनुसार सफल किस्मों को बीज उपलब्ध किये जाने की ज़रूरत है और कृषि प्रसार सेवा के माध्यम से उन तक नई तकनीक तथा ज्ञान पहुंचाने की सख्त आवश्यकता है। केन्द्रीय भंडार में योगदान के पक्ष से पंजाब कई दूसरे राज्यों से पीछे रह गया है, परन्तु उसे पुन: बढ़ाया जा सकता है यदि सरकार द्वारा छोटे तथा दृष्टिविगत किसानों को ज़रूरत के समय शुद्ध बीज तथा अन्य कृषि सामग्री उपलब्ध करा दी जाए।