पंजाब में बढ़ता गैंगस्टरवाद

पंजाब में गैंगस्टरवाद की उग्र होती आहट ने प्रदेश का हित-चिन्तन करने वाले लोगों को एक बार फिर चौंकाया है। गैंगस्टरों की निरंकुश होती गतिविधियों ने प्रदेश की युवा शक्ति के भविष्य पर सन्देह एवं संकट के बादलों को और घना किया है। इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि जिस प्रकार से प्रदेश की सरकार और पुलिस प्रशासन गैंगस्टरों के साथ पेश आते हैं, उससे गैंगस्टर अपराधी नहीं, अपितु नायक बनते दिखते हैं। प्रदेश की जेलें आज वास्तविक रूप में सुधार गृह अथवा अपराधियों, गुण्डा-बदनाम तत्वों को दंड दिये जाने वाले केन्द्र नहीं, अपितु अपराध एवं गैंगस्टरवाद की नर्सरी बन कर रह गई हैं। जेलों के भीतर अपराधियों के पास मोबाइल, नशीले पदार्थ और घातक हथियार मिलना आम बात है। यह भी माना जाता है कि इन जेलों में जाकर कोई अपराधी संवरता अथवा सुधरता नहीं, अपितु घोर अपराधी, गैंगस्टर बन कर बाहर निकलता है। 
स्थितियों की गम्भीरता को बढ़ावा देता एक बड़ा पक्ष यह है कि देश की न्यायिक व्यवस्था ऐसे मामलों को लेकर भी अपने पुराने ढर्रे पर चलती हुई दिखाई देती है। गैंगस्टरों संबंधी मुक द्दमों को लेकर पहले तो सरकारों और प्रशासनिक धरातल पर आरोप-पत्र पेश किये जाने में देरी होती है। फिर अदालतों में तारीख-पर-तारीख वाला पुराना ढांचा ऐसे मामलों को अंधे कुएं में डाले जाने वाली मानसिकता से मुक्त नहीं हो पाता। लिहाज़ा अधिकतर गैंगस्टर ज़मानत पर बाहर आ जाते हैं, अथवा मामलों को पेश किये जाने की कमज़ोरी के कारण छूट जाते हैं। जेलों में मिले अपराध-जन्य माहौल के कारण वे स्वयं को फिल्मी नायक की भांति समझने लगते हैं। ऐसे मामलों के दशकों तक लम्बित रहने के लिए अदालतों पर मुकद्दमों का बोझ और कि बड़ी अदालतों में जजों की कमी भी उत्तरदायी होते हैं। इस स्थिति को इस प्रकार भी समझा जा सकता है कि पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय में 3 लाख, 70 ह़ज़ार से अधिक मामले लम्बित पड़े थे। इनमें 1,29,665 मामले आपराधिक थे। इससे पूर्व इस उच्च न्यायिक प्रतिष्ठान में जजों की कमी का भी व्यापक रूप से ज़िक्र हुआ था। नि:सन्देह अदालतों में मामलों का चिरकाल तक लम्बित रहना स्थितियों की नकारात्मकता को बढ़ाता है। इस स्थिति को तूल देती हमारी फिल्में भी कम उत्तरदायी नहीं हैं। फिल्मों में पुलिस एवं प्रशासन पर भारी पड़ता आपराधिक माहौल, ऐसे तत्वों के समक्ष परवश होती व्यवस्था और इनके पास होने वाली पैसे की रेल-पेल भी इन्हें देश और प्रदेश की युवा शक्ति के सामने नायक के रूप में प्रस्तुत करती है। इस कारण नि:सन्देह भावी युवा पीढ़ी जाने-अनजाने ऐसे आपराधिक तत्वों के प्रति स्वत: आकर्षित होने लगती है।
आपराधिक तत्वों को मिलने वाला राजनीतिक संरक्षण भी गैंगस्टरवाद की ज़मीन को उपजाऊ बनाने के लिए काफी है। प्रदेश की राजनीति में आपराधिक तत्वों का पहले भी दखल होता रहा है, किन्तु मौजूदा राजनीति ने गैंगस्टरवाद को जिस प्रकार से संरक्षण दिया है, उसने ऐसे तत्वों को महिमा-मंडित ही किया है। राजनीतिक दल आपराधिक तत्वों को चुनावी उम्मीदवार बनाते हैं, तो वे चाहे हारें या जीतें, गैंगस्टरवाद को पनाह देने का बायस बन जाते हैं। तीन वर्ष पूर्व सर्वोच्च न्यायालय ने एक टिप्पणी के ज़रिये राजनीति में  आपराधिक चरित्र वाले सांसदों, विधायकों की बढ़ती संख्या के संदर्भ में राजनीतिक दलों से कहा था, कि राजनीति को अपराध-मुक्त करने के दृष्टिगत वे स्वयं ही कुछ उपाय करें, किन्तु इसका कुछ प्रभाव पड़ा हो, ऐसा तो दिखाई नहीं देगा। पंजाब की एक जेल में उत्तर प्रदेश के एक गैंगस्टर राजनीतिज्ञ को दिया गया संरक्षण स्थितियों की गम्भीरता को दर्शाने के लिए काफी है। बिहार में बाहुबली गैंगस्टरों को राजनीतिक आकाओं का संरक्षण तो बड़ी आम बात है। 
पंजाब में विगत कुछ समय से गैंगस्टरवाद ने एक नये अवतार के तौर पर प्रदेश की शांति-व्यवस्था को ़खतरे की ओर धकेलना शुरू किया है। जेलों के भीतर नशीले पदार्थों की मौजूदगी और उपलब्ध मोबाइल सुविधाओं स्थिति को अधिक गम्भीर किया है। जेलों के भीतर अक्सर होने वाली गैंग-वार भी अपने आपमें बहुत कुछ कहती है। नि:सन्देह प्रशासन और पुलिस अपनी कार्रवाई करते हैं, किन्तु अभी तक तो गैंगस्टर और अपराधी समूह प्रशासनिक तंत्र पर भारी पड़ते दिखाई दिये हैं। विदेशों में बैठे गैंगस्टर पंजाब की जेलों में बंद आपराधिक तत्वों के माध्यम से हत्याओं को अंजाम देते हैं, और फिर सरेआम सोशल मीडिया के ज़रिये ज़िम्मेदारियां भी कबूल करते हैं। इससे स्थितियों की गम्भीरता का स्याह पक्ष खुल कर सामने आ जाता है।
हम समझते हैं कि देश के इस एक अति अहम और सीमांत प्रदेश पंजाब में गैंगस्टरवाद पर सख्ती से अंकुश लगाये जाने की बड़ी ज़रूरत है। इस हेतु सर्वाधिक ज़रूरी राजनीतिक इच्छा शक्ति को जागृत किया जाना है। राजनीतिक सामंजस्यता भी इस पक्ष का आवश्यक तत्व है। सरकार को यदि प्रदेश के हित के लिए अन्य दलों से सहयोग लेना पड़े, तो इससे संकोच नहीं किया जाना चाहिए। जितना शीघ्र सरकार इस हेतु इच्छा शक्ति जागृत करेगी, उतना ही यह देश और प्रदेश के हित में होगा।