सिख समुदाय को अपने हितों संबंधी सचेत होने की ज़रूरत

उर्दू शायर नुशूर वाहिदी का एक शे’अर है :
हज़ार शमाएं फरोज़ां हों रोशनी के लिए,
नज़र नहीं तो अंधेरा है आदमी के लिए।

अभिप्राय यह, कि चाहे रोशनी करने के लिए हज़ारों दीप जले हों, यदि नज़र नहीं तो आदमी के लिए अन्धेरा ही अन्धेरा है। यह शे’अर मुझे सिख पंथ की हालत तथा उसे मिटाने के सम्भावित मनसूबों के सन्दर्भ में सिख नेताओं की इस स्थिति पर नज़र न होने तथा उनके पूरी तरह बेपरवाह ही नहीं, अपितु लापरवाह होने की स्थिति के कारण याद आया है।
मैं मानता हूं कि देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के निजी तौर पर सिखों के प्रति उदार व्यवहार तथा उनकी राजनीतिक ज़रूरत के कारण भी देश में सिखों के साथ कहीं भी अन्याय होने की सम्भावना बहुत कम है, अपितु यदि सचमुच ही सिखों एवं पंजाब की मांगों को मनवाना है तो इसके लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आज तक के सभी प्रधानमंत्रियों से अधिक अनुकूल प्रधानमंत्री सिद्ध हो सकते हैं। वह इस मामले में आज तक के सबसे मज़बूत प्रधानमंत्री हैं। जो करना सोच लेते हैं, उसे पूरा भी करते हैं। विरोधी क्या कहेंगे, इसकी चिन्ता वह आम तौर पर नहीं करते। अपितु पहले वाले कई प्रधानमंत्री पंजाब एवं सिखों की कई मांगों को जायज़ मानते एवं समझते हुए भी सिर्फ इसलिए स्वीकार नहीं कर सके कि कहीं कोई वर्ग या कोई प्रदेश नाराज़ न हो जाए। ज़रूरत है तो इस बात की कि पंजाब तथा सिखों के नेता अपनी बात प्रधानमंत्री को समझा सकें कि यह हमारा अधिकार है। ये सभी मांगें हर तरह से संविधान के अनुसार जायज़ हैं, परन्तु आपसे पहले के प्रधानमंत्रियों से हमें इन्स़ाफ नहीं मिला क्योंकि वे बाहरी दबाव से बहुत डरते थे, आप नहीं डरते। 
परन्तु जो दिखाई देता है, वह कई बार नहीं होता। नि:सन्देह प्रधानमंत्री की नीयत सिखों तथा पंजाब के प्रति ईमानदार भी हो, परन्तु जो सुनाई दे रहा है, जो दिखाई दे रहा है, वह बहुत ़खतरनाक है। एक वीडियो जिसे क्रियात्मक रूप से आडियो ही कहा जा सकता है, आजकल बहुत वायरल हो रही है। यह मुझे भी अलग-अलग लोगों द्वारा भेजी गई है, देश में भी तथा विदेश में बी। यह वीडियोनुमा आडियो पूरी नहीं है, सिर्फ भाषण का दो मिनट से भी कम समय का भाग है परन्तु इसमें एक प्रभावशाली आवाज़ जो कह रही है, वह सुन कर एक सिख होने के कारण मेरे शरीर में रीढ़ की हड्डी तक सिहरन दौड़ गई है।
क्या कह रही है यह आवाज़, आप भी पढ़ें :
‘अब गत 8 वर्ष में क्या हुआ हम फिर से वृत्तांत (नैरेटिव) की जो ताकत है, धर्म की जो ताकत है, धार्मिक विश्वास की जो ताकत है। उनका जो महत्त्व है, उसे हमने फिर से रीयलाइज़ (एहसास) करना शुरू कर दिया है। हम उस ढंग से ठंडे दिमाग से उनकी पहचान उनसे छीन लेंगे। पहले कह चुके हैं कैसे छीन लेनी चाहिए। अब दूसरी बात क्या है, हमारे पास ज्यादातर महत्त्वपूर्ण लेख हैं, सूचना है। उस सूचना का इस्तेमाल करना चाहिए। उन्हें हम उनके ही खेल तथा तरीके से बर्बाद कर सकते हैं। सिर्फ हमें कुछ पढ़ना होगा तथा पढ़ कर वह पूरी सूचना पूरे समाज में फैलानी चाहिए। जैसे हम ‘जेहादियों’ को पूरे समाज में अलग-थलग कर चुके हैं, उन्हें ‘बाई डिफाल्ट डी-फैक्टो सैकेंड क्लास सिटीज़न’ अभिप्राय (मूल रूप में दूसरे वर्ग के नागरिक) बना दिया है...। उन्हें इस ढंग से प्रोपेगंडा कह लें, ‘इन्फारमेशन वार फेयर’ (सूचना की लड़ाई) समझ लें या जो हमारा साहित्य कह लें, जो ‘सिख’ साहित्य कह लें। ये सभी इस्तेमाल करके इन्हीं से इनकी पहचान छीन लेनी है तथा इन्हें मूल रूप में दूसरे दर्जे का शहरी बना देना चाहिए। आगे कुछ और भी पंक्तियां हैं जो (संत) भिंडरांवाले की बात करती हैं, के संबंध में कहा गया है कि यह लड़ाई दिल तथा दिमाग की लड़ाई है। हमें यह ‘इन्फारमेशन वारफेयर’ बहुत ही ज़बरदस्त ढंग से करनी (लड़नी) है।’
नि:सन्देह यह स्पष्ट है कि यह सोच भारत सरकार की या भाजपा की नहीं हो सकती परन्तु यह भी स्पष्ट है कि यह सोच किसी हिन्दू राष्ट्र के समर्थक की है जो जेहादियों के नाम पर मुसलमानों को दोयम दर्जे का नागरिक बना देने तथा ‘सिखों’ को भी चाहे एक बार सिख शब्द कह कर दूसरी बार वह ‘भिंडरांवाले’ का नाम लेने वालों की बात करता है, को दूसरे दर्जे के शहरी बनाने के लिए दिल तथा दिमाग की लड़ाई लड़ने की बात करता है तो इस हेतु उसके लिए हथियार के रूप में सिख इतिहास तथा साहित्य की न्यूनताओं तथा सूचनाओं का ही इस्तेमाल करके सिखों को मानसिक रूप में दूसरे दर्जे का नागरिक बनाने की  बात कही जा रही है। 
सिख क्या करें?
यह वीडियो चाहे किसी की शरारत ही हो, फिर भी अब यह स्मरण करने वाली बात है कि इस स्थिति में सिख क्या करें? सिखों के लिए सबसे ज़रूरी काम है कि श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बाणी की शिक्षाओं के विपरीत जो भी साहित्य या इतिहास प्रचलित है, उसकी जांच की जाये। सिखों के इतिहास तथा ग्रंथों (श्री गुरु ग्रंथ साहिब के बिना) में जो सिखी के वास्तविक किरदार-व्यवहार के खिल़ाफ लिखा गया है, उसकी छंटनी करके नकार दिया जाये, नहीं तो यह सोच स्पष्ट कह रही है। ़खालसा पंथ तथा शब्द गुरु के सिद्धांत को फिर से उभारा जाये। सिखों में चल रही एक तरह की मूर्ति पूजा तथा देह पूजा से सिखी को फिर से दूर किया जाये। शिरोमणि कमेटी द्वारा स्वीकृत ‘सिख रहित मर्यादा’ सभी गुरुद्वारों, व्यक्तियों, डेरों, संतों तथा अन्य सिख सम्प्रदायों के लिए लागू की जाए। सिख मर्यादा के लम्बित मामलों को अधर में न छोड़ा जाए अपितु आपसी संवाद से इनका समाधान किया जाए। नहीं तो विरोधी आपको, आपके अपने ही हथियार से चित्त करने की तैयारी कर रहा है। इस कार्य के लिए चाहे हमारी संस्थाएं कितना भी अवसान की ओर जा चुकी हैं, फिर भी नज़र रह-रह कर सिर्फ शिरोमणि कमेटी, दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी तथा श्री अकाल तख्त साहिब जैसी संस्थाओं की ओर ही उठती है कि वे समय रहते कुछ करेंगी। नि:संदेह हमें यह भी पूर्ण विश्वास है कि हज़ारों कुर्बानियां देकर बनी गुरु की नवाज़ी सिखी को मिटाने या दबाने की साज़िशें सफल नहीं हो सकतीं। 
हमें चिऱाग समझ कर बुझा ना पाओगे,
हम अपने घर में कई आ़फताब रखते हैं।
केजरीवाल का अभियान
अब जब केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद भी अध्यादेश जारी करके दिल्ली की ‘आप’ की अरविंद केजरीवाल सरकार से कई अधिकार छीन लिए हैं तो श्री केजरीवाल जनाब मोमिन के शे’अर :
जब रंज दिया बुतों ने,  
तो ़खुदा याद आया। 
की भांति ही विपक्षी दलों की सहायता लेने के लिए दौरे पर निकले हैं ताकि यह अध्यादेश कानून न बन सके। राज्यसभा में विपक्ष एकजुट होकर इसका विरोध करे, परन्तु  केजरीवाल ने यह नहीं देखा कि एक बार नहीं, अपितु कई बार जब-जब भी विपक्ष एकजुट हुआ, वह या तो उससे दूर खड़े नज़र आए या सत्तारूढ़ पार्टी के साथ खड़े हुए। धारा 370 समाप्त करना तो चाहे अलग बात है, परन्तु जम्मू-कश्मीर से राज्य का दर्जा छीन कर उसके ट़ुकडे करके केन्द्र शासित क्षेत्र बना देना तो देश के संघीय ढांचे के विरपीत था-उस समय भी वह सत्तारूढ़ पार्टी के साथ खड़े थे। जब राहुल गांधी की संसद सदस्यता गई, तब भी वह कहीं दूर ही खड़े दिखाई दिये। ‘एक देश, एक झंडा’, ‘एक देश, एक कानून’ के मामलों में वह भाजपा से भी आगे बढ़ कर उत्साह दिखाते रहे। अधिकतर प्रदेशों के विधानसभा चुनावों में केजरीवाल की पार्टी की भूमिका विरोधी मतों के विभाजन तथा भाजपा को विजय दिलाने वाली ही रही है। फिर अब उन्हें विपक्ष की एकता  क्यों याद आ रही है? 
कुछ लोग तो अभी भी यह कहते हैं कि यह भी भाजपा की ही मदद करने की एक चाल है। भाजपा यह अध्यादेश ला कर यह सिद्ध करने की कोशिश कर रही है कि ‘आप’ ही भाजपा की असल विरोधी पार्टी है। ‘आप’ इसमें भाजपा के अन्याय की शिकार पार्टी के रूप में इसमें गैर-कांग्रेसी तथा गैर-भाजपा गठबंधन के नाम पर तीसरा मोर्चा बनाने की कोशिश करेगी, जो वास्तव में 2024 के आम चुनावों में विपक्षी मतों को विभाजित करके भाजपा की जीत का मार्ग ही प्रशस्त करेगा। परन्तु असल सच्चाई क्या है, यह हमें नहीं पता। नि:संदेह हालात के साक्ष्य इन बातों में कुछ न कुछ सच्चाई होने की ओर संकेत तो करते ही हैं। आजकल तो आम लोग भी दोहरे-तिहरे चेहरे लगा कर रखते हैं, फिर राजनीतिज्ञ तो राजनीतिज्ञ हैं। 
दिलों में आग लबों पर गुलाब रखते हैं।
सब अपने चेहरों पे दोहरा नकाब रखते हैं।

(राहत इंदौरी)
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