अमरीका में ऋण संकट का कारण सरकारों की लापरवाही

इस समय पूरी दुनिया में सबसे बड़ी चर्चा यही हो रही है कि क्या अमरीका अपने ऋण संकट के चलते दिवालिया हो जायेगा? खुद को दुनिया की एकमात्र महा-शक्ति मानने वाला अमरीका अपने ऋण संकट के चलते अगर वाकई दिवालिया हो गया तो बाकी दुनिया का क्या होगा? अमरीका के लिए यह संकट कितना बड़ा है, इसे इसी बात से समझा जा सकता है कि राष्ट्रपति जो बाइडन जी-7 देशों की हरोशिमा में आयोजित बैठक में हिस्सा लेकर सीधे वापस वाशिंगटन चले गए थे जबकि उन्हें क्वाड की बैठक में हिस्सा लेने के लिए ऑस्ट्रेलिया भी जाना था। लेकिन देश के ऋण संकट को देखते हुए वह वापस अमरीका चले गए थे, क्योंकि हर स्थिति में इस संकट का आगामी 10 जून, 2023 तक समाधान करना ही होगा, नहीं तो अमरीका वायदे के मुताबिक अपने ऋण का भुगतान समय पर नहीं कर पायेगा। 
सवाल है कि अगर अमरीका अपने ऋण की कुछ किस्तें चुका नहीं पायेगा या चुकाने में थोड़ा लेट हो जायेगा तो दुनिया को इससे वित्तीय नुकसान क्यों होगा? इसी स्थिति में सवाल यह भी पैदा होता है कि अमरीका की इस निजी चिंता से दुनिया क्यों चिंतित हो? अमरीका अपने वित्तीय संकट के कारण अपनी ऋण देनदारी को समय पर नहीं चुका पायेगा, तो यह महज अमरीका का निजी संकट नहीं होगा बल्कि इससे पूरी दुनिया की वित्तीय साख चरमरा जायेगी। इसकी वजह यह है कि दुनिया के ज्यादातर बड़े बैंक अमरीका के केंद्रीय बैंक से बॉन्ड खरीदते हैं और उन्हीं बॉन्ड की बदौलत अपनी अर्थ-व्यवस्था की मजूबती का आंकलन व एहसास करते हैं। एक बार अगर अमरीका ही तयशुदा ऋण की किस्त देने से चूक जाता है तो अमरीकी बॉन्ड पर पूरी दुनिया की वित्तीय व्यवस्था का भरोसा उठ जायेगा और पूरी दुनिया की वित्तीय व्यवस्था चरमरा जायेगी।
अमरीका का कुल सालाना बजट लगभग 6500 लाख करोड़ डॉलर का होता है, लेकिन अमरीकी सरकारें आमतौर पर अपने इस सालाना बजट से कहीं ज्यादा खर्च कर देती हैं और फिर अपने इस बढ़े हुए खर्च की पूर्ति के लिए संसद की मंजूरी ले लेती हैं और अपने खर्च की सीमा को बढ़ा लेती हैं। आम तौर पर अमरीकी सरकारें ऐसा ही करती हैं। उनमें एक तरह की यह लापरवाही होती है कि बजट की चिंता किए बिना खर्च करें और फिर बजट की सीमा को संसद से बढ़वा दें। आखिर कितनी बार ऐसा होगा? पिछले 50 सालों में करीब चार दर्जन से ज्यादा बार ऐसा हो चुका है यानी लगभग हर साल उन्हें ऐसा ही करना पड़ता है। जब अमरीका की संसद में भी उसी पार्टी का बहुमत होता है, जिसकी सरकार होती है, तब तो कोई दिक्कत नहीं होती। लेकिन जब सरकार किसी दूसरी पार्टी की होती है और संसद में बहुमत किसी दूसरी पार्टी का होता है, तब यह संकट खड़ा होता है। 
दरअसल अमरीका ऐसा लोकतंत्र है जिसमें सरकार को खर्च करने के लिए मनमानी की सुविधा नहीं है। इसीलिए हर बार अमरीकी सरकार को अपने बढ़े हुए खर्चों को पूरा करने के लिए संसद के भरोसे पर रहना होता है और संसद की मदद से ही वह अपने खर्च की सीमा बढ़ा सकती है। हालांकि यह पहला मौका नहीं है जब प्रतिनिधि सभा में बहुमत न होने के कारण अमरीकी सरकार संकट में फंस गई है। जो बाइडन संसद के स्पीकर कैविन मैकार्थी से लगातार बातचीत कर रहे हैं कि हर सूरत में उन्हें डेट सीलिंग की मंजूरी दी जाए। 
अगर अमरीका के साथ वाकई ऐसा हुआ तो पूरी दुनिया में आर्थिक संकट छा सकता है। अमरीकी शेयर बाज़ार ध्वस्त हो सकता है और निवेशकों के दिल दिमाग में डर बैठ सकता है जिससे कैश फ्लो का संकट खड़ा हो सकता है। संसद में चूंकि रिपब्लिकन पार्टी का दबदबा है और अगर हाउस स्पीकर कैविन मैकार्थी बाइडन को सहयोग नहीं देते यानी डेट सीलिंग की मंजूरी नहीं दिलवाते तो बड़ी समस्या खड़ी हो सकती है। चूंकि रिपब्लिकन पार्टी के कैविन मैकार्थी पर पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का प्रभाव है और ट्रंप नहीं चाहते कि मैकार्थी जो बाइडन को सहयोग दें, ऐसे में संकट खड़ा हो सकता है। हालांकि जानकार मानते हैं कि ऐसा कुछ नहीं होगा, अंतत: अमरीका की ये दोनों महत्वपूर्ण संसस्थाएं चाहे सरकार हो या संसद, कोई भी ऐसा कदम नहीं उठाएगी कि अमरीका कमज़ोर पड़े, उसकी साख पर संकट खड़ा हो। इसलिए सारे वित्त विशेषज्ञ यह मानकर चल रहे हैं कि मई के आखिरी हफ्ते या जून की शुरुआत में सभी आर्थिक मुद्दे हल हो जाएंगे। 
अमरीका पर फिलहाल 2,489 लाख करोड़ डॉलर का ऋण है, जो साल 2001 के मुकाबले पांच गुना के करीब है यानी पिछले 20 सालों में अमरीकी सरकारों के मनमाने खर्च में 500 फीसदी तक की वृद्धि हुई है। लेकिन यह फिर भी पहली बार नहीं हुआ, अमरीका में यह पिछले 50-60 सालों से लगातार हो रहा है, लेकिन यह स्थिति नहीं आती, क्योंकि आमतौर पर सरकारें अंतिम समय में इस संकट का हल निकला लेती हैं। लेकिन अब की बार अमरीका पर जो देशी, विदेशी ऋण चढ़ा हुआ है, वह अमरीका के कुल जीडीपी का सवा गुना हो चुका है यानी अमरीका की जीडीपी से 125 प्रतिशत से ज्यादा  है। यह ऋण जहां व्यवहारिक रूप से जानकारों को परेशान करता है, वहीं बिना जाने भी इस ऋण से जो एक मनोवैज्ञानिक दहशत पैदा होती है, वह पूरी दुनिया को संकट में डालने के लिए काफी है। इसलिए अगले कुछ दिनों में यानी मई खत्म होते होते अमरीकी नेता इस समस्या का हल निकाल लेंगे यानी संसद को अपनी ऋण सीमा बढ़ाने की सरकार को इजाज़त देनी ही होगी। 
 

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर